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मीना कुमारी...एक दर्द भरी दास्तां - उपन्यास
Sarvesh Saxena
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
"इन्हीं लोगों ने.. इन्हीं लोगों ने..
इन्हीं लोगों ने ले लीना.. दुपट्टा मेरा"
दोस्तों शायद ही ऐसा कोई हो जिसने इस गाने को नहीं सुना होगा और इस गाने को सुनते ही आंखों के सामने उभर आता है एक सुंदर सा चेहरा, बड़ी बड़ी आंखें और दबी मुस्कान, मानो हजारों गम छुपाकर भी होंठ मुस्कुरा उठते हों और आवाज ऐसी जैसे कोई दर्द भरी नज़्म पढ़ रहा हो |
जी हां हम बात कर रहे हैं मीना कुमारी की, वो मीना कुमारी जिन्होंने हिंदी सिनेमा को बेमिसाल फिल्में दी और फिल्मी पर्दे पर दर्द, दुख और पीड़ा को इस कदर बयान किया जैसे मानो वह फिल्मों में अपनी ही कोई दास्तान सुना रही हो |
मीना कुमारी ने वैसे तो बहुत फिल्में की लेकिन ज्यादातर फिल्मों में उन्हें दुखी और लाचार औरत के किरदार ही मिले जिसके कारण उन्हें ट्रेजडी क्वीन का खिताब भी मिल गया था और उनकी असल जिंदगी भी कुछ उनकी फिल्मों की तरह ही मिलती-जुलती थी |
"इन्हीं लोगों ने.. इन्हीं लोगों ने.. इन्हीं लोगों ने ले लीना.. दुपट्टा मेरा" दोस्तों शायद ही ऐसा कोई हो जिसने इस गाने को नहीं सुना होगा और इस गाने को सुनते ही आंखों के सामने उभर आता है एक ...और पढ़ेसा चेहरा, बड़ी बड़ी आंखें और दबी मुस्कान, मानो हजारों गम छुपाकर भी होंठ मुस्कुरा उठते हों और आवाज ऐसी जैसे कोई दर्द भरी नज़्म पढ़ रहा हो |जी हां हम बात कर रहे हैं मीना कुमारी की, वो मीना कुमारी जिन्होंने हिंदी सिनेमा को बेमिसाल फिल्में दी और फिल्मी पर्दे पर दर्द, दुख और पीड़ा को इस कदर बयान किया जैसे
अलीबक्श उन दिनों फिल्मों में हरमोनियम बजाते थे, घर के हालात ठीक न होने के कारण इक़बाल बानो भी काम पर जाती ऐसे में रोजी रोटी जुटा पाना भी मुश्किल हो गया था और तीन तीन बेटियों का खर्चा ...और पढ़ेधीरे धीरे दो बेटियों के साथ इस तीसरी बेटी महजबीन की परवरिश भी होने लगी | काम से लौटकर मां का कब आना हो इसलिए मां एक बार में ही ढेर सारी रोटियां बना कर रख जाती थी, जिसे महजबीन अपनी दोनों बहनों के साथ जब भी भूख लगती तो बासी रोटी, नमक और प्याज के साथ खा लेती | धीरे-धीरे
बचपन के बाद जवानी में कदम रखने के बाद भी मीना कुमारी का बोझ कम नहीं हुआ, दिन-ब-दिन बोझ और बढ़ता गया मीना कुमारी सुबह से रात तक काम करके जब आप घर आती तो घर में सुकून की ...और पढ़ेअब आए दिन मां-बाप में झगड़े होने लगे, वो अंदर ही अंदर टूटती रहती | रात को अपने बिस्तर पर पत्थर रखती और पत्थरों से बात किया करती और कहती यह पत्थर भी कितने सच्चे दोस्त हैं इनको कुछ भी कहो यह कभी नाराज नहीं होते और मेरी हर बात को सुनते और समझते हैं | मीना कुमारी को जब भी
इस हादसे के बाद एक दिन अस्पताल में मीना कुमारी से मिलने के लिए कमाल अमरोही जब आए तो मीना कुमारी की तबीयत उन को देखते ही ठीक हो गई और फिर शुरू हो गया प्यार का सिलसिला जो ...और पढ़ेसाल तक ऐसे ही चलता रहा | इसी दौरान मीना कुमारी को दो ऐसी फिल्में मिली जिन्होंने मीना कुमारी को ऊंचाई की बुलंदियों पर बिठा दिया फिल्म थी "बैजू बावरा" और "फुटपाथ" | "बैजू बावरा" ने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए फिल्म का संगीत, कहानी, एक्टिंग सब बहुत पसंद किए गए | मीना कुमारी को अपनी जिंदगी से अब कोई
मीना कुमारी ने फिल्म की कहानी को पढ़ा और इस फिल्म के लिए हां कह दी और इसी साल 21 मार्च 1954 को मीना कुमारी को पहला फिल्मफेयर अवार्ड मिला यह अवार्ड फिल्म" बैजू बावरा" के लिए था और ...और पढ़ेजमाने में फिल्म फेयर अवार्ड मिलना एक बहुत बड़ी उपलब्धि माना जाता था, उपलब्धियों का दौर यूं ही नहीं खत्म हुआ क्योंकि अगले साल 1954 में मीना कुमारी को दोबारा फिर फिल्म फेयर अवार्ड मिला जो था फिल्म "परिणीता" के लिए अब मीना कुमारी एक बहुत महंगी एक्ट्रेस बन गई थी | मीना कुमारी और कमाल की जिंदगी बहुत ही