Eklavy book and story is written by ramgopal bhavuk in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Eklavy is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
एकलव्य - उपन्यास
ramgopal bhavuk
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
.................ऐसे मिला एकलव्य अंगुष्ठ हमारे देश के अधिकांश लोग भील बालक एकलव्य के बारे में केवल अंगुष्ठदान के प्रसंग से ही परिचित हैं। उसके सम्बन्ध में और अधिक जानने के लिये हम सभी उत्सुक रहते हैं। इसी प्रेरणा से, एकलव्य के बारे में शोध करना मेरे चिन्तन में समाहित हो गया। .........मैंने एकलव्य को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से महाभारत एवं उसके एक अंश कहे जाने वाले हरिवंश पुराण के प्रसंगों में खोजने का प्रयास किया है। लोक कथा एवं जनश्रुतियों के अतिरिक्त रामचरितमानस के प्रसंगों ने एकलव्य की कथा के विस्तार में सहयोग किया है। पाण्डव युग में
.................ऐसे मिला एकलव्य अंगुष्ठ हमारे देश के अधिकांश लोग भील बालक एकलव्य के बारे में केवल अंगुष्ठदान के प्रसंग से ही परिचित हैं। उसके सम्बन्ध में और अधिक जानने के लिये हम सभी उत्सुक रहते हैं। इसी ...और पढ़ेसे, एकलव्य के बारे में शोध करना मेरे चिन्तन में समाहित हो गया। .........मैंने एकलव्य को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से महाभारत एवं उसके एक अंश कहे जाने वाले हरिवंश पुराण के प्रसंगों में खोजने का प्रयास किया है। लोक कथा एवं जनश्रुतियों के अतिरिक्त रामचरितमानस के प्रसंगों ने एकलव्य की कथा के विस्तार में सहयोग किया है। पाण्डव युग में
2 द्रोणाचार्य और गेंद का प्रसंग जीवन में जब जब प्रोढ़ता यानी कि मृत्यु की निकटता अनुभव होती है, तब तब मानव के चित्त पर पूर्व के कृत्यों की झांकी भाषित होने लगती है। वही झांकी दुःख ...और पढ़ेनिवृत होने के बाद भी कुछ समय तक चित्त में अपना स्थान बनाये रखती हैं। आचार्य द्रोण प्रतिदिन की तरह चिन्तन में डुबे हुये गंगा स्नान के लिये निकले। उस समय सभी राजकुमार नित्य की तरह उनके साथ थे। ध्यानमग्न आचार्य स्नान करने के लिये कुछ अधिक गहरे जल में प्रवेश कर गये। वे चौंके और उनने अनुभव किया कि अचानक
3 परमहंस बाबा का सन्देश जीवन में जब कोई नया कार्य आरम्भ किया जाए उसके बारे में समस्त योजनाएँ पूर्व में ही बना ली जावें।आज यही सोचकर निषादराज हिरण्यधनु और उनकी पत्नी सलिला युवराज एकलव्य को गुरूदेव ...और पढ़ेके पास भेजने की तैयारी करने लगे। हिरण्यधनु ने उसे स्वर्ण मुद्रायें दी और संभलाकर रखने को कहा । वे उसे यात्रा के निर्देश दे रहें थे। यकायक वे बोले ‘‘मैं स्वयं आचार्य द्रोण के समक्ष उपस्थित होकर निवेदन करना चाहता था, लेकिन इन दिनों दस्युओं का आतंक अत्यधिक बढ़ गया है, इसी कारण मैं अपने पुरम को नहीं छोड़
4 पांन्डवों का प्रिय श्वान। आज निषादराज हिरण्यधनु अत्याधिक चिन्तित हैं। उन्हें लग रहा था कि यदि आरंभ से ही सांदीपनि आश्रम की ओर एकलव्य को प्रेरित किया होता, तो आज यह समस्या सामने ही न आती। द्रोणाचार्य की ...और पढ़ेपद्धति की साज सज्जा हम सबको आकर्षित करती रही और हमने एकलव्य को आचार्य द्रोण के यहां भेज दिया ? द्रोणाचार्य भी नीच जाति के युवक को राजकुमारों के साथ कैसे सिखाते ? आचार्य ने अपनी शब्दावली से सम्पूर्ण निषादजाति का अपमान किया है। जिस आदमी में सवर्ण अवर्ण का ऐसा विष भरा है , समझ नहीं आ रहा
5 कैसे स्वागत करूँ मैं गुरुदेव का ? सतत् अभ्यास से ही ...और पढ़ेअपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाया है। निश्चित उद्देश्य को लेकर जो अभ्यास किया जाता है वह उसमें सफल होकर रहता हैं किन्तु हम अपने कार्य का सही लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाते हैं। एकलव्य ने इसी सिद्धांत पर अपना लक्ष्य निर्धारित किया। वह उस पथ पर, मन को एकाग्र करके चलता रहा तो आज उसकी धनुर्विद्या ईर्ष्या का विषय बन गयी। उसने जो कुछ अर्जित किया, किसी की कृपा का फल नहीं बल्कि अपने श्रम और अभ्यास का परिणाम है। आज भारत वर्ष के