मुक्ति न पूर्व संस्कारों से, चाहें नये गढ़ रहे न्यारे ।
ध्यान न देते कभी ध्यान पर,भौतिकता में वक्त गुजारे।।
इस दुनियां की चकाचौंध में, करते रहे सदा नादानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।
अगर उतरते ध्यान गुहा में, तो बुद्धत्व हमें मिल जाता।
आत्मज्ञान वा ब्रह्मज्ञान का,ब्रह्मकमल अंदर खिल जाता।।
पर अज्ञान सिंधु धारा में, व्यर्थ बहादी जीवन दानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
जप,तप,ध्यान,योग की नौका,चढ़ अज्ञान सिंधु तरजाते।
आत्मभाव में सुस्थिर होकर,शुचि बुद्धत्व प्राप्त करजाते।।
बुद्ध, विवेकानंद आदि बन,लिख सकते थे अमर कहानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
हम चाहें तो हम भी वह, आनंद सहज ही पा सकते हैं ।
जीवन देव साधना करके, आराधना सजा सकते हैं ।।
चारों संयम साध, साधना, करने की विधि जानी मानी।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।
जीवन को ही देव बनाकर,मन चाहा वरदान ले सको ।
खुदको सदा प्रफुल्लित रखकर,औरोंको आनंद दे सको।।
जीवन वीणा अगर बजाना,सीख लिया तो लगे सुहानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
गंध वासना की थी जिसमें,वह जीवन महके चन्दन सा।
फूल खिलें उसमें समाधि के,महके तन मन नंदनवन सा।।
जहां उदासी और निराशा,वह हो जाय शांति सुख धानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
परमशांति जो कभी न मिटती,उसे ध्यान से पा सकते हो।
खाते-पीते, चलते-फिरते, शांति खूब अपना सकते हो ।।
बुद्ध महापुरुषों ने पाई, वही शांति हमको है लानी ।।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
सदा सर्वदा बुद्ध जनों के, जीवन जैसी शांति पा सको ।
ऐसा यत्न करो अपने में,उतरो डूबो पार जा सको ।।
वह आनंद उतारो अंदर,जिसकी कम नहिं होय जवानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
इतनी दुर्लभ चीजें पाना,इस शरीर से ही सम्भव है ।
सुख आनंद, शांति सरिता का,मानव के तन से उद्भव है।।
यह पाकर भी वह न बन सके, तो यह है अपनी नादानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
दुखसे भरा रहा यदि जीवन
,तो पावनतन किया कलंकित।
लज्जाजनक अशोभनीय है,वा अफसोस जनक है निश्चित।।
यह शरीर साधन सुमुक्ति का, आगे अब न करो नादानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
यह साधन, साधना हेतु है,कर साधना स्वयं को जानो ।
करो कठिन पुरुषार्थ,आत्महित,अपनी आत्मशक्ति पहचानो
सोचो मैं क्या, कौन, कहां से, क्यों आया क्या पूर्ण कहानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
अगर नहीं पुरुषार्थ कर सके, निंदनीय होगा यह जीवन ।
श्रुति सिद्धांत,ज्ञान का तुमने,मानव होकर किया न चिंतन।।
पशु समान जीवन जीकर तो, होगी तन से बेईमानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
दुर्लभ मानव जन्म मिला है,आत्ममुक्ति का यत्न कीजिए।
छोड़ आस्था असत् तत्व की,सत्य तत्व उर धार लीजिए।।
साधन आलस वा प्रमाद के, छोड़ो नष्ट न करो जवानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
विषय भोग के लिए नहीं है,यह शरीर साधन उन्नति का।
भोग स्वर्गका भी दुखदेता,फिर क्या कहना इसतन गतिका।।
मन विषयों के गर्त गिराकर,विष न बनाओ अमृत पानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
यह शरीर भव सागर बेड़ा,ईश कृपा से पार उतारे ।
सद्गुरु इस बेड़े के नाविक,बस उनके हो जाउ सहारे।।
दुर्लभ साधन मिला मनुजतन,करो न अब अपनी मनमानी।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।३५।।
लगातार..............