तीन दिन बेहद बेचैनी में बीते विमल के, वो हर पल इंतजार करता रहा की कैसे ये तीन दिन बीते और उसे वसुधा का दीदार हो।
इधर वसुधा के मन में भी कुछ कोमल सा महसूस हो रहा था विमल के लिए। वो कर्जदार हो गई थी विमल की। अगर उस दिन विमल ना आया होता तो कोई शक नही था की उसका एक साल बरबाद हो जाता। उसका रोज पीछा करना अभी तक जहां वसुधा को अखरता था, वही अब वो शुक्रिया अदा कर रही थी ।
आखिर इंतजार खत्म हुआ । सुबह सुबह तैयार होकर वसुधा एग्जाम देने के लिए निकल पड़ी। उसकी निगाहें आस पास विमल को तलाश रही थी पर वो कहीं नजर नही आ रहा था।थोड़ी मायूसी से वो चली जा रही थी। चलते चलते कॉलेज आ गया, पर विमल नजर नही आया। वसुधा असमंजस की स्थिति में ही कॉलेज के अंदर चली आई।
इधर विमल को कुछ देर हो गई आने में। वो जब तक आता , वसुधा चली गई थी। वो खुद पर झल्लाता हुआ वापस चला गया।
तीन घंटे का पेपर था। इस समय को विमल खुद को कोसते हुए बिताया। जितना वो खुद को देर से पहुंचने के लिए दोषी समझता, उतना ही परेशान हो जाता। खैर किसी तरह दो घंटे बीते। अब वो कोई चांस नहीं लेना चाहता था कि पुनः उसे देर हो जाए । इस लिए एक घंटे पहले ही वो कॉलेज के लिए निकल गया अपने कमरे से । दस मिनट बाद वो कॉलेज के गेट के सामने खड़ा था। निगाहें उस ओर ही लगी थी जिधर से अक्सर वसुधा आया करती थी।
वसुधा ने पढ़ाई अच्छे से की थी जिसके फल स्वरूप उसका पढ़ा हुआ ही सब कुछ आया था एग्जाम में । फटाफट वो पेपर साल्व करने लगी । जिससे समय से आधा घंटे पहले ही उसका पेपर पूरा हो गया। हमेशा की तरह सहेलियों का इंतजार ना करके वो कॉपी जमा कर बाहर आ गई। मन में ये भी था अगर विमल आया होगा तो वो सहेलियों के साथ ठीक से बात नही कर पाएगी ।
बाहर निकलते वो तेज कदमों से गेट की ओर बढ़ी। जरा सा आगे बढ़ते ही देखा विमल दूर से हाथ हिला कर खुद के खड़े होने का इशारा कर रहा था।
वसुधा लंबे लंबे डग रखती हुई विमल की ओर बढ़ चली।
जो उतावला मन अब तक उसका इंतजार कर रहा था, अब वो पास.. बिल्कुल पास...... सामने खड़े होने पर संकोच से गड़ा जा रहा था।
ना तो विमल को कुछ सूझ रहा था ना ही वसुधा कुछ बोल पा रही थी।
कुछ पल बाद जब बगल से एक गाड़ी तेजी हॉर्न देती हुई गुजरी तब विमल कुछ संयत हुआ और चप्पल का थैला वसुधा की ओर बढ़ाते हुए बोला, " जी ... आपकी चप्पल मरम्मत करवा दी है। अब जल्दी नही टूटेगी।"
वसुधा ने "धन्यवाद " कहते हुए विमल के हाथों से थैला ले लिया।
अब वो अपने हॉस्टल की ओर चल पड़ी। साथ में विमल भी हो लिया।
दोनों के मन में बैचेनी थी कि अब ये साथ बस हॉस्टल पहुंचने तक का है। उसके बाद कब और कैसे मिलेंगे कुछ पता नही था।
हॉस्टल गेट पर पहुंच कर वसुधा अंदर जाने को हुई। तभी अचानक विमल बोल पड़ा, "आप बुरा ना माने तो यही पास में ही कॉफी हाउस है,
चले .... आप भी थकी होंगी फ्रेश हो जायेगी। बहुत अच्छी कॉफी मिलती है यहां। "
इतने समय यहां बिताने के बाद भी वसुधा ने कभी भी कॉलेज और हॉस्टल के अलावा कही और कदम भी नही रखा था। वसुधा सम्मोहित सी सिर्फ "जी... " ही कह पाई और उसके साथ चल पड़ी।
विमल जो डरते हुए कॉफी का ऑफर वसुधा के सामने रखा था । मन ही मन डर रहा था कि कहीं वसुधा बुरा ना मान जाए। उसके साथ चलने से प्रसन्न हो गया।
उत्साह से बताने लगा, "आप पी कर देखना इतनी मस्त कॉफी मिलती है यहां की बस दो मिनट में सारी थकान दूर हो जाती है। जो भी एक बार यहां कॉफी पी लेता है फिर हमेशा ही जाता है। "
बस चंद कदमों की दूरी पर ही था वो कॉफी हाउस इसलिए जल्दी ही वो दोनों पहुंच गए।
वहां विमल अक्सर ही आया करता था इसलिए सभी उसे पहचानते थे।
जिधर भीड़ नही थी, उधर अच्छी सी टेबल देख कर वो वसुधा को साथ ले कर आया और बड़ी ही अदब से कुर्सी खिसका कर विनम्र मुद्रा में हाथ से बैठने का इशारा किया। सकुचाते हुए वसुधा बैठ गई। उसके बाद सामने की कुर्सी पर वो भी बैठ गया। वो पहली बार इस तरह बाहर आई थी । इस कारण बेहद घबराई थी। एक वेटर को इशारा कर विमल ने बुलाया और दो कॉफी संग दो सैंडविच का ऑर्डर दे दिया।
विमल का रहन सहन का अंदाज रईसाना था जो किसी को भी प्रभावित करने के लिए काफी था। प्रेस किए हुए महंगे कपड़ों में वो किसी अफसर सा प्रतीत होता । अफसर तो वो न था पर उसकी आमदनी अच्छी थी । वो आईटीआई कॉलेज में टीचर था। खर्च कोई न था। रहने के लिए अच्छा सा क्वार्टर मिला था। खाना भी मेस में ही खाता था जो सभी बैचलर टीचर्स के लिए था। परिवार में ऐसा कोई न था जिसकी जिम्मेदारी उसकी हो। वो लुधियाना का रहने वाला था पर घर से कोई मतलब नही था। माता पिता जब वो सात वर्ष का था तभी एक हादसे में चल बसे थे। चाचा–चाची, ताऊ–ताई, ने पाला तो उसे पर अपनी औलाद की तरह नही बल्कि एक अनाथ को तरस के साथ। हर निवाले के साथ उसे यह एहसास कराया जाता कि वो उनके टुकड़ों पर पल रहा है। अपने बच्चो का उतरन पहनने को दिया, बचा खुचा खाने को, पुरानी किताबे पढ़ने को। पर जो कमाल उनके बच्चे नई किताबो से न कर पाते वो उन पुरानी फटी किताबों से कर देता हमेशा अव्वल रहता अपनी कक्षा में। उसे जल्दी से अपने पैरों पर खड़ा होना था। इसलिए बारहवीं के अच्छे नंबर देख सर ने सुझाव दिया आईटीआई कर लो तुम्हे स्कॉलरशिप भी मिलेगी और पढ़ाई पूरी होने पर अच्छी सम्मानित नौकरी भी मिल जायेगी। उसे सर का सुझाव जंच गया।
पर वो घर वालों के तानों और तिरस्कार से इतना ऊब गया था की वो गांव, शहर नही बल्कि वो प्रदेश ही छोड़ने का मन बना चुका था। उसने यूपी के फैजाबाद आईटीआई में एडमिशन लिया और फिर तो वो यहीं का हो कर रह गया। पहले पढ़ाई की फिर थी नौकरी कर ली। पुराने कपड़े उसे अतीत की याद दिलाते। इस कारण वो हमेशा नए कपड़े ही पहनता। विमल अपनी पिछली अभाव पूर्ण जिंदगी की सभी कड़वी यादों को धो पोंछ डालना चाहता था। यहां तक कि वो अपनी पिछली पहचान को भी भूल जाना चाहता था। इसी बीच वो ईसाई मिशनरियों के संपर्क में आया । विमल को यहां की आडंबर हीन पूजा पद्धति भा गई। फादर से मिला अपनापन उसे प्रभावित कर गया। बंदिश विहीन जीवन से प्रभावित तो वो था ही। फादर के उसे धर्म परिवर्तन का प्रस्ताव दिया तो वो तुरंत तैयार हो गया। अब वो विमल शर्मा से कमल डिसूजा बन गया था। वो अच्छे से अच्छा खाने पहनने की कोशिश करता। अब ये कमी तो पूरी हो गई थी। बस अब उसकी इच्छा थी कि एक सुंदर सी लड़की उसकी जीवन संगनी बन जाए। वसुधा को देख कर उसे लगा की जैसी उसकी कल्पना थी वसुधा बिल्कुल वैसी ही थी।
सैंडविच खाते हुए विमल अपने बारे में वसुधा को बताता जा रहा था। वसुधा खामोशी से सुने जा रही थी। बोलते– बोलते विमल को एहसास हुआ कि वो ही सिर्फ बोले जा रहा है , वसुधा तो कुछ बोल ही नहीं रही।
वो वसुधा से उसके और उसके परिवार के बारे में पूछने लगा। वसुधा ने भी उसे अपने और परिवार के बारे में बताया। साथ ही ये भी कि उसके घर वाले कितने पुराने खयालात के है। बातो में समय का अंदाजा जी नही हुआ । अचानक समय का अहसास होने पर वो उठ खड़ी हुई जाने के लिए। मदद और कॉफी के लिए विमल को शुक्रिया कहा और हॉस्टल की ओर चल पड़ी । विमल ने भी जल्दी से बिल पेमेंट किया और वसुधा के साथ चल पड़ा। वसुधा नही चाहती थी कि वो उसके साथ चले पर पता नही क्या सम्मोहन था विमल ये व्यवहार में की वो उसे मना नही कर पा रही थी। उसे पता था कि वो अपने पिता और घर की मर्यादा का उल्लघंन कर रही है। पर पता नही कोन सी अदृश्य ताकत थी जो उससे ये सब करवा रही थी। वसुधा ने कभी सपने में भी नही सोचा था कि वो किसी लड़के के साथ इस तरह कॉफी पीने जायेगी। हॉस्टल पास ही होने से जल्दी ही आ गया। वसुधा ने एक नज़र विमल की ओर देखा वो भी उसे ही देख रहा था। फिर तेजी से अन्दर चली गई।
रूम में पहुंची तो देखा उसकी सहेलियां कॉलेज से वापस आ चुकी थी। उसे देख जया ने सवाल दाग दिया,"अरे!! वसु रानी हम सब को छोड़ कर कहां गायब हो गई थी।"
उसके कुछ जवाब देने से पहले ही मीना बोल उठी,"तू भी जया क्या बेकार के सवाल करती है? इसके चेहरे की रौनक देखो क्या कुछ पूछना बताना बाकी है? मैं सौ प्रतिशत यकीन से कह सकती हूं ये विमल से मिल कर आ रही है। क्यों वसु …?"
वसुधा कुछ समझ नही पा रही थी की जया और मीना को कैसे पता चला? वो उठ कर शीशे में अपना चेहरा देखने लगी। देखा और खुद ही शरमा गई क्या वो वाकई इतनी ज्यादा सुंदर है! अपनी शक्ल उसे पहचानी नही जा रही थी । चेहरे की चमक से उसका रूप द्विगुणित हो गया था। उसने शीशे से ध्यान हटाया और आकर जया और मीना के पास बैठ गई। उन्हें सब कुछ बता डाला, अपने मन का पूरा हाल। अब दोनो सखियां उसकी राजदार थी। अपने अपने हिसाब से दोनो को जो सही लगा, अपनी प्यारी वसु को राय दे डाला।
अब जो पेपर बाकी थे उन्हें देने वसुधा जाती तो उनके साथ थी। पर लौटते समय विमल मिल जाता कॉलेज गेट पर।
वसुधा उसके साथ चली जाती। कुछ समय किसी दिन कॉफी हाउस में तो किसी दिन पार्क में । कुछ समय दोनो साथ बिताते।
आज आखिरी पेपर था वसुधा बहुत उदास थी । एग्जाम के बाद पापा आकर उसे ले जाने वाले थे। अब जब तक रिजल्ट नही आ जाता उसे गांव में ही रहना था। पेपर समाप्त होने के बाद वो विमल के साथ पार्क में गई। उसके उदासी का कारण जन कर विमल ने समझाया,"वसु.....! दुखी मत हो बहुत ज्यादा तो महीने दो महीने में रिजल्ट आ जाएगा। फिर हम साथ होंगे।"
इन चंद दिनों की मुलाकात में ही वसुधा को विमल से इतना ज्यादा लगाव हो जायेगा की उससे दूर रहना उसे अच्छा नही लगेगा ये उसने सोचा भी नही था।
अपनी प्यारी बेटी को वसुधा के पापा एग्जाम के बाद एक दिन भी अलग नही रखना चाहते थे। फल स्वरूप अगले दिन ही वो उसे लेने आ गए।