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5. पूजा क्यों करें?

इति मार्ग की साधना पद्धति

 

5. पूजा क्यों करें?

 

(प्रवचन-संग्रह: परमसन्त महात्मा श्री यशपाल जी महाराज)

पूजनीय माताओं और बन्धुओ,

पूजा क्यों और कैसे करें, एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। खासकर आज की इस दुनिया में, जबकि मनुष्य की व्यस्तता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और वह भूलता जा रहा है कि वह है क्या ?

पूजा क्यों करें?

एक बार जबलपुर में एक डाक्टर ने प्रश्न किया कि साहब, पूजा से क्या फायदा है? यह तो बेकार (Idler’s) लोगों का काम है। जिनके पास कोई काम नहीं है, माला लेकर बैठें, आधा घण्टा सुबह बर्बाद (waste) करें, आधा घण्टा शाम को बर्बाद करें। लेकिन जिनके पास काम है वे तो काम करें, हम लोग तो डाक्टर हैं, आधा घण्टे में एक दो मरीज बच सकते हैं। अगर पूजा में बैठे तो गया। क्या फायदा ? ईश्वर को किसने देखा है ? क्या पता, है या नहीं ? भगवान है भी या नहीं, इस चक्कर में क्यों फँसा जाए ? अपना काम किया जाए सीधा-सीधा। ऐसा प्रश्न उस डाक्टर ने किया। इस सेवक ने Counter (प्रत्युत्तर) प्रश्न किया और वह यह था कि आप सोते क्यों हैं ? उस समय न खाते हैं, न कुछ पीते हैं। दो (पारी) लगायें, रात को भी काम करें, दुगुना (Double) कमायें, why waste time? समय क्यों बर्बाद किया जाए ? वह चकरा गये। बोले कि आप क्या कह रहे हैं ? अगर हम सोयेंगे नहीं तो बीमार पड़ जायेंगे ज्यादा से ज्यादा दो-तीन माह चलेगा और अधिक चलेगा नहीं। हम डाक्टर लोग तो जिसे नींद नहीं आती, जबरदस्ती सुलाते हैं। नींद की गोली देकर। इस सेवक ने पूछा भाई क्यों गोली देकर सुलाते हो, सोना क्यों जरूरी है? उत्तर मिला ‘‘उसे रेस्ट नहीं मिलेगा, आराम (Rest) तो बहुत जरूरी है।'' सेवक ने कहा-ऐसे इन्जेक्शन निकालो कि इन्जेक्शन दे दिया, आदमी काम करता रहे, सोये नहीं। भाई कितने भी इन्जेक्शन (Injection) लगा लो, सोना आवश्यक है, सोना पड़ेगा ही (Rest is essential) ? सोना क्यों आवश्यक है। देखिये आपकी जो विज्ञान Science है, वह अभी शरीर (Body) तक ही सीमित है। You have not gone beyond body  अभी आप शरीर से ऊपर नहीं उठ पाये हैं। वास्तव में जो हमारी personality (अस्तित्व) है वह जटिल Complex है।

हम यह शरीर ही नहीं हैं हमारे तीन शरीर हैं, एक तो स्थूल शरीर है जो सामने दिखाई दे रहा है नाक, कान, हाथ, पैर। दूसरा शरीर और है जो मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से मिलकर बना है। उसे हम सूक्ष्म शरीर कहते हैं। जितना सोच-विचार का काम है, वह सब इससे लिया जाता है। तीसरा शरीर और है, वह है कारण शरीर-आत्मा। चेतन और आनन्द आत्मा में ही है। और जहाँ आत्मा नहीं है। वह शरीर बेकार है। जिसे आप इतना प्यार करते हैं, आत्मा निकली और यह बेकार हो गया। तो आप यह भूल जाते हैं कि हमारे तीन शरीर हैं। आप सब कुछ इस स्थूल शरीर (Body) को ही समझे बैठे हैं। अब देखिये सोने में क्या होता है ? जब हम सोते हैं तो आँख देखने का काम नहीं करती, नाक सूँघने का काम नहीं करती, कान सुनने का काम नहीं करते और आप हिलते-डुलते नहीं। तो आपकी जितनी इन्द्रियाँ हैं, वे सब निष्क्रिय हो गईं। उन्होंने अपना-अपना काम छोड़ दिया। इसी का नाम  विश्राम (Rest) है। क्रियात्मक रूप से (Practically) यही होता है। और जब ये इन्द्रियाँ, निष्क्रिय हो गईं, तो इनका आधार है मन। ये मन में सिमट गईं। और इनको ताकत मन से मिलती है। खाने से नहीं मिलती, दूध से नहीं मिलती, इन्जेक्शन (Injection) से नहीं मिलती, मन से मिलती है। इन्द्रियाँ सिमट गईं मन में। और जब सुबह आप उठे, बिल्कुल प्रफुल्लित। काम करने की आपके अन्दर शक्ति है, ताकत है और यदि न सोयें तो दिन भर जम्हाई लेते रहेंगे, कुछ काम न होगा। तो सोना बहुत जरूरी है। हमने देखा कि इस शरीर को सुलाना, रेस्ट देना बहुत आवश्यक है।

ऐसे ही यह हमारा सूक्ष्म शरीर है जिससे हम सोच-विचार का काम लेते हैं। इसको भी नींद देना बहुत आवश्यक है। हमारे ऋषियों, महर्षियों ने इस बात को जाना, इसलिए उन्होंने कहा कि आधा घण्टा सुबह एवं आधा घण्टा सायंकाल भगवान की आराधना करो, पूजा करो। परमात्मा की पूजा करोगे तो भगवान में चित्त एकाग्र होगा,  चित्त-निरोध (Thoughtless) अवस्था अपने आप आ जायेगी। मन विचार शून्य (Thoughtless) हुआ कि निष्क्रिय हुआ, जैसे आपने इन्द्रियों को निष्क्रिय किया, मन को निष्क्रिय करिये। भगवान को मानिये या न मानिये कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन आप अपनी हस्ती को तो मानेंगे। You exist आपका अस्तित्व है और इसका सच्चा विकास (Development) करना आपकी Duty (फर्ज) है, भगवान आपकी पूजा का भूखा नहीं है। जो कुछ आप कर रहे हैं, अपने लिए कर रहे हैं। अगर आप अपना सच्चा विकास (Development) चाहते हैं तो जिस प्रकार शरीर को रेस्ट देना जरूरी है, उसी प्रकार मन को भी रेस्ट देना जरूरी है, और यह जो पूजा है, वह मन को रेस्ट देना है। मन को एक तरफ लगा देते हैं। मन का काम सोचना-विचारना है। उसे एक जगह लगा दिया, विचार-शून्यता आ गई। उसे रेस्ट मिलने लगा। जब मन को रेस्ट मिला तो क्या हुआ, उसका (Direct connection) सीधा सम्बन्ध आत्मा से हो गया और आत्मा में है आनन्द व चैतन्यता। आनन्द और चैतन्यता उस मन में आ गई। और उसके बाद आप कितना हल्का-फुल्का महसूस करेंगे - अनुपम शान्ति और आनन्द (Tranquillity and peace)। उसके बाद सुन्दर-सुन्दर विचार आते हैं। वह समस्यायें हल होती हैं, जो सारी जिन्दगी न हल हो सकीं। ऐसी ऊँची शक्ति प्राप्त होती है। और फिर सच्चे मनुष्य के भाव पैदा होते हैं। अपना सच्चा ज्ञान (Self Realization) प्राप्त होने लगता है। धीरे-धीरे आप जान जाते हैं कि आप क्या हैं? (You know what you are?) और जब हमें यह (Realization) अनुभव हुआ कि हम क्या हैं तो हमें अपना वास्तविक रूप नजर आता है कि कोई गैर नहीं हैं, सब हम ही हैं। जितने ऊँचे सन्त हुए, उनका अन्तिम निष्कर्ष यही है। महात्मा तुलसीदास जी ने कहा-

 

‘‘जड़ चेतन जग जीव जत, सकल राम मय जानि।''

 

सूरदास जी को हर प्राणी में, पशु में, लता में, वृक्षों में, भगवान कृष्ण ही नजर आते थे। Christ (ईसा) ने कहा ‘‘अपने पड़ौसी को भी अपनी आत्मा की तरह प्यार करो'' (Love thy Neighbour as thyself) लेकिन यह तब तक नहीं हो सकता जब तक यह अनुभव (Realization) न हो कि सब हम ही हैं। इस अनुभव (Realization) के लिए पूजा बहुत जरूरी है। पूजा का क्रियात्मक तरीका (Practical Method) हमारे महर्षियों ने बताया कि एक तरफ मन को लगाओ वह विचार-शून्य (Thoughtless) हो जायेगा। और अगर ऐसे ही विचार-शून्य (Thoughtless) करना चाहोगे तो नहीं होगा। बहुत लोग शून्य का ध्यान करने की कोशिश करते हैं, नहीं होता, अति कठिन (Most Difficult) है। यदि मन विचारों से शून्य होगा तो उसका सीधा सम्बन्ध (Direct Connection) आपकी आत्मा से हो जायगा। सुन्दर-सुन्दर भावना पैदा होगी फिर आप चाहेंगे कि संसार में जितने लोग हैं सब आनन्द से रहें, सब सुखी हों। दुख संसार से मिटे। दूसरों की सेवा करने के लिए आप अपना जीवन निछावर कर देंगे।

साइंस और टेक्नोलौजी (विज्ञान व तकनीकी) ने बड़ी भारी तरक्की की है। चन्द्रमा पर हम पहुँच गये, मिट्‌टी खँसोट लाये हम वहाँ से। दूरदर्शन (Television) पर देख भी लिया। और इस पार्थिव उन्नति (Material advancement) का नतीजा है कि हम अपने मन को रेस्ट नहीं देते। हम ऋषियों के बताये मार्ग पर नहीं चलते। इसलिए हमारी जितनी भी प्रवृत्तियाँ हैं वे सब पशुवत (Beastly) हैं। एक भी मनुष्य का गुण हमारे अन्दर नहीं है। बहुत कम लोग ऐसे हैं जिनमें मनुष्यता के गुण हैं। इसीलिए आज क्या है कि हर देश (Nation) हथियार बना रहा है और बड़े भयंकर हथियार, अणु-बम्ब (Atom Bomb) मिसाइल्स, जहरीली गैसें और क्या नहीं ?  And what not? एक से एक खतरनाक हथियार तैयार किये जा रहे हैं। किस लिए ? मनुष्य का दुश्मन कौन हो सकता है ? यही शेर, चीते। इनके लिए तो एक बन्दूक काफी है, एक राइफल बहुत है। इस सबकी क्या जरूरत है? मिसाइल्स की क्या जरूरत है? Atomic weapons की क्या जरूरत है? मनुष्य-मनुष्य को मारने के लिए हमारी अपनी ही Race- मनुष्य मात्र को बर्बाद करने के लिए। अपने को मारने के लिए और आज के आँकड़े ऐसे हैं कि ऐसे भयंकर, खतरनाक हथियार बन चुके हैं कि अगर गलती से चल जाएँ और Atomic war छिड़ जाये और इन सारे हथियारों का इस्तेमाल हो जाये तो जितने आज की दुनिया में मनुष्य मात्र (Human Beings) हैं उन्हें चालीस बार जन्म लेना पड़ेगा तब यह हथियार खत्म होंगे। पूर्ण सर्वनाश (Complete destruction) इतने खतरनाक हथियार हमने बनाये हैं। और पैसा कितना खर्च होता है इन पर ? अगर इस सारे पैसे को एकत्रित (pool) किया जाये और दुनिया की भलाई के लिए इस सारे पैसे को खर्च किया जाए (for the welfare of mankind) तो आज दुनिया की शक्ल बिल्कुल बदल जाये। यह पृथ्वी स्वर्ग हो जाए। न कोई आदमी बगैर काम के रहे, न कोई बगैर घर-बार का रहे। इतनी सुन्दर हालत हो जाय। परमात्मा ने हमारी पृथ्वी को स्वर्ग बनाया है। जितने एस्ट्रोनाट्‌स हैं, जिन्होंने उड़ाने भरी हैं, कहते हैं कि सबसे सुन्दर ग्रह पृथ्वी है। ऐसा सुन्दर कोई ग्रह नहीं है। तो भगवान ने तो स्वर्ग बनाया है। लेकिन मनुष्य ने अपनी कटुता से, नीच प्रवृत्ति से इसे नरक से बदतर बना रखा है। युद्ध पता नहीं कब छिड़ जाये।

आइन्स्टाइन ने बहुत सुन्दर लिखा है। जिसके बूते पर हम आज चन्द्रमा पर या कहाँ-कहाँ पहुँचे हैं। उसने लिखा हैः- I do not know how third world war will be fought but I definitely know that if fourth world war will be fought, it would be fought with sticks and stones (मैं नहीं जानता, दुनिया की तीसरी लड़ाई कैसे लड़ी जायेगी, परन्तु यह पूर्णरूप से जानता हूँ कि अगर चौथी लड़ाई हुई तो डन्डों और पत्थरों से होगी।) बहुत सही लिखा है। अगर एक दफा लड़ाई छिड़ गई और चाहे गलती से ही छिड़ गई तो सब सफाया। दुनिया की बड़ी बुरी हालत है। लेकिन सब अपने-2 अहंकार में चूर हैं। मैं बड़ा, मैं बड़ा, मेरा Nation बड़ा। जो सच्ची मनुष्यता (Human qualities) है, वह नहीं हैं। उसकी वजह यह है कि हम ऋर्षियों महर्षियों के बताये मार्ग को भूल रहे हैं।

तो हम देखते हैं कि भगवान्‌ आपकी पूजा का भूखा नहीं है। अपने विकास के लिए, मनुष्य मात्र की भलाई के लिए, संसार की भलाई के लिए (for your own development, for the welfare of mankind, for the welfare of the world). यह पूजा परम आवश्यक है, बहुत जरूरी है। जब मन को नींद आती है तो आत्मा को भी नींद आती है। कहा हैः-

 

जब दिल को नींद आ जाती है, और रूह भी गाफ़िल होती है।

तब मैं ही अकेला होता हूँ, और यार की महफ़िल होती है।

 

जब मन भी सो जाता है और आत्मा भी सो जाती है, तब परमात्मा का दिव्य दर्शन होता है। तब सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है। तो पूजा बहुत आवश्यक है। अगर हम अपना सच्चा विकास (development) चाहते हैं, सच्चा संसार का हित चाहते हैं, दुनिया का हित चाहते हैं, अपनी Human race (मनुष्य.मात्र) का हित चाहते हैं तो पूजा बहुत जरूरी है। आपको अपने मन को rest (रेस्ट) देना ही पड़ेगा। हमारे ऋषि-मुनियों ने अपने अनुभव से इस बात को जाना और इस बात पर जोर दिया कि हर मनुष्य को आधा घण्टा सुबह, आधा घण्टा सायँ संध्या-वन्दन ध्यान अवश्य करना चाहिये।

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