Kamnao ke Nasheman - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

कामनाओं के नशेमन - 1

कामनाओं के नशेमन

हुस्न तबस्सुम निहाँ

1

दरवाजे बहुत होते हैं, कुछ सहजता के साथ खुल जाने वाले और कुछ दरवाजे बहुत खटखटाने के बाद खुलने वाले। उतना अर्थ दरवाजे का नहीं होता जितना अर्थ चौखट का होता है। चौखट लांघ कर भीतर आना और चौखट लांघ कर बाहर जाना, दोनों ही स्थितियों में पांवों में बड़ा साहस चाहिए। वह भी मन के पांवों में ज्यादह साहस। शायद कुछ ऐसे ही हालात से जुड़े अमल अभी दुर्गम पहाड़ियों की यात्रा करके एक दरवाजे के सामने थके से खड़े हो गए। पता नहीं उनके मन के पांवों में इतना साहस है कि वे इस दरवाजे की चौखट को लांघ भी पाएंगे या नहीं। उन्होंने ट्राली बैग दीवार के सहारे खड़ा कर दिया है और इंतजार करने लगे हैं कि अभी दरवाजा खुलेगा, शायद अपने आप खुल जाए और सामने चौखट के उस पार, आश्चर्य से उसे निहारती हुई मोहिनी दिख जाए।

तभी दरवाजा खुला। एक स्टुडेंट टाईप लड़का बाहर निकला और अमल को आश्चर्य से निहारते हुए पूछा, ‘‘किसे चाहिए?‘‘

‘‘पालीहिल यही है न?‘‘

‘‘हाँ‘‘ उस लड़के ने कुतुहल से पूछा-‘‘ लगता है आप पहली बार पंचमढ़ी आ रहे हैं। किसे चाहिए?‘‘

‘‘मिस मोहिनी राजदान को। यही पालीहिल का पता है‘‘ अमल ने उस लड़के के चेहरे पर उभरते हुए एक अक्खड़पन को महसूस करते हुए धीमे स्वरों में कहा। इस बात पर जैसे वह लड़का उन्हें एक ताड़ने वाली निंगाह से देखने लगा है। वह उसे ऊपर से नीचे तक कुछ लम्हों तक घूरता रहा और फिर एक कटाक्ष के साथ हँसता हुआ बोला-‘‘मिस मोहिनी राजदान मिस हैं या नहीं, यह तो यहाँ किसी को नहीं पता। हाँ, वात्सायन के कामसूत्र की एक नायिका हस्थिनि राजदान के नाम से ज्यादह जाना जाता है‘‘

शायद अमल को मोहिनी के बारे में उस लड़के का कमेंट कुछ अच्छा नहीं लगा। वह हँस कर बोले-‘‘इतनी सी उम्र में ही तुमने कामसूत्र भी पढ़ लिया...!‘‘

वह लड़का एक अजीब सा भाव समेटते हुए बोला- ‘‘नहीं, वह लड़कों को कामसूत्र पढ़ाती हैं। उसकी प्रैक्टिकल जानकारी भी देती हैं!‘‘

‘’मैं उनका चरित्र नहीं, पता पूछ रहा हूँ।‘‘ इस दफा अमल ने थोड़ा खीझ कर कहा। आगे बोले- ‘‘यही पालीहिल का पता मेरे पास था।‘‘

इस बार वह लड़का शायद अमल के तेवर देख कर कुछ सम्भलते हुए बोला- ‘‘वह पहले यहीं रहती थीं लेकिन ...जिन बातों के लिए आप बुरा मान गए, इसी कारण उन्हें यहाँ से दूसरी जगह जाना पड़ा। इस मोहल्ले के लड़के खराब होते जा रहे थे।‘‘

‘‘कहाँ मकान लिया है?‘‘ अमल ने उस लड़के की बात पर ज्यादह गौर न करते हुए पूछा।

‘‘आप कोई रिश्तेदार हैं उनके?‘‘

‘‘यार, पता बता दो , बस इतनी मेहरबानी करों‘‘ अमल ने खीझ कर कहा।

‘‘वह यहाँ से थोड़ी दूर पहाड़ी के एक मकान में रहती हैं। वह जगह बस्ती से थोड़ा दूर है।‘‘ लड़के ने एक कटाक्ष के साथ मुस्कुराते हुए कहा। आगे बोला- ‘‘अब वह बहुत ही एकांत और खूबसूरत जगह पर रहती हैं। अगर आप पचमढ़ी घूमने आए हैं तो उनके साथ आनंद ही आनंद है। एक बेहद प्लेज़र ट्रिप। आप यहाँ किसी से भी हस्थिनि राजदान या मोती चुगने वाली मैना का नाम पूछेंगे, सब बता देंगे।‘‘

आखिर अमल का ज्यादह उस लड़के से बात करने का साहस नहीं हुआ। वह सामान उठा कर चल दिए। कुछ मोहिनी के बारे में सोंचते हुए कुछ उस लड़के के बारे में।

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सचमुच मोहिनी ने एक बहुत खुबसूरत पहाड़ी पर बहुत ही एकांत में एक छोटा सा बंगला ले रखा था। दरवाजे पर ताला बंद था। तभी बगल वाली झोपड़ी से एक औरत निकली और उसने पूछा-‘‘मास्टरनी जी के पास आए हैं?‘‘

‘‘हाँ मिस मोहिनी राजदान का बंगला यही है न?‘‘ सहमते हुए अमल ने पूछा जैसे वह भी उस लड़के की तरह कहीं कोई कटाक्ष न कर दे।

‘‘है तो यही लेकिन वह रात की बस से लौटेंगी।‘‘ फिर वह बहुत सहज भाव से बोली-‘‘ आप अपना सामान यहीं मेरे यहाँ रख दीजिए। ‘‘

काफी शाम हो गई थी। अमल ने वहीं, उस औरत की झोंपड़ी में अपना सामान रख दिया और एक खाट पर थके से बैठ गए। उसके छोटे-छोटे बच्चों ने आकर घेर लिया। सामने बहुत ही खूबसूरत झरना बह रहा था। सूर्य डूबने की लालिमा से वह झरना कुछ सुरमई सा कुछ नारंगी सा हो गया था। बेहद मनोरम दृश्य था। अमल देर तक उसे निहारते से बैठे रहे। तभी उस महिला ने जैसे कुछ भांपते हुए मुस्कुरा कर पूछा- ‘‘आप शायद पहली बार यहाँ आए हैं! मास्टरनी जी आपकी कोई रिश्तेदार हैं?‘‘

‘‘नहीं, लेकिन मेरे परिचितों में काफी नजदीक लोगों में से हैं।‘‘ अमल ने सहज भाव से जवाब दिया।

‘‘आप यहाँ घूमने आए हैं, बहुत ही खूबसूरत जगह है लोग बताते हैं यह‘‘ उस महिला ने जरा आश्चर्य से बतलाया।

‘’बिल्कुल है।‘‘ अमल ने मुस्कुरा कर उस महिला की सहजता महसूस करते हुए पूछा- ‘‘वैसे तुम्हें नहीं लगता कि यह खूबसूरत जगह है।‘‘

इस सवाल पर वह थोड़ा ठिठकी फिर एक गहरी सांस लेती मुस्कुराती सी बोली- ‘‘हम लोग आज तक जान नहीं पाए। वह तो आप लोग ही यहाँ सैर करने, मन बहलाने आते हैं तब महसूस होता है। यह सब बातें अमीरों के सोचने की हैं। बस, हम लोग यहाँ के बारे में इतना जानते हैं कि हमारी रोजी-रोटी यही है। रोज दिन भर लकड़ियां बीनते हैं और वही बेच कर गुजारा करते हैं।‘‘

अमल को अभी उस महिला का इन खुबसूरत पहाड़ियों के बारे में एक दूसरे यथार्थ का अर्थ मन को झकझोर गया है। वह विपन्न से अपने पास मंडराते बच्चों को एक सहानुभूति के साथ देखने लगे हैं। वह और उन्हें अभी उस मालिन की तरह प्रतीत हुई है जो मोंगरे का महकता जूड़ा तो बनाती है और उसी से अपना पेट भरती है लेकिन वह कभी नहीं समझ पायी कि इस जूड़े का अर्थ क्या होता है...इसकी गमक क्या होती है।‘‘

‘‘कहाँ गई हैं...!’’ बहुत देर हो रही है। पता नहीं, आज लौटें कि नहीं।‘‘ अमल ने कुछ ऊबते हुए पूछा।

‘‘नहीं, लौटेंगी तो जरूर।‘‘ उसने बहुत सहज भाव से फिर पूछा- ‘‘आपके आने की खबर उन्हें थी या नहीं?‘‘

‘‘नहीं, मुझे अचानक आना पड़ा यहाँ‘‘

‘‘यहाँ कहीं नौकरी करने आए हैं अफसर बनकर? ‘‘

‘‘नहीं, सिर्फ घूमने‘‘

वह स्त्री कुछ देर तक अमल के चेहरे को जैसे पढ़ती रही फिर उसने एक अजीब से भाव को जैसे छिपाते हुए कहा- ‘‘आज उस लड़के, मोती का मुकदमा था। बेचारा न जाने कैसे एक गंदे केस में फंस गया। लोग कहते हैं कि लड़के ने वह गंदा काम नहीं किया था।‘‘ अब वह इस केस में फंसने के बाद मास्टरनी जी के पास ही रहने लगा। वह उनका खाना बनाता है।‘‘

‘‘किस केस में फंस गया वह?‘‘

इस सवाल पर थोड़ी देर चुप रही वह और फिर जैसे कुछ सकुचाते हुए बोली- ‘‘क्या बतलाऊँ साहब, बहुत ही गंदे केस में। अभी उस मोती की उम्र ही क्या है। होगा यही पंद्रह सोलह साल का। बस देखने में पूरा जवान लगता है।‘‘

‘‘कैसा केस, बताने लायक नहीं है क्या?‘‘ एक कुतुहलता से अमल ने पूछा। शायद उन्हें उस पालीहिल वाले लड़के की वह टिप्पणी याद पड़ गई थी जिसने इसी लड़के मोती के नाम से एक बहुत ही अशलील अर्थों में जोड़कर कहा था ‘‘मोती चुगने वाली मैना‘‘

उस स्त्री ने शब्दों को एक मर्यादा में बांधते हुए कहा था- ‘‘उसने किसी स्त्री के साथ जबरदस्ती की थी।...हरामजादी वह स्त्री खुद बदमाश थी। उसी ने मोती को फंसा रखा था। एक दिन जब उसके मर्द ने देख लिया तो पकड़ कर पुलिस केस कर दिया और वह हरामजादी सती सावित्री बनी बैठी रही।...क्या कहा जाए साहब, उसी का मुकदमा मास्टरनी जी उसी की ओर से लड़ रही हैं। पूरा खर्च उठा रही है। खुद उसके लिए यहाँ-वहाँ बदनाम भी हो रही हैं। नेकी कोई समझने वाला नहीं है। ‘‘

‘‘.................‘‘ वह खामोश ही रहे। वह आगे बोली-

‘‘..इसी लिए कहा जाता है साहब स्त्री को हमेशा किसी न किसी के साथ ही रहना चाहिए। चाहे वह उसका मर्द हो या फिर घर का कोई और। अकेली स्त्रियों को यही सब कुछ सुनना पड़ता है।‘‘ उसने एक कसैलेपन में घुल कर कहा।

‘‘उनके साथ यहाँ कोई और नहीं रहता?‘‘ अमल ने जैसे किसी अर्थ को पकड़ते हुए पूछा।

‘‘यहाँ तो उनके साथ कोई नहीं रहता। स्कूल की छुट्टियों में वह अपने घर चली जाती हैं। अब साहब क्या पता उनके घर में कौन-कौन है। कौन जाए पूछने उनसे! बस वे हमारे बच्चों को बहुत मानती हैं। हमेशा कुछ न कुछ देती रहती हैं। कुछ न कुछ खिलाती रहती हैं। बहुत दयावान हैं।‘‘ इतना कह के वह महिला भीतर कमरे में चली गई।

अमल को लगा जैसे मोहिनी के चरित्र के बारे में जो उसने संदिग्ध सी बातें सुनीं थीं वह बस उसके इस दयालुता और मानवीय गुणों के नीचे सब दब कर रह गयीं हैं। उन्होंने सिगरेट केस से सिगरेट निकाला और सुलगा कर कश लेने लगे। कुछ देर बाद वह लौटी तो उसके हाथ में एक चाय का कप था। उसने अमल की तरफ बढ़ा दिया।

‘‘अरे इसकी क्या जरूरत थी‘‘ लेकिन अंतस में कहीं एक छांह सी ठहर गई थी। लंबा सफर तय करने के बाद एक कप चाय मायने रखती है। उन्होंने हाथ बढ़ा कर ले लिया।

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कितने वर्षों बाद, आज अचानक अमल को सामने पाकर मोहिनी अवाक् रह गई। उसकी आँखों के सामने, जैसे अतीत में से निकल कर के ढेर सारी रेशम की डोरियां हिलने लगी थीं। जब कुछ अप्रत्याशित सा सामने घट जाता है तो जैसे सारे शब्द कहीं कुछ पलों के लिए गुम हो जाते हैं या शब्द ही नहीं मिलते तत्काल, बस एक अर्थ भरा मौन सामने पसर जाता है। अमल भी मोहिनी को ऊपर से नीचे तक निहारते भर रह गए। सचमुच पहले से कहीं ज्यादह उसके बदन में एक मादकता भर आई थी। पहले जैसी वह छरहरे बदन की दुबली पतली लड़की नहीं रह गई थी अब। एक लंबे कद काठी की भरी पूरी स्त्री। शायद उसकी बढ़ती उम्र ने उसमें और मादकता भर दी थी। उसके चेहरे पर जो सांवलेपन का एक अनोखा सलोनापन था वह कुछ ज्यादह निखर आया था। उसकी आँखें वैसी ही बोलती सी लग रही थीं। आाखिर वह ही अपने पुराने अंदाज में हँस कर बोली- ‘‘क्या मैं यकीन कर लूं कि मेरी आँखों के सामने अमल खड़े हैं?‘‘

‘‘तुम मजबूर हो यक़ीन करने के लिए।‘‘ अमल ने हँस कर कहा-‘‘ ताला खोलो, शाम से यहीं आ कर पड़ा हूँ।‘‘

मोहिनी ने पीछे खड़े उस लड़के मोती से कहा- ‘‘ताला खोल‘‘ और फिर मोहिनी ने उलाहना भरे स्वर में कहा, ‘‘लगता है, यहाँ मेरे पास आने का पहले से कोई प्रोग्राम नहीं था। बस पचमढ़ी के शरदोत्सव पर ही आए हो। फोन तो कर दिया होता। मैं बैठी यहाँ इंतजार कर रही होती। कभी मुझे इंतजार करने का मौका ही कहाँ दिया तुमने। कम से कम एक बार तुम्हारे इंतजार का सुख तो उठा लेती।‘‘

‘‘कित्ते साल हो गए तुम्हें मुंबई छोड़े हुए?‘‘ अमल ने मुस्कुरा कर कहा, कुछ देर खामोश रहे फिर बोले- ‘‘इन सात आठ वर्षों में कभी तुमने पत्र डाला या फोन किया? मुझे क्या पता तुम कहाँ होगी। न कोई फोन न पत्र, बस कहीं से इतना पता चल गया था कि तुम शायद यहीं, लड़कियों के कॉलेज में संगीत की लेक्चरर हो। वह भी कहीं से तुम्हारा पता मिल गया था तो नोट कर लिया था। यहाँ शरदोत्सव तो एक बहाना भर था यहाँ आने के लिए।

मोती ने ताला खोला दिया था। मोहिनी मोती के साथ अंदर आ गई। पीछे-पीछे अमल, बहुत खूबसूरत ड्राईंगरूम था। कलात्मक ढंग से सजाया गया था। सामने दीवार पर मीरा की बड़ी सी पेंटिंग लगी हुई थी। उस ड्राईंगरूम में यही मीरा की पेंटिंग ही ज्यादह मुखर थी। सितार को बेला के फूलों से बनाया गया था। कुछ हल्की रोशनी में मीरा का चेहरा उतना उजागर नहीं हो पा रहा था। अमल आगे बढ़ कर कुछ टटोलते से उस पेंटिंग के सामने जा कर खड़े हो गए और मोहिनी से कहा- ‘‘जरा तेज वाला बल्ब जला दो। कहीं तुम्हारा चेहरा तो नहीं है यह।‘‘

मोहिनी ने बल्ब का स्विच ऑन करते हुए कहा, ‘‘है तो मेरा ही चेहरा। एक शौकीन चित्रकार ने मुझसे इसी तरह घंटों बिठला कर यह पेंटिंग तैयार की थी।‘‘

अमल पेंटिंग को निरखते हुए बोले- ‘‘तुम्हारा सितार पकड़ने का वही पुराना अंदाज है, यही नहीं जान पड़ता कि किन तारों को छेड़ा जाए। तुम्हें, या तुम्हारे हाथ में पकड़े हुए सितार को।‘‘

‘‘मुझे याद आ रहा है, तुम पहले भी ऐसा ही कहा करते थे। जब बाबू जी के सामने सितार लेकर बैठती थी।‘‘ मोहिनी ने हँसते हुए कहा। फिर बोली- ‘‘अच्छा, बाबू जी अब कैसे हैं, कभी मेरी याद करते हैं या नहीं....हालांकि मैं उनकी बहुत प्रिय शिष्या थी, अमल ने सोफे पर बैठते हुए कहा- ‘‘वह जरूर याद करते होंगे, कितने सालों तक रह कर आखिर तुमने बाबू जी की सेवा की है। भला वह भूल पाएंगे?‘‘

अमल के पास बैठती हुई मोहिनी ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा- ‘‘तुम तो मुझे भूलने के लिए मजबूर हुए होगें।‘‘ फिर उसने एक अर्थ के साथ पूछा- ‘‘यहाँ अकेले क्यूं आए हो पत्नी को साथ लेते आते। मैं भी उन्हें देख लेती। तुमने कभी देखने का मौका ही कहाँ दिया‘‘

उसकी इस बात पर अमल उसका चेहरा देखते भर रह गए। जैसे उनके पास कहने के लिए सारे शब्द ही चुक गए हों। फिर उन्होंने हँसकर पूछा- ‘‘ तुम्हें कैसे मालूम मैने शादी कर ली।‘‘

मोहिनी ने एक अजीब भाव से मुस्कुरा कर कहा- ‘‘मालूम तो नहीं होना चाहिए मुझे और न तो यह सवाल ही पूछना चाहिए था।‘‘

‘‘क्यों....?‘‘

‘‘तुमने अपनी शादी की खबर दी थी?‘‘ मोहिनी ने जैसे किसी गहरे भाव को अंदर दबाते हुए हँस कर कहा, ‘‘वह तो एक म्यूजिक कांफ्रेस में गई थी। तुम्हें भी वहीं जाना था लेकिन तुम नहीं आए। पता चला कि उसी तारीख में तुम्हारी शादी थी।‘‘

तभी जैसे अमल ने इस प्रसंग को मोड़ना चाहा- ‘‘अभी मैं करीब एक हफ्ता यहाँ तुम्हारे पास रहूंगा। सब पूछ लेना। अभी तो मुझे जोरों की भूख लगी है।‘‘

मोती शायद किचेन में चला गया था चाय बनाने। वह अभी चाय लेकर आया है। उसने खाने की बात सुन ली थी। उसने सामने मेज पर चाय की ट्रे रखते हुए मोहिनी से पूछा, ‘’मेम साहब, खाने में क्या बनाऊँ?‘‘

‘‘आज तुम मत बनाना खाना, अमल बाबू के लिए अब खाना मैं ही बनाया करूँगी। इन्हें चार पांच सालों तक मुंबई में मैने ही खाना बना कर खिलाया है। इनकी पसंद भी अजीब ही है। सब्जी में तेल ज्यादह नहीं होना चाहिए, मिर्ची कम होनी चाहिए, हरी सब्जी ही चाहिए।‘‘

‘‘ओह...मोहिनी, तुम्हें सब याद है, वैसा का वैसा‘‘

उनकी इस बात पर मोहिनी अचानक चुप हो गई। फिर जैसे अंदर किसी धुंधलाए अतीत को पोंछते हुए मुस्कुरा कर कहा- ‘‘सच पूछो तो तुम मुझे जरा भी याद नहीं थे और न तो कभी उस तरह याद ही पड़े जिस तरह याद करके एक सुख मिलता है। बस, आज अचानक तुम्हें देख कर बहुत ही अच्छा लगा जैसे कोई गुम गयी या फिर मनचाही वस्तु, लेकिन भूली सी पड़ी हुई अचानक मिल जाने पर जो वह मन को बहुत अच्छा लगता है उसी तरह तुम्हें भी अचानक अपने पास पा कर मन को बहुत ही अच्छा लगा है, बस...‘‘

‘‘मेरे पास भी न तो भूलने के लिए कुछ है और न याद करने के लिए ही.....।‘‘ अमल ने एक फीकी मुस्कान के साथ कहा। मोहिनी ने अमल के चेहरे पर जैसे अभी घिर आए अव्यक्त भावों को पढ़ते हुए मुस्कुरा कर कहा- ‘‘बहुत टूटे से लग रहे हो?‘‘ फिर उसने एक गंभीर लहजे में कहा- ‘‘वैसे तुम शायद सही कह रहे हो। जिसके पास न कोई खास अतीत ही हो न तो वर्तमान हो और न भविष्य का भी कुछ अता पता हो ...तो उसे कहाँ जीना चाहिए। मैं तो सोचती हूँ....कहीं इन तीनों के अतिरिक्त भी यदि कोई पल बनते हों तो उन्हें ही जीना चाहिए!‘‘

अमल उसकी कही गई बातों का अनबूझा सा अर्थ टटोलते रह गए हैं और फिर बोले- ‘‘सितार से ज्यादह तुमने अपनी जिंदगी का रियाज किया है। बहुत दार्शनिक हो गई हो!‘‘

वह फिर एक अर्थ के साथ हँस पड़ी है और उसने उठते हुए कहा, ‘‘तुम फ्रेश हो लो। मैं किचेन में तुम्हारे लिए खाना बनाने चलती हूँ, इस वक्त क्या खाओगे?‘‘

‘’कुछ भी, जो जल्दी बन जाए।‘‘ अमल ने कहा- ‘’अंडे हो तो आमलेट और पराठें बना लो।‘’

मोहिनी अचानक जाते-जाते ठिठक सी गई और फिर आश्चर्य से पूछा- ‘‘आप और अंडे। इतने शुद्ध शाकाहारी, यह सब कबसे खाने लगे।...लगता है उनके आने पर ही यह सब सीखा होगा।‘‘

‘‘मेरे स्वाद में बहुत कुछ बदलाव आया है‘‘ अमल ने हँस कर कहा,‘‘ मैं बदला हूँ या फिर स्वाद, यही नहीं जान पाया।‘‘

अभी जिस ढंग से अमल यह बात कह गए थे, उससे बहुत कुछ उनके चेहरे पर उभरा था। मोहिनी कुछ पलों तक उनके चेहरे को निरखती रही और फिर चुपचाप किचेन की तरफ चली गई, शायद मानस के बदलाव को सोंचते हुए।

अमल चाय पी कर फ्रेश होने चले गए।

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