भाग 2
इसके बाद भारी मन से बेटी से विदा ले घर लौट आए।
कुछ दिन तो वसुधा का मन भी नही लगा । पर धीरे धीरे वो पढ़ाई में इतनी व्यस्त हो गई की उसके दिल से घर की याद धूमिल होने लगी ।
उसने पापा की नसीहत को गांठ बांध पढ़ाई में खुद को झोंक दिया।
वो लंबी छुट्टियों में घर जाती। पापा या घर से कोई आता लिवा जाता ,फिर छुट्टियां खत्म होने पर वापस हॉस्टल पहुंचा दिया जाता।
इसी तरह दो साल बीत गए। अब आखिरी वर्ष था। बस इसी उम्मीद में वसुधा और उसका परिवार था कि अब उसकी नौकरी लग जायेगी। फिर कुछ समय बाद वो उसकी शादी कर देंगे।
इधर कुछ दिनों से वसुधा देख रही थी कि जब वो हॉस्टल से निकलती तो दो आंखे उसे निहारती रहती। फिर उसके पीछे पीछे कॉलेज तक आती । छुट्टी के समय भी जब वो कॉलेज से निकलती तो फिर वही आंखें उसका पीछा हॉस्टल तक करती। पापा की नसीहत को गांठ बांधे वो अपनी निगाहें भी उस ओर ना डालती।
पर जब उसकी सहेलियां उससे बार बार कहती कि,"देखा.... तुमने वसुधा उस लड़के को जो रोज तुम्हे लेने और छोड़ने आता है! हाय.... कितना सुंदर है वो ...! एक बार तू उसे देख तो ले , और कितना सीधा साधा लगता है। "
वसुधा गुस्सा होती सहेलियों पर कहती, "मुझे बेकार की बातों में कोई इंट्रेस्ट नही है। ये बकवास मुझसे ना किया करो। और इतना ही सुंदर लगता है तुम्हें तो तुम सब ही साथ चली जाया करो।"
प्रतियुत्तर में वो कहती, "हम चले तो जाएं पर वो हमारी ओर पहले देखे तो .... । " कह कर सब साथ में खिलखिला पड़ती ।
वसुधा नाराजगी में सब से लड़ पड़ती।
वो अपनी सहेलियों से भले ही लड़ पड़ी थी ; पर आज फिर जब हॉस्टल से निकलते ही उसे खड़ा देख युवा मन ये देखने की उत्कंठा नही दबा सका कि वो दिखने में कैसे है? अनायास ही उठी निगाहें सामने खड़े उस युवक से जा टकराईं। वो भी वसुधा को ही देख रहा था।पर उसे ये उम्मीद नहीं थी कि वसुधा उसकी ओर नजर उठा कर देखेगी।
इस तरह अचानक निगाहें मिलने पर वो झेंप कर दूसरी ओर देखने लगा। वसुधा के आगे बढ़ जाने पर उसके पीछे पीछे चल पड़ा।
कॉलेज गेट पर पहुंच कर वसुधा अंदर जाने लगी, मुड़ कर देखा तो वो युवक निडरता से उसी की ओर देख रहा था। मुस्कुरा कर हाथ हिलाया।
जवाब में वसुधा ने घूर कर खा जाने वाली आंखो से देखा और तेज कदमों से अंदर चली गई।
उस युवक को हाथ हिलाते हुए वसुधा की सहेलियों ने देख लिया था।
उसे छेड़ने लगी , "क्या बात है ...? आज तो उसने तुझे बाय ...भी किया । क्या नाम भी बताया? तेरा भी पूछा क्या ...?" कह कर जया ,मीना और नीता हंसने लगी।
"तुम सब भी ना फालतू की बकवास करती रहती हो....। चलो क्लास का टाइम हो गया।"
कह कर वसुधा अपनी सहेलियों के साथ अंदर क्लास में चली गई।
बस अब छह महीने ही बाकी थे पढ़ाई पूरी होने में। फिर एग्जाम हो जायेगा और वो घर चली जाएगी। वसुधा जी जान से पढ़ाई में लगी थी।
दिन रात एक कर दिया था।
आखिर एग्जाम भी शुरू हो गया। पहला पेपर बहुत ही अच्छा हुआ। विश्वास से भरी वसुधा दूसरे दिन भी एग्जाम देने के लिए जल्दी जल्दी तैयार हो रही थी। पर बाथरूम खाली न होने से उसे थोड़ी देर हो गई।
वो जल्दी जल्दी निकल रही थी । इस जल्दी वो पुरानी चप्पल पहन कर ही निकल गई। देर होने के कारण उसकी सहेलियां जा चुकी थी।अभी वो हॉस्टल और कॉलेज के मध्य ही पहुंची थी की उसकी चप्पल टूट गई । वो पैर घसीटते हुए दो चार कदम ही चल पाई । ऐसे तो चलना मुश्किल था। और वापस हॉस्टल जाकर दूसरी चप्पल पहन कर आने पर भी पेपर छूट जाता। वो असहाय सी इधर उधर देखने लगी की अब क्या करे...?
तभी सायकिल पे सवार वही रोज वाला युवक आ गया। वसुधा को इस तरह परेशान खड़ा देख वो सारा माजरा समझ गया। वो पास आया और बोला, "मेरा नाम विमल है शायद आपकी चप्पल टूट गई है, मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूं... ?"
कोई चारा न देख वसुधा को बोलना ही पड़ा । किसी भी हालत में वो एक मिनट भी लेट नही हो सकती थी। वो असमंजस से बोली,
" क्या मदद कर सकते हैं आप मेरी? मेरी परीक्षा बस शुरू ही होने वाली है मुझे तुरंत ही कॉलेज पहुंचना है ।" फिर प्रश्न पूर्ण नैनो से उस युवक की ओर देखा और अपने पैर देखने लगी।
"आप मेरी सायकिल पर बैठ जाइए , मैं आपको तुरंत कॉलेज पहुंचा देता हूं। फिर आप मेरी चप्पल पहन कर एग्जाम दे दीजिए । जब तक आपका पेपर खत्म होगा तब तक मैं आपकी चप्पल मरम्मत करवा कर
ले आ दूंगा। "
वसुधा ने कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह डाली बस पांच मिनट ही बचे थे पेपर शुरू होने में । वो एक अनजान लड़के से किसी और परिस्थिति में मदद लेने की सोच भी नही सकती थी। पर आज उसके भविष्य का सवाल था। वो पूरे साल की पढ़ाई बर्बाद नही कर सकती थी। वो भी तब जब उसकी इतनी अच्छी तैयारी थी। ना चाहते हुए भी उसे उस युवक से मदद लेने का निर्णय लेना पड़ा।
" जी अच्छा आप मुझे कॉलेज छोड़ दीजिए।" निगाहे झुकाए हुए वसुधा ने कहा ।
वसुधा की खूबसूरती ने उसे पहले ही मुग्ध कर रक्खा था। इस तरह घबराई झुकी निगाहों से उसका देखना ,लंबी लंबी पलको का झुकना उसे वसुधा की खूबसूरती का कायल बना दे रहा था।
विमल की प्रसन्नता का ठिकाना ना था। उसने सोचा भी नही था की वसुधा उसकी साइकिल पर बैठने को राजी हो जायेगी। वसुधा के सामने सायकिल ले कर खड़ा हो गया। जल्दी से वसुधा बैठ गई।
अपने पैरों से तेज तेज सायकिल के पैडल मारता हुआ विमल पूरी ताक़त से सायकिल चलाता हुआ कॉलेज की ओर चल पड़ा।
बस दो मिनट में वो कॉलेज के गेट पर थे।
गेट पर पहुंच विमल ने सायकिल रोकी और अपनी चप्पल वसुधा को दे दी। वसुधा फुर्ती से उन्हे पहना और संकोच के साथ अपने टूटे हुए चप्पल को विमल को दे दिया और लगभग दौड़ती कॉलेज के अंदर चली गई।
इधर वसुधा सब कुछ भूल कर एग्जाम देने में को गई। उधर विमल उन चप्पलो को अनमोल उपहार समझ खुशी खुशी ले कर बनवाने चल पड़ा।