खाली हाथ वाली अम्मा - उपन्यास
Prabodh Kumar Govil
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
वैसे नाम तो मेरा पप्पू है पर अब पप्पू कम लोग कहते हैं मुझे, क्योंकि मैं बड़ा हो गया हूं और इतने बड़े लड़के को पप्पू कहना शायद लोगों को अजीब सा लगता हो, इसलिए पिछले कुछ सालों से लोग मुझे मेरा वास्तविक नाम यानी कि "प्रणय" कह कर ही पुकारने लगे हैं। वैसे आपके लिए यही बेहतर होगा कि मुझे प्रणय न कह कर पप्पू ही पुकारें। इसके दो कारण हैं। पहला तो यह कि मैं जिस समय की बात आपको बताने जा रहा हूं तब मैं इतना छोटा सा था कि अगर इतने छोटे लड़के का नाम भीम
वैसे नाम तो मेरा पप्पू है पर अब पप्पू कम लोग कहते हैं मुझे, क्योंकि मैं बड़ा हो गया हूं और इतने बड़े लड़के को पप्पू कहना शायद लोगों को अजीब सा लगता हो, इसलिए पिछले कुछ सालों से ...और पढ़ेमुझे मेरा वास्तविक नाम यानी कि "प्रणय" कह कर ही पुकारने लगे हैं। वैसे आपके लिए यही बेहतर होगा कि मुझे प्रणय न कह कर पप्पू ही पुकारें। इसके दो कारण हैं। पहला तो यह कि मैं जिस समय की बात आपको बताने जा रहा हूं तब मैं इतना छोटा सा था कि अगर इतने छोटे लड़के का नाम भीम
कभी - कभी जब मेरी बुआ मूड में होती तब मुझसे खेला करती थी। पलंग पर लेट कर घुटनों पर मुझे चढ़ा लेती और झूला झुलाया करती, कहती - "झू- झू के, पाऊं के पान पसारी के खट्टे - ...और पढ़ेपप्पू के मीठे - मीठे... तभी मैं बोल पड़ता - अम्मा के। तीन - चार साल का मैं ऐसा बोलकर खुश तो हो जाता लेकिन ये खुशी ज्यादा देर नहीं रह पाती। क्योंकि तभी किसी न किसी काम में जुटी मेरी अम्मा पास से गुजरती तो मैं उसके चेहरे पर अपनी इस खुशी के लिए कोई स्वीकार नहीं देख पाता।
एक दिन अम्मा दोपहर को घर से गायब हो गई। मैंने सारे में देखा। घबरा कर बुआ को बताया तो बुआ और दादी भी बौखलाई सी सारे घर में इधर - उधर तलाशने देखने लगीं। काम पर से लौटने ...और पढ़ेपिता को भी पता चला। वह विचलित से बैठे बाबा से बात करने लगे। मगर जब बाबा के कान में यह बात पड़ी कि बहू न जाने कहां चली गई है तो उनकी आंखों में भी हैरत के जंजाल के बीच प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया। तभी दरवाज़े पर खड़का हुआ। देखा, अम्मा थी। किसी से बोले - चाले बिना सीधी
एक रात को कोठरी खोल कर अम्मा फिर बाहर निकल गई। थोड़ी ही देर बाद छत पर से किसी की निगाह पड़ी। पिता ने दौड़ कर पकड़ लिया और एक रस्सी से बांध कर फिर से कोठरी में डाल ...और पढ़ेअब अम्मा को पेशाब - पाखाने - गुसल के लिए भी कोठरी से बाहर नहीं निकाला जाता था। मैं अब अम्मा के पास जाने से डरता था। कभी - कभी खिड़की से चुपचाप देखता था जाकर। हरदम अम्मा के मैले कपड़ों में से बदबू आती रहती थी। अम्मा के तन पर मक्खियां भिनभिनाती रहती थीं। मैं देख नहीं पाता, रो