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ज़िन्दगी की धूप-छाँव - उपन्यास
Harish Kumar Amit
द्वारा
हिंदी लघुकथा
ख़ुशियों का एहसास
शनिवार होने के कारण दफ़्तर में छुट्टी थी. घर में था, पर तनाव बेहद ज़्यादा था. कुछ परेशानियाँ दफ़्तर की थीं, कुछ घर की. ज़िन्दगी जैसे एक बहुत बड़ी मुसीबत लगने लगी थी. बड़ा खिन्न और उदास-सा था मैं. ऐसे ही मिजाज़ के कारण पत्नी से भी ज़ोरदार झगड़ा हो गया था. फलस्वरूप न तो मैंने नाश्ता किया था और न ग्यारह बजे वाली चाय पी थी. अख़बार तक पढ़ने का मन नहीं कर रहा था. मैं अनमना-सा पलंग पर लेटा न जाने क्या-क्या सोचे चले जा रहा था.
ज़िन्दगी की धूप-छाँव हरीशं कुमार ’अमित' ख़ुशियों का एहसास शनिवार होने के कारण दफ़्तर में छुट्टी थी. घर में था, पर तनाव बेहद ज़्यादा था. कुछ परेशानियाँ दफ़्तर की थीं, कुछ घर की. ज़िन्दगी जैसे एक बहुत बड़ी मुसीबत ...और पढ़ेलगी थी. बड़ा खिन्न और उदास-सा था मैं. ऐसे ही मिजाज़ के कारण पत्नी से भी ज़ोरदार झगड़ा हो गया था. फलस्वरूप न तो मैंने नाश्ता किया था और न ग्यारह बजे वाली चाय पी थी. अख़बार तक पढ़ने का मन नहीं कर रहा था. मैं अनमना-सा पलंग पर लेटा न जाने क्या-क्या सोचे चले जा रहा था. सवा दो
ज़िन्दगी की धूप-छाँव हरीशं कुमार ’अमित' मजबूरियों की समझ बच्चा बड़ी बेसब्री से पापा के दफ़्तर से वापिस आने का इन्तज़ार कर रहा था. परीक्षाएँ पास आ रही थीं और उसकी अंकगणित की किताब गुम हो गई थी. स्कूल ...और पढ़ेअध्यापक ने सख़्त ताकीद की थी कि अगले दिन अंकगणित की किताब ज़रूर लेकर आनी है. इसी कारण बच्चा पापा के दफ़्तर से लौट आने का बड़ी बेचैनी से इन्तज़ार कर रहा था ताकि उनके साथ जाकर बाज़ार से नई किताब खरीदकर ला सके. कुछ देर में पापा घर आ गए. बच्चे ने सोचा कि पापा चाय-वाय पी लें, फिर
ज़िन्दगी की धूप-छाँव हरीशं कुमार ’अमित' रिश्तों का दर्द शाम के समय वह दफ़्तर से घर पहुँचा, तो उसे बहुत तेज़ भूख लगी हुई थी. उसने सोचा था कि घर पहुँचकर चाय पीने की बजाय वह पहले खाना खा ...और पढ़ेचाय-वाय बाद में होती रहेगी. मगर घर पहुँचने पर पता चला कि वहाँ का तो नज़ारा ही कुछ और है. दो-तीन बार घंटी बजाने पर सिर पर पट्टी बाँधे हुए उसकी पत्नी ने दरवाज़ा खोला था और फिर कराहते हुए जाकर बिस्तर पर ढह गई थी. पूछने पर पता चला था कि उसके सिर में बहुत तेज़ दर्द हो रहा
ज़िन्दगी की धूप-छाँव हरीशं कुमार ’अमित' डर शाम को घर पहुँचकर मैंने बहुत डरते-डरते खिलौने का डिब्बा मुन्नू के हाथ में पकड़ाया. उसका जन्मदिन बीते एक हफ़्ता हो गया था, पर उसका पसंदीदा खिलौना उसे जन्मदिन वाले दिन मैं ...और पढ़ेनहीं पाया था. वजह कड़की ही थी. इस महीने के शुरू में तनख़्वाह मिलने पर उसका खिलौना खरीदने की बात सोची हुई थी, पर तनख़्वाह मिलने पर घर खर्च का हिसाब-किताब लगाने पर उस खिलौने को खरीदने की कोई गुंजाइश बहुत चाहने पर भी निकल ही नहीं पा रही थी. फिर भी एक कम कीमत वाला खिलौना मैं उसके लिए
ज़िन्दगी की धूप-छाँव हरीशं कुमार ’अमित' चोरी इतवार की शाम को साहब ने अपने दोस्तों के साथ अगले दिन दोपहर को किसी रेस्टोरेंट में खाना खाकर फिल्म देखने का प्रोग्राम बना लिया था. हालाँकि अगले पूरे हफ़्ते हैड क्लर्क ...और पढ़ेछुटटी पर रहना था, पर साहब को विश्वास था कि खुद उनकी और हैड क्लर्क की ग़ैरमौजूदगी में दफ़्तर के दोनों क्लर्क किसी-न-किसी तरह सब संभाल ही लेंगे. फिर चपरासी भी तो था. तीन-चार घण्टे की ही तो बात थी. बस उन लोगों को शाम की छुटटी हो जाने के समय यानी पाँच बजे तक दफ़्तर में मौजूद-भर रहना था