Manto ki Laghukathayen book and story is written by Saadat Hasan Manto in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Manto ki Laghukathayen is also popular in लघुकथा in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मंटो की लघुकथाएं - उपन्यास
Saadat Hasan Manto
द्वारा
हिंदी लघुकथा
सन इकत्तीस के शुरू होने में सिर्फ़ रात के चंद बरफ़ाए हुए घंटे बाक़ी थे। वो लिहाफ़ में सर्दी की शिद्दत के बाइस काँप रहा था। पतलून और कोट समेत लेटा था, लेकिन इस के बावजूद सर्दी की लहरें उस की हडीयों तक पहुंच रही थीं। वो उठ खड़ा हुआ और अपने कमरे की सबज़ रोशनी में जो सर्दी में इज़ाफ़ा कर रही थी, ज़ोर ज़ोर से टहलना शुरू कर दिया कि उस का दौरान ख़ून तेज़ होजाए। थोड़ी देर यूं चलने फिरने के बाद जब उस के जिस्म के अंदर थोड़ी सी हरारत पैदा होगई तो वो आराम कुर्सी पर बैठ गया और सिगरेट सुलगा कर अपने दिमाग़ को टटोलने लगा। उस का दिमाग़ चूँकि बिलकुल ख़ाली था, इस लिए उस की क़ुव्वत-ए-सामा बहुत तेज़ थी।
मेरे दोस्त जान मुहम्मद ने, जब मैं बीमार था मेरी बड़ी ख़िदमत की। मैं तीन महीने हस्पताल में रहा। इस दौरान में वो बाक़ायदा शाम को आता रहा बाअज़ औक़ात जब मेरे नौकर अलील होते तो वो रात को ...और पढ़ेवहीं ठहरता ताकि मेरी ख़बरगीरी में कोई कोताही न हो।
पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में ...और पढ़ेफ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा दो। तुम्हारी वाक़फ़ीयत काफ़ी है, उम्मीद है तुम्हें ज़्यादा दिक़्क़त नहीं होगी।
मुजीब ने अचानक मुझ से सवाल क्या: “क्या तुम उस आदमी को जानते हो?”
गुफ़्तुगू का मौज़ू ये था कि दुनिया में ऐसे कई अश्ख़ास मौजूद हैं जो एक मिनट के अंदर अंदर लाखों और करोड़ों को ज़र्ब दे ...और पढ़ेहैं, इन की तक़सीम कर सकते हैं। आने पाई का हिसाब चशम-ए-ज़दन में आप को बता सकते हैं।
ये ग़ालिबन आज से बीस बरस पीछे की बात है। मेरी उम्र यही कोई बाईस बरस के क़रीब होगी, या शायद इस से दो बरस कम। क्योंकि तारीख़ों और सनों के मुआमले में मेरा हाफ़िज़ा बिलकुल सिफ़र है। मेरी ...और पढ़ेका हल्क़ा उन नौ-जवान पर मुश्तमिल था जो उम्र में मुझ से काफ़ी बड़े थे।
सुनार की उंगलियां झुमकों को ब्रश से पॉलिश कर रही हैं झुमके चमकने लगते हैं सितार के पास ही एक आदमी बैठा है झुमकों की चमक देख कर उस की आँखें तमतमा उठती हैं बड़ी बेताबी से वो अपने ...और पढ़ेउन झुमकों की तरफ़ बढ़ाता है और सुनार कहता है “बस अब रहने दो मुझे” सुनार अपने गाहक को अपनी टूटी हुई ऐनक में से देखता है और मुस्कुरा कर कहता है “छः महीने से अलमारी में बने पड़े थे आज आए हो तो कहते हो कि हाथों पर सरसों जमा दूँ”