Purnjanm ek Dhruv Satya book and story is written by Praveen kumrawat in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Purnjanm ek Dhruv Satya is also popular in कुछ भी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
पुनर्जन्म एक ध्रुव सत्य - उपन्यास
Praveen kumrawat
द्वारा
हिंदी कुछ भी
पालटेराजेस्ट फेमामेना, आडिटरी हेलसिनेशन, फिजीकल ट्रांसपोजीशन, द्विजिनरी एक्सपीरियेन्स, स्प्रितिपाजेशन प्रभृति वैज्ञानिक कसौटियों पर कसे गये घटनाक्रम एवं अनुभवों द्वारा आत्मा और शरीर की भिन्नता के अधिकाधिक प्रमाण मिलते जा रहे हैं। शरीर के मरने पर भी आत्मा का अस्तित्व बना रहता है और जीव बिना शरीर के होने पर भी दूसरों के सम्मुख अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकता है, इस तथ्य की पुष्टि में इतने ठोस प्रमाण विद्यमान हैं कि उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता। विज्ञान के क्षेत्र की वह मान्यता अब निरस्त हो चली है कि शरीर ही मन है और उन दोनों का अंत एक साथ हो जाता है।
मरने के बाद प्राणी की चेतना का क्या हश्र होता है, इसका निष्कर्ष निकालने के लिए अमेरिकी विज्ञानवेत्ताओं ने एक विशेष प्रकार का चेंबर बनाया। भीतरी हवा पूरी तरह निकाल दी गई और एक रासायनिक कुहरा इस प्रकार का पैदा कर दिया गया, जिससे अंदर की अणु हलचलों का फोटो विशेष रूप से बनाये गये कैमरे से लिये जा सके।
इस चेंबर से संबद्ध एक छोटी पेटी में चूहा रखा गया और उसे बिजली से मारा गया। मरते ही उपरोक्त चेंबर में जो फोटो लिये गये, उसमें अंतरिक्ष में उड़ते हुए आणविक चूहे की तस्वीर आई। इसी प्रयोग श्रृंखला में दूसरे मेंढक, केकड़ा जैसे जीव मारे गये तो मरणोपरांत उसी आकृति के अणु बादल में उड़ते देखे गये । यह सूक्ष्म शरीर हर प्राणधारी का होता है और मरने के उपरांत भी वायुभूत होकर बना रहता है।
अध्याय 1.मरणोत्तर जीवन और उसकी सच्चाईपालटेराजेस्ट फेमामेना, आडिटरी हेलसिनेशन, फिजीकल ट्रांसपोजीशन, द्विजिनरी एक्सपीरियेन्स, स्प्रितिपाजेशन प्रभृति वैज्ञानिक कसौटियों पर कसे गये घटनाक्रम एवं अनुभवों द्वारा आत्मा और शरीर की भिन्नता के अधिकाधिक प्रमाण मिलते जा रहे हैं। शरीर के मरने ...और पढ़ेभी आत्मा का अस्तित्व बना रहता है और जीव बिना शरीर के होने पर भी दूसरों के सम्मुख अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकता है, इस तथ्य की पुष्टि में इतने ठोस प्रमाण विद्यमान हैं कि उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता। विज्ञान के क्षेत्र की वह मान्यता अब निरस्त हो चली है कि शरीर ही मन है और उन दोनों का
अध्याय 2.जन्म मृत्यु मात्र स्थूल जगत् की घटनाएँप्राचीन इतिहास को आध्यात्मिक उपलब्धियों की श्रृंखला कहें तो आध्यात्मिक साहित्य और दर्शन को तत्त्वदर्शी, ऋषियों, योगी और संतों का इतिहास कहना पड़ेगा। आध्यात्मिक जगत की प्रसिद्ध घटना है कि मंडन मिश्र ...और पढ़ेजगद्गुरु शंकराचार्य से शास्त्रार्थ में पराजित हो जाने के बाद उनकी धर्मपत्नी विद्योत्तमा ने मोर्चा सँभाला। उसने शंकराचार्य से "काम-विद्या" पर ऐसे जटिल प्रश्न पूछे, जो उन जैसे ब्रह्मचारी संन्यासी की कल्पना से भी परे थे, किंतु उन्हें मंडन मिश्र जैसे महान पंडित की सेवाओं की अपेक्षा थी, सो उन्होंने महिष्मती नरेश के मृतक शरीर में "परकाया प्रवेश" किया और
अध्याय ३ — "जीवन सत्ता का चैतन्य स्वरूप।"ए० एन० विडगेरी ने अपनी पुस्तक "कांटेंपोरेरी थॉट ऑफ ग्रेट ब्रिटेन" में इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि सांसारिक अस्तित्व के संबंध में जितनी खोज की जा रही है, उतना ...और पढ़ेअस्तित्व के बारे में नहीं खोजा जा रहा है। लगता है— मानवी सत्ता, महत्ता और उसकी आवश्यकता को आँखों से ओझल ही किया जा रहा है अथवा चेतन को जड़ का अनुगामी सिद्ध किया जा रहा है। बौद्धिक प्रगति के यह बढ़ते हुए चरण हमें सुख-शांति के केंद्र से हटाकर ऐसी जगह ले जा रहे हैं, जहाँ हम यांत्रिक अथवा
अध्याय ४. विदेशों में पुनर्जन्म की घटनाएँ एवं मान्यताएँ।मरणोत्तर जीवन एवं पुनर्जन्म की मान्यता हमें चिंतन के कितने ही उत्कृष्ट आधार प्रदान करती है। आज हम हिंदू भारतीय एवं पुरुष हैं। कल के जन्म में ईसाई, योरोपियन या स्त्री ...और पढ़ेसकते हैं। ऐसी दशा में क्यों ऐसे कलह बीज बोयें, क्यों ऐसी अनैतिक परंपराएँ प्रस्तुत करें, जो अगले जन्म में अपने लिये ही विपत्ति खड़ी कर दें। आज के सत्ताधीश, कुलीन, मनुष्य को कल प्रजाजन, अछूत एवं पशु बनना पड़ सकता है। उस स्थिति में उच्च स्थिति वालों का स्वेच्छाचार उनके लिए कितना कष्टकारक होगा? इस तरह के विचार दूसरों
अध्याय– ६.जन्मान्तर प्रगति या पतन के आधार—आत्म-सत्ता के संकल्प एवं कर्ममहर्षि वशिष्ठ राम को पुनर्जन्म प्रकरण पढ़ा रहे थे उस समय की बात है जब एक प्रसंग में उन्होंने राम को बताया—आशापाश शताबद्धा वासनाभाव धारिणः। कायात्कायमुपायान्ति वृक्षाद्वृक्षमिंवाण्डजा।।"हे राम! मनुष्य ...और पढ़ेमन सैकड़ों आशाओं (महत्वाकांक्षाओं) और वासनाओं के बन्धन में बंधा हुआ मृत्यु के उपरान्त उस क्षुद्र वासनाओं की पूर्ति वाली योनियों और शरीरों में उसी प्रकार चला जाता है जिस प्रकार एक पक्षी एक वृक्ष को छोड़कर फल की आशा से दूसरे वृक्ष पर जा बैठता है।"मनुष्य जैसा विचारशील प्राणी इतर योनियों—मक्खी, मच्छर, मेढक, मछली, सांप, बैल, भैंस, मगर, नेवला,