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परमहंस संत गौरीशंकर चरित माल - उपन्यास
ramgopal bhavuk
द्वारा
हिंदी आध्यात्मिक कथा
आत्म निवेदन
संतों की महिमा अपरम्पार है। उनकी कृपा अहेतुकी होती है। उनके दर्शन मात्र से चारों धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष, सभी कुछ प्राप्त हो सकता है। जैसा कि कबीरदासजी ने सोच समझकर अपनी वाणी में स्पष्ट कहा है –
तीर्थ नहाए एक फल, संत मिले फल चार।
सद्गुरु मिले अनन्त फल, कहत कबीर विचार।।
श्री मदभागवत में भी संतों के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के कल्याण की बात कही गई है –
नम्हम्यानि तीर्थानि न देवा कृच्छिलामाया:।
ते पुनन्त्युरुकलिन दर्शनदिव साधव:।।
अर्थात ‘’केवल ज लमय तीर्थ ही तीर्थ नहीं कहलाते या केवल मिट्टी या पत्थर की प्रतिमाऐं ही देवता नहीं होतीं। संत पुरुष ही वास्तव में तीर्थ और देवता हैं, क्योंकि तीर्थ और प्रतिमा का बहुत समय तक सेवन किया जाय, तब वे पवित्र करते हैं परन्तु संत पुरुष तो दर्शनमात्र से ही कृतार्थ कर देते हैं।‘’
परमहंस संत गौरीशंकर चरित माल 1 डॉ. सतीश सक्सेना ‘शून्य’ आत्म निवेदन संतों की महिमा अपरम्पार है। उनकी कृपा अहेतुकी होती है। उनके दर्शन मात्र से चारों धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष, सभी कुछ प्राप्त हो सकता है। ...और पढ़ेकि कबीरदासजी ने सोच समझकर अपनी वाणी में स्पष्ट कहा है – तीर्थ नहाए एक फल, संत मिले फल चार। सद्गुरु मिले अनन्त फल, कहत कबीर विचार।। श्री मदभागवत में भी संतों के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के कल्याण की बात कही गई है – नम्हम्यानि तीर्थानि न देवा कृच्छिलामाया:। ते पुनन्त्युरुकलिन दर्शनदिव साधव:।। अर्थात ‘’केवल ज लमय तीर्थ
परमहंस संत गौरीशंकर चरित माल 2 गणपति नमन गज वदन सुख सदन, दुख दमन मम नमन। हित परम नित करन, भव तरन तब शरन।। शुचि सुमुख इक रदन, भुज चतुर बृक उदर। श्रुति लिपिक गति प्रखर, अति प्रवर ...और पढ़ेसुघर।। कर मधुर वर वरद, नित विजय जित समर। शुभ शकुन तव दरस, तुम प्रथम सब अमर।। तन तरुन दृग अरुन, अति विमल मख कमल। पग धरत कर निरत, ढप वजत अति मृदुल।। रिधि सजन निधि वरन, गृह भरन सब रतन। गह चरन भर हरन, धर हृदय यह वचन।। यह जगत नित मिटत, तज कुमत कत भ्रमत। तम हरत मन
संतों की महिमा अपरम्पार है। उनकी कृपा अहेतुकी होती है। उनके दर्शन मात्र से चारों धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष, सभी कुछ प्राप्त हो सकता है। जैसा कि कबीरदासजी ने सोच समझकर अपनी वाणी में स्पष्ट कहा है – ...और पढ़ेनहाए एक फल, संत मिले फल चार। सद्गुरु मिले अनन्त फल, कहत कबीर विचार।। श्री मदभागवत में भी संतों के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के कल्याण की बात कही गई है – नम्हम्यानि तीर्थानि न देवा कृच्छिलामाया:। ते पुनन्त्युरुकलिन दर्शनदिव साधव:।। 3 कछु दिन रहें गृहस्थ वन, धारण कर जग रीत। तन तो बंधन में बंधा, बंधा न
संतों की महिमा अपरम्पार है। उनकी कृपा अहेतुकी होती है। उनके दर्शन मात्र से चारों धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष, सभी कुछ प्राप्त हो सकता है। जैसा कि कबीरदासजी ने सोच समझकर अपनी वाणी में स्पष्ट कहा है – ...और पढ़ेनहाए एक फल, संत मिले फल चार। सद्गुरु मिले अनन्त फल, कहत कबीर विचार।। श्री मदभागवत में भी संतों के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के कल्याण की बात कही गई है – नम्हम्यानि तीर्थानि न देवा कृच्छिलामाया:। ते पुनन्त्युरुकलिन दर्शनदिव साधव:।। 4 आगत को देखा नहीं विगत हो गया स्वप्न। आगत-विगत विभेद सब जाना बिना प्रयत्न।। जीवन एक
संतों की महिमा अपरम्पार है। उनकी कृपा अहेतुकी होती है। उनके दर्शन मात्र से चारों धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष, सभी कुछ प्राप्त हो सकता है। जैसा कि कबीरदासजी ने सोच समझकर अपनी वाणी में स्पष्ट कहा है – ...और पढ़ेनहाए एक फल, संत मिले फल चार। सद्गुरु मिले अनन्त फल, कहत कबीर विचार।। श्री मदभागवत में भी संतों के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के कल्याण की बात कही गई है – नम्हम्यानि तीर्थानि न देवा कृच्छिलामाया:। ते पुनन्त्युरुकलिन दर्शनदिव साधव:।। 5 -: स्तुति :- श्री मस्तराम कृपालु भज मन तज सकल अभिमान रे। जिनकी कृपामय दृष्टि