Hitler ki Premkatha book and story is written by Kusum Bhatt in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Hitler ki Premkatha is also popular in लघुकथा in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
हिटलर की प्रेमकथा - उपन्यास
Kusum Bhatt
द्वारा
हिंदी लघुकथा
बचपन के दिन थे- चिंता से मुक्त और कौतूहल से भरे पाँवों के नीचे आसमान बिछ जाता। पंख उग आए..., पंखों को फैलाए हम नाना के आसमान में जाने को बेताब..., हम यानि मैं, माँ और छोटी, वैसे हम तीन जोड़ी पंखों को लेकर ही अपने जहाँ से उड़ते लेकिन माँ के पंख छोटे होकर सिकुड़ने लगते। आसमान धरती पर गिरता और पलक झपकते ही बिला जाता, धरती पर पथरीली चट्टानें उग आती। माँ कठपुतली में तब्दील हो जाती।
बचपन के दिन थे- चिंता से मुक्त और कौतूहल से भरे पाँवों के नीचे आसमान बिछ जाता। पंख उग आए..., पंखों को फैलाए हम नाना के आसमान में जाने को बेताब..., हम यानि मैं, माँ और छोटी, वैसे हम ...और पढ़ेजोड़ी पंखों को लेकर ही अपने जहाँ से उड़ते लेकिन माँ के पंख छोटे होकर सिकुड़ने लगते। आसमान धरती पर गिरता और पलक झपकते ही बिला जाता, धरती पर पथरीली चट्टानें उग आती। माँ कठपुतली में तब्दील हो जाती।
भौं -- भौं -- भौं -- अभी एक सीढ़ी चढ़नी बाकी रही। मेरी फ्राॅक का कोना झपटने को आतुर झबरे बालांे वाला वह चीनी कुत्ता जिसकी आँखें कह रही थीं ‘‘नीचे उतर लड़की वरना चबा डालूँगा हड्डियाँ!’’ अब मैं ...और पढ़ेसे चिल्लाई! माँ कुठार के अंदर घुसी थी बमुश्किल मृत्यु से खींच लाई हमें, ‘‘अभी पहचाना नहीं न उसने, दोस्ती करोगी तो वह भी खेलेगा तम्हारे साथ।’’
गौरी, राधा, सीना परी और माँ का गला रूँध गया था... असूज (अश्विन) का महीना काल बनकर उतरा... खा गई अपनी नानी... हाँ... तू खा गई’’, मेरी माँ ने मुझे कोसा था।
मैं सिसकते हुए बोली, ‘‘नाना, मेरी नानी मर ...और पढ़ेगई?’’ नाना चुप्प! काठ मार गया हो जैसे।
मेरे कंठ से अनायास शब्द उमगने लगे ‘‘नाना, मेरी नानी वापस ला दो।’’