Iti marg ki sadhna paddhati book and story is written by श्री यशपाल जी महाराज (परम पूज्य भाई साहब जी) in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Iti marg ki sadhna paddhati is also popular in आध्यात्मिक कथा in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
इति मार्ग की साधना पद्धति - उपन्यास
श्री यशपाल जी महाराज (परम पूज्य भाई साहब जी)
द्वारा
हिंदी आध्यात्मिक कथा
महर्षि अष्टावक्र प्रदत्त ब्रह्म-विद्या को अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग की परम्परा के सद्गुरुओं ने इस आधुनिक युग में आनन्द-योग के रूप में व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में आध्यात्मिक मूल्यों के सामन्जस्य एवं समुचित समावेश के साथ-साथ गृहस्थ धर्मानुकूल साधना पद्धति का विकास किया है।
साधना पद्धति जो परम पूज्य महात्मा श्री यशपाल जी महाराज (पूज्य भाई साहब जी) ने सरल एवं क्रियात्मक रूप से आज की परिस्थितियों को देखते हुए हम सबके लाभार्थ प्रस्तुत की है। उन तमाम प्रश्नों की गुत्थी सुलझाने की कुन्जी के समान है, जो हम से जुड़े हुए हैं। हम से जुड़े प्रश्न अक्सर यही हैं कि क्या हमारे जीवन का मकसद संसार में केवल कीड़े-मकोड़ों की तरह आना, जानवरों की तरह रहना, उन्हीं की तरह ही मर जाना ही है या कुछ और ? पूजा पाठ में समय क्यों बरबाद करें ? इससे क्या लाभ है ? भाई हम तो सच्चाई ईमानदारी से अपना काम करते हैं, पूजा पाठ के चक्कर में कौन पड़े ? इत्यादि-इत्यादि। इन तमाम प्रश्नों का समाधान पूज्य भाई साहब जी द्वारा लिखित साधना पद्धति मे लिपिबद्ध है। इस पुस्तिका मे परम पूज्य भाई साहिब जी ने सिलसिले के बुजुर्गों की तपस्या एवं कठिन साधनाओं से प्राप्त संकेतों एवं सूत्रों को सरल रूप से प्रस्तुत किया है । आनन्द योग की साधना पद्धति में राजयोग, सहजयोग, हठयोग, कर्मयोग, भक्ति योग व ज्ञान योग का समुचित समन्वय है। फलस्वरूप इस साधना से गृहस्थाश्रम के सम्पूर्ण सांसारिक कार्यकलाप धर्मानुकूल सम्पन्न होने के साथ-साथ सच्चा आनन्द, आध्यात्मिक चक्रों का जागरण, सुषुप्ति, सहज समाधि व जीवन-मुक्त अवस्था की स्थिति प्राप्त कर सकते है।
महर्षि अष्टावक्र प्रदत्त ब्रह्म—विद्या को हमारी परम्परा के सद्गुरुओं ने इस आधुनिक युग में आनन्द—योग के रूप में व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में आध्यात्मिक मूल्यों के सामन्जस्य एवं समुचित समावेश के साथ—साथ गृहस्थ धर्मानुकूल साधना पद्धति का विकास ...और पढ़ेहै। वास्तव में आनन्द योग का मार्ग ‘इतिमार्ग' (Method of addition) है, जिसमें अपनी दैनिक दिनचर्या में राम—नाम अर्थात् अपने इष्टदेव का नाम जोड़ना होता है अर्थात् ‘दस्त ब कार, दिल ब यार'।
परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी महाराज का जन्म गुरुवार, 5 दिसम्बर, 1918 को बुलन्दशहर (उ॰प्र॰)में हुआ। आपके पिता श्री सोहन लाल जी बुलन्दशहर जजी कचहरी में मुन्सरिम (प्रधान मुन्शी) थे। आपकी शिक्षा बुलन्दशहर एवं इलाहाबाद में हुई। शिक्षा ...और पढ़ेकरने के पश्चात् आप पोस्ट व टेलीग्राफ विभाग में टेलीग्राफिस्ट के पद पर नियुक्त हुए। नौकरी के साथ-साथ आप आई॰ई॰टी॰ई॰ (Institute of Electronics and Telecommunication Engineers) करके निरन्तर उन्नति करते-करते IETE के फैलो (Fellow) होकर पी. एण्ड टी. डिपार्टमेंट (P T Department) के टेलीकम्यूनिकेशन रिसर्च सेन्टर (Telecommunication Research Centre) के फाउन्डर डायरेक्टर (Founder Director) हुए और इसी पद से दिसम्बर, 1976 में सेवानिवृत्त हुए।
परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी (परम पूज्य भाई साहब जी महाराज) ने अपने सद्गुरुदेव परम सन्त महात्मा श्री बृजमोहन लाल जी महाराज (परम पूज्य दद्दा जी महाराज) द्वारा प्रदान की गई आनन्द-योग पद्धति के सिद्धातों को जनमानस में ...और पढ़ेव प्रसार हेतु अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग की स्थापना 1969 में की। आनन्द योग राजयोग का एक परिष्कृत प्रारूप है जिसमें राजयोग में आने वाली कठिनाईयों को दूर करके सहजता पूर्वक अध्यात्म के उच्चतम शिखर तक पहुंचा जा सकता है। आनन्द योग का पवित्र ज्ञान वही प्राचीन ब्रह्म-ज्ञान है जो महर्षि अष्टावक्र जी ने अपने प्रिय शिष्य राजा जनक को प्रदान कर उन्हें जीवन के वास्तविक उद्देश्य ‘‘आत्म-साक्षात्कार रूपी' सत्य का दिग्दर्शन कराया।
पहली बात इन सन्तों ने यह बताई कि परमात्मा ने बड़ी असीम दया-कृपा करके हमें मनुष्य योनि प्रदान की है। यह उसकी सबसे बड़ी देन है जो हमें प्राप्त है। मनुष्य योनि ऐसी योनि है, जिसमें परमात्मा ने हमें ...और पढ़ेबुद्धि दी है और कर्म करने की स्वाधीनता दी है। बाकी 84 (चौरासी) लाख योनियाँ, भोग योनियाँ हैं, बड़ी दया-कृपा करके हमें ईश्वर ने यह मौका दिया है और हमें इस अवसर का पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहिए।
पूजा क्यों और कैसे करें, एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। खासकर आज की इस दुनिया में, जबकि मनुष्य की व्यस्तता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और वह भूलता जा रहा है कि वह है क्या ?
पूजा क्यों करें?
एक बार जबलपुर ...और पढ़ेएक डाक्टर ने प्रश्न किया कि साहब, पूजा से क्या फायदा है? यह तो बेकार (Idler’s) लोगों का काम है। जिनके पास कोई काम नहीं है, माला लेकर बैठें, आधा घण्टा सुबह बर्बाद (waste) करें, आधा घण्टा शाम को बर्बाद करें। लेकिन जिनके पास काम है वे तो काम करें, हम लोग तो डाक्टर हैं, आधा घण्टे में एक दो मरीज बच सकते हैं। अगर पूजा में बैठे तो गया। क्या फायदा ? ईश्वर को किसने देखा है ? क्या पता, है या नहीं ?