Samjhota pyar ka dusara naam book and story is written by Neerja Pandey in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Samjhota pyar ka dusara naam is also popular in महिला विशेष in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
समझौता प्यार का दूसरा नाम - उपन्यास
Neerja Pandey
द्वारा
हिंदी महिला विशेष
मैं कहानी शुरू करने से पहले आप सब से कुछ कहना चाहती हूं । ये कहानी बिल्कुल सच घटना पर आधारित है। पहले तो सुन कर मुझे भी यकीन नही हुआ की क्या सच में ऐसा हो सकता है! मैं हैरान थी ! बात तब की है जब मेरा पिता का ट्रांसफर फैजाबाद हो गया। जब तक रेलवे का आवास नही मिला तब तक हम किराए के मकान में शिफ्ट हो गए। हम लोग जिस मकान में थे वहां नीचे के हिस्से में मकान मालिक का परिवार भी रहता था। बहुत बड़ा परिवार था उनका। मैं समझ न पाती की
मैं कहानी शुरू करने से पहले आप सब से कुछ कहना चाहती हूं । ये कहानी बिल्कुल सच घटना पर आधारित है। पहले तो सुन कर मुझे भी यकीन नही हुआ की क्या सच में ऐसा हो सकता है! ...और पढ़ेहैरान थी ! बात तब की है जब मेरा पिता का ट्रांसफर फैजाबाद हो गया। जब तक रेलवे का आवास नही मिला तब तक हम किराए के मकान में शिफ्ट हो गए। हम लोग जिस मकान में थे वहां नीचे के हिस्से में मकान मालिक का परिवार भी रहता था। बहुत बड़ा परिवार था उनका। मैं समझ न पाती की
भाग 2 इसके बाद भारी मन से बेटी से विदा ले घर लौट आए। कुछ दिन तो वसुधा का मन भी नही लगा । पर धीरे धीरे वो पढ़ाई में इतनी व्यस्त हो गई की उसके दिल से घर ...और पढ़ेयाद धूमिल होने लगी । उसने पापा की नसीहत को गांठ बांध पढ़ाई में खुद को झोंक दिया। वो लंबी छुट्टियों में घर जाती। पापा या घर से कोई आता लिवा जाता ,फिर छुट्टियां खत्म होने पर वापस हॉस्टल पहुंचा दिया जाता। इसी तरह दो साल बीत गए। अब आखिरी वर्ष था। बस इसी उम्मीद में वसुधा और उसका परिवार
तीन दिन बेहद बेचैनी में बीते विमल के, वो हर पल इंतजार करता रहा की कैसे ये तीन दिन बीते और उसे वसुधा का दीदार हो। इधर वसुधा के मन में भी कुछ कोमल सा महसूस हो रहा था ...और पढ़ेके लिए। वो कर्जदार हो गई थी विमल की। अगर उस दिन विमल ना आया होता तो कोई शक नही था की उसका एक साल बरबाद हो जाता। उसका रोज पीछा करना अभी तक जहां वसुधा को अखरता था, वही अब वो शुक्रिया अदा कर रही थी । आखिर इंतजार खत्म हुआ । सुबह सुबह तैयार होकर वसुधा एग्जाम देने
वसुधा पापा के साथ जाना तो नहीं चाहती थी पर वो इतने खुश थे, कि उसे भी जाने का मन हो गया। मां और बाकी परिवार वालों से मिलने की खुशी में जल्दी जल्दी अपना सामान बांध कर तैयार ...और पढ़ेगई। शाम को पिता पुत्री अपने घर में मौजूद थे। परिवार के सभी सदस्य खुश थे वसुधा के घर आने से। साथ के घर में रहने वाले वसुधा के चचेरे ताऊ जी की बेटियां और बेटे भी उससे मिलने आए। आखिर उनकी वसु दीदी थी जो शहर से आई थी। रागिनी और जयंती दोनो का अपनी वसु दीदी से कुछ
अवधेश जी विमल को वहां से चले जाने को कहते है। विमल भी बिना किसी अगर मगर के वहां से चला जाना ही उचित समझता है। वो इतनी बड़ी बात एक लड़की के पिता से कहने के बाद उन्हें ...और पढ़ेवक्त सोचने समझने के लिए देना चाहता है। अवधेश जी वसु और पत्नी के साथ वसु के कमरे पर आ गए। सभी ने चेंज किया और रात के खाने की तैयारी होने लगी। वसुधा ने मां को कुछ भी करने से मना कर किचेन में जाने को मना लिया। बोली,"मां तुम गांव में तो करती ही हो अब यहां तो