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1 संरक्षक का संदेश

प्रथम सोपान

आनन्द योग ध्यान—योगाभ्यास के सिद्धांत व विधि

यशपाल

 

संरक्षक का संदेश

 

महर्षि अष्टावक्र प्रदत्त ब्रह्म-विद्या को हमारी परम्परा के सद्‌गुरुओं ने इस आधुनिक युग में आनन्द-योग के रूप में व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में आध्यात्मिक मूल्यों के सामन्जस्य एवं समुचित समावेश के साथ-साथ गृहस्थ धर्मानुकूल साधना पद्धति का विकास किया है।

वास्तव में आनन्द योग का मार्ग ‘इतिमार्ग' (Method of addition) है, जिसमें अपनी दैनिक दिनचर्या में राम-नाम अर्थात्‌ अपने इष्टदेव का नाम जोड़ना होता है अर्थात्‌ ‘दस्त ब कार, दिल ब यार'। हाथ दुनिया के भौतिक कार्यों और दिल परमात्मा के चरणों में लगा रहे। यह साधना पद्धति सभी के लिए अर्थात (Universal Method) है। आज की आधुनिक जीवन शैली में तनाव रहित जीवन बिताने के लिए गृहस्थ संतों एवं सद्‌गुरुओं की यह आध्यात्मिक विद्या एक अद्‌भुत देन है।

सत्संग में ध्यान द्वारा ईश्वर में चित्त की एकाग्रता (Concentration and Meditation) प्राप्त करने को अधिक महत्व दिया जाता है। चित्त की एकाग्रता प्राप्त होने से अनुभव होने लगता है कि हमारा अन्तःकरण ही सच्चा मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा व चर्च है। अतएव सृष्टिकर्ता परम पिता परमात्मा के दर्शन के लिए अपने अन्तःकरण में ही खोज करनी होगी। इसके लिए सत्संग ही एकमात्र महत्वपूर्ण साधन है, जहां सद्‌गुरु के माध्यम से सिलसिले के सद्‌गुरुओं की आत्मिक धार धीरे-धीरे हमारे हृदय को शुद्ध करती है, दूषित संस्कारों को जला देती है, तथा सत्संग में लगातार सम्मिलित होने से हृदय को पवित्र बना देती है एवं साधकों को आन्तरिक शान्ति व दिव्य आनन्द की अनुभूति होती है।

पूज्य सत्गुरुदेव परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी (परम पूज्य भाई साहब जी) ने अपने सद्‌गुरुदेव परम सन्त महात्मा श्री बृजमोहन लाल जी महाराज (परम पूज्य दद्दा जी) द्वारा प्रदत्त की गई आनन्द-योग पद्धति के सिद्धान्तों को जनमानस में प्रचार व प्रसार हेतु ‘‘अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग'' की स्थापना 1969 में की। परम पूज्य सद्‌गुरुदेव परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी एवं पूज्या माता जी (परम सन्त श्रीमती रूपवती देवी जी) के जीवन के तप, तपस्या व अथक प्रयास के फलस्वरूप अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग (रजि०)अनंगपुर, फरीदाबाद (हरियाणा) के तत्वावधान में सेंट बृजमोहन लाल सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, अस्पताल, व आध्यात्मिक निकेतन व सत्संग स्थल का विकास एक सामूहिक आध्यात्मिक परियोजना सन्त यश-रूप तपोभूमि परिसर के अन्तर्गत किया गया है। यह ‘अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग, का ‘सन्त यश-रूप तपोभूमि परिसर, अनंगपुर उनकी  स्मृति स्वरूप यह तपस्थली सदैव सद्‌गुरुओं की याद दिलाने के साथ-साथ व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक व राष्ट्रीय स्तर पर आध्यात्मिक गृहस्थ जीवन के विकास की दिशा में उत्तरोत्तर अग्रसर होने की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी।

हमारी परम्परा के सद्‌गुरुओं ने व्यक्तिगत साधना के साथ-साथ सामूहिक साधना-आध्यात्मिक सत्संग कार्यक्रमों को विशेष महत्व दिया है। इस साधना पद्धति के अंतर्गत ही साप्ताहिक सत्संग-रविवार और गुरुवार एवं मासिक शान्ति पाठ तथा राष्ट्रीय सत्संग कार्यक्रमों का प्रावधान है। वर्ष के प्रत्येक माह में राष्ट्रीय सत्संग कार्यक्रम देश के विभिन्न प्रदेशों के किसी न किसी सत्संग केन्द्र पर आयोजित होते रहते हैं।

सभी आध्यात्मिक साधना-शिविर सत्संग कार्यक्रम भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा श्रीमद्‌भगवद्‌गीता में साधक की दृष्टि से प्रतिपादित चार विशेष सिद्धान्तों पर आधारित रहते हैं। पहला आहार की शुद्धि, दूसरा विहार की शुद्धि, तीसरा अभ्यास और चौथा वैराग्य।

उपर्युक्त सभी प्रकरणों पर समुचित साधना, उपदेश व निर्देश परम पूज्य सद्‌गुरुदेव परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी की अमृत वाणी-प्रवचनों में समाहित है। प्रवचनों के संग्रहों से किंचित अंश आध्यात्मिक इति मार्ग की साधना एवं ‘पूजा क्यों और कैसे करें, प्रस्तुत पुस्तक में दिया जा रहा है।  यह आप सभी के लिए प्रेरणादायक ही नहीं अपितु आध्यात्मिक जीवन की साधना में महत्वपूर्ण भूमिका एवं सम्बल प्रदान करेगा, ऐसा सेवक का पूर्ण विश्वास है।

इति मार्ग-आनन्द योग के सिद्धान्त व साधना पद्धति में दिये गये तरीके के अनुसार दैनिक पूजा प्रारम्भ की जा सकती है परन्तु आध्यात्मिक साधना की समुचित उन्नति हेतु सत्संग केन्द्रों पर आयोजित साप्ताहिक, मासिक व अन्य राष्ट्रीय सत्संगों में सम्मिलित होना व भाग लेना अति आवश्यक है।

अन्ततः सभी प्रवचनों के संकलन कर्ताओं को साधुवाद देते हुए परमात्मा से प्रार्थना है कि हे प्रभो! आप के ज्ञान प्रकाश व प्रेम की सुधा-धार सभी दिशाओं में व्याप्त हो।

परम पूज्य सद्‌गुरुदेव जी, पूज्या माता जी एवं परम्परा के सद्‌गुरुओं के चरणारविन्दों में शत्‌-शत्‌ वन्दन।

सुरेश

संरक्षक,

अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग (रजि॰)

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