4. इति—मार्ग की साधना श्री यशपाल जी महाराज (परम पूज्य भाई साहब जी) द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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4. इति—मार्ग की साधना

इति मार्ग की साधना पद्धति

 

4. इति-मार्ग की साधना

(प्रवचन-संग्रह: परमसन्त महात्मा श्री यशपाल जी महाराज)

 

पूजनीय माताओं और बन्धुओं

पहली बात इन सन्तों ने यह बताई कि परमात्मा ने बड़ी असीम दया-कृपा करके हमें मनुष्य योनि प्रदान की है। यह उसकी सबसे बड़ी देन है जो हमें प्राप्त है। मनुष्य योनि ऐसी योनि है, जिसमें परमात्मा ने हमें विवेक बुद्धि दी है और कर्म करने की स्वाधीनता दी है। बाकी 84 (चौरासी) लाख योनियाँ, भोग योनियाँ हैं, बड़ी दया-कृपा करके हमें ईश्वर ने यह मौका दिया है और हमें इस अवसर का पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहिए। कहा है :-

 

बड़े भाग मानुष तनु पावा ।

सुर दुर्लभ सब ग्रन्थनि गावा।

साधन धाम मोक्षकर द्वारा।

पाय न जेहि परलोक सँवारा।।

 

ऐसी मनुष्य योनि जो हमें बड़े भाग्य से मिली है, जिसके लिए देवता भी तरसते हैं, क्योंकि यह मनुष्य योनि ही एक ऐसा साधन का क्षेत्र है और मोक्ष का दरवाजा है, इसमें ही परमात्मा ने हमें विवेक बुद्धि दी है, कर्म करने का अधिकार दिया है। यदि हम चाहें और प्रयत्नशील रहें तो उस परमपिता परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं। यह ऐसी योनि है, इसलिए देवता लोग भी इस योनि के लिए तरसते हैं। तो ऐसा अवसर ईश्वर ने हमें दिया है, हमें इसका पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहिए। जितने सन्त महात्मा हुए, जितने धर्म हुए, सबने इस मनुष्य योनि की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। कबीरदास जी ने कहा है :-

 

कबीरा हरि की भक्ति कर, तज विषया रस चोंच।

बार  बार  नहिं  पाइये, मानुष  जन्म की मौज।।

 

इस सेवक के गुरुदेव कहा करते थे :-

 

विषय वासना  के  आनन्दी, मिथ्या जनम बिगार।

मानुष जनम ‘गरीब' न फिर-फिर, करि ले हरि सों प्यार।।

 

ऐसा सुन्दर अवसर हमें परमात्मा ने दिया है। हमारे महर्षियों ने हमें बताया कि चाहे आप गृहस्थी हैं या सन्यासी, आपको आधा घण्टा प्रातः संध्या-वन्दना अवश्य करनी चाहिए और आधा घण्टा सायँकाल। यह दो समय निश्चित कर दिये कि संध्या वन्दना करनी चाहिए। हमारे देश में 99 प्रतिशत लोग परमात्मा को मानते हैं और अपने किसी न किसी ढंग से परमात्मा की पूजा करते हैं। कुछ लोग तो आधा घण्टे से ज्यादा भी करते हैं, लेकिन यदि हम उनसे पूछें कि आपको इस पूजा का क्या लाभ है? तो चार बातें बताने के बाद वह भी खामोश हो जायेंगे। पहली बात यह है कि भाई ईश्वर का नाम लेना अच्छी बात है, हमारे घर में मन्दिर है, हमारे दादा जी पूजा करते थे, हमारे पिताजी पूजा करते हैं, हम करते हैं, और हमारी देखा-देखी हमारे बच्चे भी पूजा करते हैं। God fearing हैं, अच्छा है और आप इससे ज्यादा क्या चाहते हैं? अगर हम यह पूछें कि इससे क्या कोई आन्तरिक लाभ हुआ तो बहुत कम ऐसे लोग हैं जो यह कहेंगे कि हुआ। इन सन्तों ने कहा कि हम एक तरीका बताते हैं। यदि आप इस तरीके से पूजा करेंगे तो आपको विशेष लाभ होगा और उन्होंने ऐसा तरीका बताया जो सर्व-सम्मत (Universal) जिसे हर कोई अपना सके, चाहे किसी मजहब का मानने वाला हो, चाहे किसी धर्म का अनुयायी हो। अपने धर्म के मत पर चलते हुए कर सके, ऐसी बात बताई और वह तरीका (Method) है आनन्द योग का जो हमारे सद्‌गुरुओं ने प्राचीन विद्या को आज के युग में प्रदान किया है।

ऐसी हमारी धारणा हो गई है कि हम गृहस्थियों के पास कोई रास्ता ही नहीं है, बहुत लोगों की यह धारणा है कि 55 या 58 साल तक तो अपना काम करें और 58 साल के बाद जब रिटायर हो जायेंगे, तब भगवान का नाम लेंगे। यह बड़ी भूल है। 58 साल के बाद रिटायर हो जाने पर कुछ होता नहीं, फिर भगवान का नाम नहीं लिया जा सकता, नामुमकिन (Impossible)है। आदतें इतनी मजबूत जाती हैं कि उन्हें बदल नहीं सकते (You can’t change your habits). शरीर भी जवाब देने लग जाता है, आप बैठ नहीं सकेंगे, ध्यान करने की बात तो अलग रही। यह जो भावना हमारे अन्दर आ गई है, बड़ी गलत है, और अधिकतर लोगों की यह भावना है कि 58 साल के बाद ही पूजा-पाठ करेंगे, परमात्मा का नाम लेंगे। अभी से भगवान का नाम लेकर क्या करना? बहुत गलत है। फिर नहीं होगा। जो कुछ बनेगा, आज बनेगा, अभी बनेगा।

तो गृहस्थियों का रास्ता भी बहुत पुराना है जिसे हमने भुला दिया, बड़ा ऊँचा रास्ता। आपने राजा जनक का नाम सुना है। राजा जनक को विदेह कहते थे। कितना बड़ा महात्मा, कितना बड़ा ब्रह्मज्ञानी हुआ, उसके जमाने के महर्षि अपने शिष्यों को उनके पास भेजते थे, परीक्षा (टैस्ट) के लिये। अगर जनक कह दे कि ब्रह्मज्ञानी है तो है, नहीं तो नहीं। वह राजा था, राज्य का कितना कार्यभार उसके ऊपर था, कितनी जिम्मेदारियाँ थीं, उन जिम्मेदारियों को भली-भाँति निभाते हुए इतना ऊँचा ब्रह्मज्ञानी, और हमारे आपके पास तो जिम्मेदारियाँ बहुत कम हैं। जब एक राजा ब्रह्मज्ञानी हो सकता है, तो आप क्यों नहीं हो सकते ? जरूर हो सकते हैं। तो यह रास्ता बहुत पुराना है जो मैं आपके सामने रखूँगा। इसे कहते हैं-इति मार्ग, यह रास्ता है Path of addition -इसमें हम अपने जीवन में एक चीज बढ़ाते हैं, घटाते कुछ नहीं। We add something to our life हम घटाते नहीं, नेति नहीं करते। एक चीज अपनी जिन्दगी में बढ़ाते हैं और वह क्या है? वह है परमात्मा का नाम, भगवान का नाम, और परमात्मा का नाम ऐसी बड़ी ज्योति है, अगर सच्चे तरीके से अपने मन में आ जाय तो वह अंधेरे को अपने आप दूर करती चली जाती है। जहाँ light प्रकाश है, वहाँ अंधेरा नहीं। लाइट आयी, अंधेरा गया। महर्षि वाल्मीकि उल्टा नाम जपते-जपते महर्षि हो गये। इतने बड़े महर्षि हुए जिन्होंने रामायण पहले लिख दी थी,  घटनाएँ (event) बाद में हुर्इं। लिख दिया कि ऐसे-ऐसे होगा और वैसे-वैसे ही हुआ। तो इतना बड़ा महर्षि! और कैसा था, वह बड़ा डाकू था और ऐसा खतरनाक लुटेरा था कि यात्री का सामान छीन ले और उसकी गर्दन काट दे। कहता था कि हलाल की कमाई खाता हूँ। ऐसा खतरनाक, और जब उसके जीवन में परिवर्तन आया तो उल्टा नाम जपते-जपते, भगवान का नाम हृदय से लेते-लेते इतना ऊँचा महर्षि हुआ कि रामायण पहले लिख दी घटना बाद में घटी। तो भगवान का नाम ऐसा प्रकाश है, उजाला है कि अगर सच्चे तरीके से हृदय में जागृत हो जाय तो अंधेरे को अपने आप दूर कर देता है। तो छोड़ना कुछ नहीं है जो आपकी जिंदगी आज है उसमें एक चीज बढ़ाइये।

इस रास्ते पर चलने वाले जो हमारे सद्‌गुरु हुए, एक के पीछे एक, उन्होंने परमात्मा को पाने के लिए, जीवन मुक्त अवस्था प्राप्त करने के लिए अपनी जिन्दगी में बड़े कष्ट उठाये। उनकी (Life) जिन्दगी बड़ी कठोर (Difficult) थी और बड़ी कठिनाइयों से रहते हुए इस विद्या को उन्होंने केवल प्राप्त ही नहीं किया बल्कि हमारे लिए कुछ गुर छोड़ गये। अपनी जिंदगी में जीवन मुक्त अवस्था प्राप्त की। जीवन मुक्त अवस्था प्राप्त करना हमारा लक्ष्य है। चाहे हम सन्यासी हों, चाहे हम गृहस्थी हों, चाहे किसी भी तरीके से हम क्यों न जीवन मुक्त अवस्था प्राप्त करें? ज्ञान मार्ग से, कर्म मार्ग से, ध्यान से, सन्यास से, गृहस्थ से जैसे भी हो जीवनमुक्त अवस्था प्राप्त करना है। जीवन मुक्त अवस्था प्राप्त किये प्राणी में दो विशेष बातें पैदा हो जाती हैं:-

(1) पहली है निरन्तर परमात्मा की याद। भगवान का ध्यान निरन्तर बना रहता है। चलते-फिरते, खाते-पीते, सोते-जागते संसार का हर व्यवहार करते ईश्वर की याद बनी रहती है।

(2) और दूसरी बात यह है कि उसके जो कर्म हैं, वह निष्काम कर्म हो जाते हैं, अहम्‌ निकल जाता है “I” का Elimination हो जाता है।

ये दो बातें उसे स्थित-प्रज्ञ कहिये या जीवन-मुक्त कहिये उसमें पैदा हो जाती हैं।

अब देखना यह है कि इसी दुनिया में रहते हुए, इसी संसार में रहते हुए, संसार के सब काम धर्मानुकूल करते हुए, कैसे हमें 24 घण्टे का ध्यान बने, कैसे उस परमात्मा का ध्यान बने और कैसे हम में  निष्काम कर्म करने की आदत बन जाये? इन सन्तों ने, इन सद्‌गुरुओं ने जिन्होंने अपने जीवन में जीवन-मुक्त अवस्था प्राप्त की, हमारे लिए गुर (Method) छोड़ गये। अगर हम इन गुरों को अपनायें तो हमारा रास्ता आसानी से तय हो जाय।

हर व्यक्ति अपनी सन्तान के लिये गुर छोड़ जाता है। एक व्यापारी (Businessman) है, अपनी सन्तान के लिये कुछ गुर छोड़ जाता है। उसकी सन्तान को अधिक कष्ट उठाना नहीं पड़ता। एक डाक्टर है, अगर उसका लड़का डाक्टर है तो वह उसके लिए गुर छोड़ जाता है, उसको अपना Clinic (दवाखाना) चलाने में दिक्कत नहीं आती। इंजीनियर है, अपने बच्चों के लिये गुर छोड़ जाता है। इसी तरह जो हमारे सिलसिले के सन्त महात्मा हुए, ये कुछ गुर छोड़ गये कि हम कैसे इस रास्ते को आसानी से तय करें, कैसे हमें आसानी से 24 (चौबीस) घण्टे का ध्यान प्राप्त हो, कैसे सच्ची निष्काम कर्मता प्राप्त हो ? इन गुरों को मैं आपके सामने रखूँगा। बल्कि मैं इन गुरों को दोहराया करता हूँ। दोहराने से मुझे बड़ा लाभ होता है। मैं देखता जाता हूँ अपनी कमी, मेरी कहाँ कमी है या इसमें मैं और कितना सुधार  (Improvement) कर सकता हूँ। यदि आपको ये बातें अच्छी लगें तो आप अपने जीवन में इन्हें ढालें, अपनाएँ। अगर अपनायेंगे तो इससे आपको विशेष लाभ होगा।

इन सन्त महात्माओं ने, इन सद्‌गुरुओं ने इन सारे आनन्द योग के साधनों को तीन विभागों में बाँटा और दिन के 24 घण्टों को भी 8-8 (आठ-आठ) घण्टे के हिसाब से तीन भागों में बाँटा।

(1) साधना की पहली सीढ़ी Step-1 (प्रथम सोपान) पूरा कर लेने से दिन के 24 घण्टों में से 8 घण्टे आपके अपने हो जायेंगे।

(2) साधना की दूसरी सीढ़ी Step-2 (द्वितीय सोपान) पूरा कर लेने से 24 घण्टों में से 16 घण्टे आपके अपने हो जायेंगे। और

(3) साधना की तीसरी सीढ़ी Step-3 (तृतीय सोपान) पूरा कर लेने से निरन्तर 24 घण्टे आपको ईश्वर ध्यान बना रहेगा और सच्ची निष्काम कर्मता आपको प्राप्त हो जायेगी।