कामनाओं के नशेमन
हुस्न तबस्सुम निहाँ
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अमल फ्रेश हो कर ड्राइंग रूम में आकर बैठ गए थे। मोती से एक शीशे का गिलास मांगा। वह किचेन से स्टील का गिलास उठा लाया। अमल ने कुछ दबे स्वरों में कहा, ‘‘स्टील का नहीं, शीशे का गिलास चाहिए।‘‘
वह दोबारा किचेन में चला गया। मोहिनी खुद शीशे का गिलास लेकर आई। मोती प्लेट लेकर आया था। सामने शीशे का गिलास रखते हुए मोहिनी ने बड़े कुतुहल के साथ अमल का चेहरा देखते हुए पूछा, ‘‘स्टील के गिलास पें पानी पीना कबसे छोड़ दिया है?‘‘
‘‘थोड़ी सी व्हिसकी पियूंगा, बहुत थक गया हूँ, तुम्हें कोई एतराज तो नहीं?‘‘ अमल ने बहुत ही सहज भाव से कहा।
‘‘अमल, बहुत बदल गए हो तुम।‘‘ मोहिनी ने एक गहरी सांस लेकर कहा- ‘‘कैसी थकान मिटाना चाहते हो, अपनी जिंदगी की यात्राओं की थकान या फिर सिर्फ इन पहाड़ी या़त्राओं की थकान?‘‘
‘‘थकान की कोई परिभाषा नहीं होती। क्या कभी व्यक्ति बिना किसी यात्रा के नहीं थक जाता।‘‘ अमल ने शायद अपनी थकान को एक अव्यक्त ढंग से परिभाषित करते हुए हँस कर कहा।
मोहिनी चुपचाप अमल के सामने बैठ गई। अमल ने गिलास में ह्विस्की भरने के लिए बोतल उठानी चाही लेकिन मोहिनी ने लपक कर अपने हाथों से उस बोतल को उठा लिया और फिर मुस्कुरा कर बोली- ‘‘लाओ, मैं तुम्हारे गिलास में अपने हाथ से डालती हूँ। सुना है स्त्री जब अपने हाथ से किसी पुरूष को शराब पिलाती है तो उसमें एक अलग ही नशा होता है।‘‘
‘‘क्या पता, आज पहली बार कोई स्त्री डाल रही है। अब तो पीने के बाद ही पता चलेगा कि कितना नशा होता है।‘‘ अमल ने जैसे किसी दहकते मर्म को ठंडा करने का प्रयास करते हुए हँसकर कहा।
‘‘मैं भी पहली बार आज किसी पुरूष को अपने हाथों से पिला रही हूँ‘‘ मोहिनी ने हँस कर कहा, ‘‘कितना भरूं गिलास में, यह अंदाज नहीं है मुझे‘‘
‘‘गिलास में भरते-भरते जहाँ तुम्हारा हाथ रूक जाए, वहीं समझ लो मेरे पीने की सीमा है।‘‘ अमल ने एक गहरे अंदाज में मोहिनी को देखते हुए हँस कर कहा।
‘‘बोलना, कितना‘‘ मोहिनी ने डालते हुए पूछा।
‘‘क्या बोलूं। जितना जी में आए, गिलास में डाल दो।‘‘ अमल ने बहुत ही उदासीन भाव से कहा और फिर उसके चेहरे पे तिर आए एक चकित से भाव को पढ़ते हुए अमल ने बहुत गंभीर स्वरों में कहा- ‘‘अभी तुम मेरे बारे में सोचने लगी होगी, मैं वही अमल हूँ। कोई देवदास नहीं बन गया हूँ। गम का मारा हुआ या फिर किसी प्रेम में हताश किसी नायक की तरह टूटा हुआ-सा व्यक्ति नहीं। बस, शराब अच्छी लगने लगी है।...वैसे तुम मत डरना कि मैं पी कर तुम्हारे पास बहक जाऊँगा।‘‘
मोहिनी ने एक फींकी हँसी के साथ कहा- ‘‘जब तुम्हारे पास उतने सालों तक रही और तुम नहीं बहके तो अब क्या बहकोगे।‘‘
अमल ने इन क्षणों में मोहिनी की आँखों में हठात् तिर आई एक बसियाती सी कुंठा को झलकते हुए देखा जिसे कभी उन्होंने बहुत पहले महसूस किया था। वह चुपचाप मोहिनी को निहारते ही रह गए हैं।
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खाना खाने के बाद अमल ड्राईंग रूम में ही सोफे पर पसर कर लेट गए थे। मोहिनी भी वहीं पास में बैठ गई। तभी मोती अंदर से पान लगा कर ले आया। पहले अमल की तरफ पान बढ़ाते हुए बोला-‘‘ जर्दा दूं साहब?‘‘
इस बार मानस ने बहुत गहरे पैठ कर जैसे मोती की ओर देखा, ऊपर से नीचे तक। बहुत ही मासूम सा बड़ी-बड़ी आँखों वाला गोरा चिट्टा लड़का। अभी उसके रेफ नहीं निकली थी। उसके बाल आँखों के ऊपर आ कर गिर रहे थे। वह एक सहजता के साथ ऊपर की ओर झटक कर बाल पीछे कर लिया करता था। ऐसा करना कुछ प्यारा लगता था। उस लड़के का कंमेंट उसके बारे में मोती चुगने वाली मैना जैसा ही मोहक लगा था। वैसे यह उम्र बिल्कुल कोरी होती है। उस नई नोटबुक की तरह जिसमें न कुछ लिखा होता है और न मिटा होता है। बस उस कोरेपन को देख कर जरूर एक बार मन ललकता होगा ताकि उस पर कुछ लिखा जाए....बेमतलब...। एक मोहक व्यर्थता के साथ।
मोती पान का बीड़ा लिए खड़ा रहा। उसने अपनी आँखें अमल की टकटकी से शायद एक अर्थहीन लज्जा के कारण झुका लीं थी। तभी मोहिनी ने हँस कर पूछा- ‘‘पान खाना सीखे या नहीं?‘‘
‘‘तुम पान अपने हाथ से लगाओगी तो वह भी खाना सीख जाऊँगा।‘‘ अमल ने भी हँस कर कहा, आगे बोले, ‘‘वैसे तुम कबसे खाने लगीं, यहाँ आ कर या इससे पहले से ही।‘‘
‘‘मैं तो पान, जर्दा सब खाती हूँ‘‘ मोहिनी ने मुस्कुरा कर कहा- ‘‘जिंदगी के जहर को जब हर पल खाती रहती हूँ तो यह तो सिर्फ पान और जर्दा ही है...‘‘फिर उसने मोती के हाथ से पान का बीड़ा लेते हुए कहा- ‘‘पान वाला डिब्बा उठा ला, मैं साहब के लिए अपने हाथ से पान लगाऊँगी।‘‘
मेाती पान का डिब्बा लेने अंदर चला गया। अमल ने उसे जाते देखते हुए पूछा- ‘‘बड़ा प्यारा लड़का पा गई हो काम के लिए...कबसे है तुम्हारे पास?‘‘
इस प्रश्न पर मोहिनी कुछ पलों के लिए अमल की आँखों में जैसे किसी आशंका को टटोलने लगी थी। शायद कभी-कभी किसी गुनाह का कुछ भी अर्थ न होते हुए भी व्यक्ति स्वयं को गुनहगार जैसा महसूस करने लगता है। फिर उसने कुछ ऐसे ही एहसास से जुड़ते हुए कहा था- ‘‘एक दो साल पहले मेरे पास आया है। यहीं किसी गोंड जनजाति का बिना माँ बाप का लड़का है। मेरे यहाँ अकेलेपन के लिए बड़ा सहारा मिल गया है। सारा काम कर लेता है। सब सिखला दिया है। खाना बनाना, नाशता तैयार करना।‘‘
‘‘अकेलेपन का सहारा बहुत ही मासूम हो तो सारा अकेलापन कट जाता है।‘‘ अमल ने अभी न जाने किस भाव में मोहिनी की ओर देखते हुए मुस्कुरा कर कहा- ‘‘वैसे हनी, बहुत भीड़ में भी किन्हीं-किन्हीं स्थितियों में बहुत अकेलरपन महसूस होता है।‘‘
मोहिनी को शायद उसे अमल द्वारा पुराने निकनेम ‘हनी‘ से पुकारना अच्छा लगा है। जैसे उसे, किसी ने गहराई से उसके मन को छू कर बोला हो। इस वक्त शायद वह उस बात से कट सी गई है और अमल के साथ एक गहरी आत्मीयता के साथ जुड़ती हुई बोली है- ‘‘अमल, आज बहुत दिनों बाद किसी ने हनी के नाम से मुझे पुकारा है। अरसा हुआ किसी के मुँह से सुने हुऐ अपने लिए ये शब्द। ये शब्द तुम्हारे पास ही जैसे छोड़ आई थी।‘‘
तभी मोती पान का डिब्बा लेकर आ गया। कभी किसी गुलदस्ते में ढेर सारे महकने वाले फूल लगे हों तो यह तय कर पाना मुशकिल होता है कि किस फूल की महक आ रही है। शायद अभी इन्हीं क्षणों में, वहाँ कुछ ऐसी ही महक गडमड हो गई थी। कुछ इस तरह जैसे कुछ उपस्थितियां भी महकने लगती हैं, यह बताना मुशकिल हो जाता है कि किस उपस्थिति से कौन सी गमक उठ रही है।
‘‘पान खाया करो‘‘ मोहिनी ने जैसे सारी बातों की दिशा बदलते हुए मुस्कुरा कर कहा- ‘‘तुम्हें तो और खाना चाहिए। कम से कम खाना खाने के बाद। शराब की महक जर्दे की महक से दब जाएगी‘‘
इस सहज सी बात पर अमल न जाने क्या सोच कर जोरों से हँस पड़े हैं। मोहिनी पान लगाते हुए अमल का हँसता हुआ चेहरा कुछ आश्चर्य से निहारने लगी है, जैसे वह किसी अर्थ को पकड़ने का प्रयास करने लगी हो। उसने पूछा- ‘‘इसमें हँसने वाली क्या बात है, क्या मैं गलत कह रही हूँ.....?‘‘
‘‘मुँह से कोई भी महक निकले, लेकिन यदि पास वाले के मन से कोई बहुत ही अंतरंग लगने वाली महक उठ रही हो तो वह मुँह से निकलने वाली महक दब कर रह जाएगी। उसका एहसास अपने आप ही खत्म हो जाएगा।‘‘ अमल ने हँस कर कहा।
फिर अमल के हाथ में पान का बीड़ा थमाते हुए इस संदर्भ से जैसे कटती हुई बोली- ‘‘तुम बहुत थक गए होगे। मैं भी थक गई हूँ। वैसे मन नही करता कि तुम इतने सालों बाद मुझे इतने पास मिले हो और मैं सो कर यह पल गंवा दूं। कितनी बातें पूछनी हैं।....कल से तुम्हारे पास ही बैठी रहूँगी। जितने दिनों तक रूकोगे, उतने दिनों के लिए कॉलेज से छुट्टी ले लूंगी‘‘ मोहिनी ने मुस्कुरा कर कहा। फिर धीरे से बोली- ‘‘वैसे, तुम्हारा बिस्तर कहाँ लगवा दूँ?‘‘ किसी और का यह पूछना बड़ा मादक सा सवाल पैदा करता है। वह भी जब उसके पास आए पुरूष का कुछ भी गमगता अतीत हो। इस बिस्तर लगने वाले प्रश्न पर जैसे दोनों एक दूसरे की ओर किसी अर्थ को एक दूसरे में जैसे ढूंढ़ने लगे हों। मानस ने धीमी आवाज में कहा-
‘‘मुझे देर रात तक जगने की आदत है। अकेले पड़े-पड़े मन ऊबेगा। बिस्तर पास ही लगवा दो। तुमसे बतियाते-बतियाते सो जाऊँगा।‘‘
फिर मोहिनी ने अमल की आँखों में देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुँचते हुए मोती से कहा- ‘‘तू जा कर बरांडे में सो जा‘‘
मोती चुपचाप बाहर चला गया। फिर उसके जाने के बाद मोहिनी ने अमल की ओर मुड़ते हुए हँस कर कहा- ‘‘मेरे पास तुम्हारे सोने को लेकर मेरे मन में कोई कॉम्प्लेक्स नहीं है। क्या पहले तुम्हारे कमरे में मैं सोई नहीं हूँ। साथ-साथ अर्थहीन सा सोना और साथ-साथ अर्थहीन सा जागते रहना...तुम्हारे मन में कोई कॉम्प्लेक्स न हो इसलिए मैने पूछा था। चलिए अंदर बेडरूम में। वहीं लेटे-लेटे बात करेंगे।‘‘
जिस सहजता से अभी मोहिनी ने बेडरूम में चलने के लिए कहा है, अमल को लगा जैसे वे किसी झरने के नीचे आ गए हों जहाँ एक उष्ण जल से भींगना अपने आप में एक मोहक विवशता होती है। झरने को तो गिरने से रोका नहीं जा सकता। वह तो अपनी सहजता के साथ जल गिराता चला जाएगा। अविराम....पूरी सहजता के साथ।
अमल उठ कर मोहिनी के साथ बेडरूम में चले गए हैं। इस तरह बेडरूम में जाने का कुछ पलों वाला भविष्य भी किसी पुरूष के लिए इतना अनजाना सा होता है जैसे किसी पलाश के वृक्ष के उस फूल के भविष्य की तरह कि वह हवा के तेज झोके को भी सह पाएगा या नहीं। वृक्ष की डालियों से लगे रहना या फिर झर कर नीचे गिर जाने का अनजाना-सा भविष्य।
बेडरूम में पहुँच कर अमल ने देखा- वहाँ सिर्फ एक ही बेड था। चौड़ा सा। बिना किसी हिचक के बहुत ही सहज भाव में मोहिनी ने कहा- ‘‘यहाँ रात में ठंड बहुत ही बढ़ जाती है। तुम्हारे लिए कंबल देती हूँ, मैं तो यहाँ के मौसम की अभ्यस्त हो चुकी हूँ।‘‘
इतना कह कर वह कंबल निकालने सामने आलमारी की तरफ चली गई। अमल उसका चुपचाप जाना खड़े देखते रहे। वह कंबल निकाल कर जब लेकर आई तो उसने अमल को अभी तक ऐसे ही खड़े पा कर पूछा- ‘‘अभी खड़े क्यों हैं, लेटिए।‘‘
‘‘तुम कहाँ सोओगी?‘‘ अमल ने कुछ कुतुहल के साथ मोहिनी का चेहरा निहारते हुए पूछा।
इस प्रश्न पर उसने अमल का चेहरा पलों तक देखा और फिर हँसते हुए कहा- ‘‘यहीं, तुम्हारे पास...एक साथ सोने में मेरे अंदर कोई कॉम्प्लेक्स नहीं है। तुम्हारे मन में हो तो नहीं कह सकती। ‘‘
अमल ने बेड पर लेटते हुए कहा ‘‘हनी, तुममें बड़ी निर्भीकता आ गई है। पुरूषों के प्रति तुम्हारे अंदर से जैसे सारे सहम खत्म हो चुके हैं‘‘
अभी जिन अर्थों में अमल ने यह बात कही थी, उसे महसूस कर मोहिनी ने हँस कर कहा- ‘‘ऐसे में तुम जैसे पुरूष से क्या डरना।....क्या छीन लोगे मेरा। सुख छीन लोगे, वह छिनता नहीं है। मिलता ही है दोनों को।‘‘ फिर उसने अमल के ऊपर कंबल डालते हुए कहा था- ‘‘पता नहीं किस वस्तु की रक्षा के लिए स्त्री ऐसी सहम पाले रखती है। मुझे ऐसी किसी भी हिफाजत करने वाली चीज पर विश्वास नहीं है। यह तो बिल्कुल एक स्वाद की तरह है। बिल्कुल क्षणिक। उस चॉकलेट की तरह जो कुछ पलों तक मुँह में एक बहुत ही सुखद स्वाद का एहसास देता रहे और फिर खत्म।‘‘
‘‘यार हनी, तुम तो बड़ी अनुभवी हो गई हो। एकदम बेबाकी से सारा कुछ कह जाती हो।‘‘ अमल ने उसके चेहरे पे तैरते हुए एक बहुत ही असहज पलों मे सहजता के भावों को निरखते हुए हँस कर कहा। फिर कुछ सोंचते बोले- ‘‘शादी कर ली तुमने?‘‘
‘‘इन पलों में मेरे हाँ या न कहने से तुम्हें क्या मिल जाएगा। तुम्हारे इस सवाल के किसी जवाब से मुझमें कुछ फर्क आ जाएगा क्या? एक बात कहूँ?‘‘
‘‘क्या?‘‘
‘‘अब जब तक तुम यहाँ मेरे पास हो, हम दोनों किसी से कुछ भी उसके बारे में सवाल नहीं पूछेंगे-ठीक..?‘‘ उसने कुछ अजीब तेवर के साथ कहा।
‘‘ठीक।‘‘ अमल ने हँस कर कहा- ‘‘लेकिन नींद नहीं आ रही है, इतना थक कर भी...तुमसे बतियाऊँगा जरूर‘‘
‘‘इतने वर्षों बाद मेरे पास आए और तुम्हें इतनी जल्दी नींद आने लग जाए तो मुझे ही तकलीफ होगी।‘‘ मोहिनी ने मुस्कुरा कर कहा और फिर अमल की बाजू में लेट गई। इतने समीप रहने पर भी यदि अचानक एक सन्नाटा तन जाए तो उस सन्नाटे में ढेर सारे अर्थ स्वतः घुलने लगते हैं। जैसे ढेर सारे अर्थों की सिराएं लटक जाती हैं और दोनों जैसे अपना-अपना सिरा पकड़े उस अर्थ को चुपचाप सहलाते रह जाते हैं। तभी मोहिनी ने हँस कर कहा-
‘‘ तुम्हे न तो नींद आ रही है और न ही तुम कुछ बोल रहे हो, क्या बातें करने के लिए कुछ भी नहीं है सिवा मुझे चुपचाप देखने के अलावा?‘‘
‘‘सब कुछ चुक गया है जैसे।‘‘ अमल ने हँस कर कहा- ‘‘तुम्हें देखने और किसी अबूझ पहेली की तरह तुम्हें समझने का एक अलग ही सुख मिल रहा है।‘‘
‘‘न पहेली थी, न अब भी हूँ....समझे‘‘ मोहिनी ने कुछ तेज स्वरों में कहा- ‘‘यदि पहेली हूँ भी तो सिर्फ अपने लिए ही। खुद को पहेली बनाती हूँ और खुद ही बूझने का प्रयास करती हूँ।‘‘
अमल मुड़ कर बाजू में लेटी मोहिनी को देखने लगे। चुपचाप। फिर जैसे मोहिनी ने ही उकता कर पूछा- ‘‘तुम पचमढ़ी आए कैसे?‘‘
‘‘सिर्फ तुम्हारे पास कुछ दिन रहनें‘‘
‘’...कोई बेकार सी चीज बहुत वर्षों तक यूंही उपेक्षित सी गुम सी पड़ी रहे और उसे अचानक ढूंढ़ा जाए तो उस चीज में जरूर कहीं से सार्थकता महसूस की गई होगी। मैं कैसे सार्थक लग गई इतने वर्षों बाद?‘‘
‘‘मैंने महसूस किया तुममे जरूर सार्थकता है मेरे लिए। तभी तो चला आया तुम्हारे पास।‘‘ अमल ने इस बार जैसे किसी मर्मज्ञ व्यक्ति की तरह कही थी यह बात।
‘‘यहाँ घूमने आए हो लेकिन अभी तो छुट्टियां भी नहीं हैं। सच बोलो यहाँ कैसे आए?‘‘ मोहिनी ने बड़ी आत्मीयता से पूछा।
‘‘सुखद पलों को जी लेने की लालसा के लिए मन किसी छुट्टियों का इंतजार नहीं करता। बस समझ लो एक प्लेजर ट्रिप पर यहाँ चला आया। इसलिए नहीं कि यह पहाड़ी जगह है, सिर्फ तुम्हारे पास आया हूँ।‘‘
मोहिनी कुछ देर तक अमल का चेहरा तकती रही और फिर बोली- ‘‘जहाँ तक मुझे याद पड़ता है तुमने कभी भी किसी प्लेजर या ऐसे सुखद पलों को जीने में कोई रूचि नहीं दिखलाई थी। तुम बहुत ही सीरियस किस्म के व्यक्ति थे। सितार पर सिर्फ रियाज...रियाज...सितार के अलावा तुम्हारे पास कुछ भी नहीं था। अब तुम किसी प्रोग्राम में भी कभी नहीं जाते हो। न तो रेडियो न दूरदर्शन पर सुनाई या दिखाई पड़ते हो, कहाँ डूबे रहते हो?‘‘
‘‘देखो हनी, ऐसे सवालों से तुम्हें कुछ नहीं मिलना है। मेरा यहाँ आना बर्बाद मत करो।‘‘ कुछ खीझते हुए अमल ने कहा।
‘‘सही कहते हो‘‘ मोहिनी ने फिर एक पीड़ा के साथ बहुत ही आत्मीय स्वर में कहा- ‘‘बहुत जीनियस हो तुम अमल, तुम्हें सुनने के लिए लोगों में क्रेज है। सितार पर जब तुम्हारी उंगलियां चलती हैं तो लगता है कि जैसे समुद्र में लहर उठ रही हो। क्या सब खत्म करते जा रहे हो?‘‘ अमल क्षणों तक मोहिनी के इस भयानक प्रश्न से जैसे बिंधते रहे और फिर एक गहरे तल से निकलते हुए कहा- ‘‘यदि सब कुछ खत्म भी हो जाएगा तो भी मेरे अंदर कोई मलाल नहीं रहेगा। अपना सबकुछ खो देने पर भी यदि मैं कुछ ज्यादह प्रिय चीज पा लेता हूँ तो खोने का जरा भी एहसास नहीं करूंगा।‘‘ फिर अमल ने जैसे उन क्षणों से उबरना चाहा हो और उन्होंने मुस्कुरा कर मोहिनी की पलकों पर उंगलियां फिराते हुए कहा- ‘‘छोड़ो इन सब बातों को...मैं यहाँ सिर्फ तुम्हारे पास कुछ दिन सुखद क्षणों को जीने आया हूँ....प्लेजर ही प्लेजर हो।‘‘ इतना कह कर अमल ने जाने किस आवेग में मोहिनी की बांह पर हाथ रख दिया। अमल के स्पर्श से जो एक पुरूषवत् आंच अभी मोहिनी को महसूस हुई है, वह हतप्रभ सी रह गई है। वह उनकी आँखों में जैसे कुछ टटोलने लगी हो और फिर उसने कहा- ‘‘क्या बात है, इन तीन सालों में उनसे मन भर गया क्या, क्या नाम है पत्नी का?‘‘
‘‘बेला‘‘
‘‘बड़ा प्यारा नाम है उनका। अब बेला में तुम्हें खुशबू नहीं मिलती क्या?‘‘ मोहिनी ने एक गहरे कटा़क्ष के साथ कहा- ‘‘तुम पुरूषों में यही बात अजीब होती है कि बहुत जल्दी औरतों से ऊबने लगते हो। फिर तलाश शुरू हो जाती है। यदि कहीं स्त्री भी इसी तरह ऊब कर दूसरे पुरूष की तलाश शुरू कर दे तो सारी मान्यताएं, मर्यादाएं जैसे सवाल स्त्रीपन पे खड़े होने लगते हैं। खैर, तुमसे इस संदर्भ में कुछ जानना नहीं चाहूँगी।‘‘ फिर मोहिनी ने थोड़ा रूक कर कहा- ‘‘मुझे याद पड़ता है एक रात जब मैंने वहाँ मुंबई में जब तुम्हारे यहाँ रह रही थी, इसी तरह, तुम्हारी तरफ एक तपती हुई आकांक्षा के साथ हाथ बढ़ाया था..याद है न...?‘‘