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जीवन वीणा - उपन्यास
Anangpal Singh Bhadoria
द्वारा
हिंदी कविता
वीणा घर में रखी पुरानी , लेकिन नहीं बजाना आया । सारा घर उस पर चिल्लाया,जिस बच्चे ने हाथ लगाया।। जीवन वीणा के तारों की रीति -नीति नहिं हमने जानी । वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।१।। मुझे पता है मेरे जैसे , हैं अनेकश: जीवन धारी । भटकगए जगके जंगलमें,भला-बुरा नहिं सकें विचारी।। समझाइश है यह उन सबको,जो कर रहे यहां नादानी । वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।२।।
अपनी बात --------------वीणा घर में रखी पुरानी , लेकिन नहीं ...और पढ़ेबजाना आया ।सारा घर उस पर चिल्लाया,जिस बच्चे ने हाथ लगाया।।जीवन वीणा के तारों की रीति -नीति नहिं हमने जानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।१।।मुझे पता है मेरे जैसे , हैं अनेकश: जीवन धारी ।भटकगए जगके जंगलमें,भला-बुरा नहिं सकें विचारी।।समझाइश है यह उन सबको,जो कर रहे यहां नादानी ।वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी
किया बजाना बंद, फेंकने वाले ने फिर वीणा मांगी ।अंतर्मन पछतावा जागा,ललक बजाने की भी जागी ।।पर फकीर ने मना कर दिया, पहले सीखो इसे बजानी । वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।कहो करोगे क्या ...और पढ़ेलेकर, यह बेकार तुम्हारे घर है ।तोड़ फोड़ फेंकोगे इसको, हमको पूरा पूरा डर है ।।अगर सीखना हो तो दूंगा,लो संकल्प हाथ ले पानी ।वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी।।शांति भंग होगी तुम सबकी, अगर न इसे बजाना आया।इसीलिए मुझपर रहने दो,उस फकीर ने फिर समझाया ।।अच्छी खूब बजा सकते हो,हाथ सभीके कला सुहानी ।वीणा घर में
मुक्ति न पूर्व संस्कारों से, चाहें नये गढ़ रहे न्यारे ।ध्यान न देते कभी ध्यान पर,भौतिकता में वक्त गुजारे।।इस दुनियां की चकाचौंध में, करते रहे सदा नादानी ।वीणा घर ...और पढ़ेरखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।अगर उतरते ध्यान गुहा में, तो बुद्धत्व हमें मिल जाता।आत्मज्ञान वा ब्रह्मज्ञान का,ब्रह्मकमल अंदर खिल जाता।।पर अज्ञान सिंधु धारा में, व्यर्थ बहादी जीवन दानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।जप,तप,ध्यान,योग की नौका,चढ़ अज्ञान सिंधु तरजाते।आत्मभाव में सुस्थिर होकर,शुचि बुद्धत्व प्राप्त करजाते।।बुद्ध, विवेकानंद आदि बन,लिख सकते थे अमर कहानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।हम चाहें तो
दुर्लभ देह पाय मानव की, जो उन्नति पथ नहीं बनाते ।वह कृतघ्न हैं मंद बुद्धि हैं, अपना जीवन व्यर्थ गंवाते ।।अमृत पात्र दिया परमेश्वर, उसमें भरते गंदा पानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।ब्रह्मज्ञानयुत सद्गुरु ...और पढ़ेहोकर जीवन विधा विचारो।जीवन वीणा के तारों को,खींचो,कसो और झंकारो ।।अहो भाग्य सौभाग्य मनुज तन,भरो पात्र में अमृत पानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।विकसित हो आनंद तत्व तो,सुख सौरभ वयार आएगी।बन्धन नहीं रहेगा कोई, मुक्ति गीत सन्मति गाएगी ।।राह बता सकता वह सद्गुरु, ब्रह्म ज्ञान का जो विज्ञानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी
केवल भौतिक जीवन जीना, एकांकी वा अनहितकारी ।अध्यात्मिक जीवन के बिन नहिं,जीवन होय पूर्णता धारी।।धर्म-अर्थ वा काम-मोक्ष की, श्रेष्ठ चतुष्टय नीति बखानी ।वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।धर्म-अर्थ वा काम-मोक्ष का, है अद्भुत पुरुषार्थ चतुष्टय ...और पढ़ेजीवन का,यह अद्भुत संगम है निश्चय।।अर्थ-काम भौतिक जीवन है, धर्म-मोक्ष प्रभुता अगवानी।वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।धर्म यदपि अध्यात्म नहीं है,पर भौतिकता हित सुखकारी।जहां उपेक्षा धर्म-मोक्ष की, वहां बने जन भ्रष्टाचारी ।।अनाचार, व्यभिचार घृणा वा, नफरत करती खींचातानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।अंदर से अशांत है मानव व्याकुल है बेचैन