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कर्तव्य - उपन्यास
Asha Saraswat
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
व्यक्ति को अपने जीवन में माता-पिता,भाई -बहन का ध्यान रखना चाहिए; जब शादी हो जाये तो जीवन पर्यंत जीवन साथी का पूरा ध्यान और भरणपोषण करना चाहिए।जब बच्चे हों तो उनकी पूरी ज़िम्मेदारी से शादी विवाह करने के बाद,उनके बच्चों का भी भरपूर ध्यान रखना आवश्यक है ।जो अपनी सभी ज़िम्मेदारियों को बख़ूबी निभाता है वही समाज में एक अच्छा व्यक्ति कहलाता है ।ऐसा सदियों से सुनने में आता रहा है ।
लेकिन कुछ भारत-माता के सपूत , माता पिता के बेहद लाड़ले ऐसे भी इस संसार में हैं जो कि अपनी पत्नी बच्चे न होते हुए भी सब का भरण पोषण बड़े ही अच्छे ढंग से करते हुए अपना जीवन ख़ुश होकर निछावर कर देते है ।स्वरचित कहानी—-
कर्तव्य (1) व्यक्ति को अपने जीवन में माता-पिता,भाई -बहन का ध्यान रखना चाहिए; जब शादी हो जाये तो जीवन पर्यंत जीवन साथी का पूरा ध्यान और भरणपोषण करना चाहिए।जब बच्चे हों तो उनकी पूरी ज़िम्मेदारी से शादी ...और पढ़ेकरने के बाद,उनके बच्चों का भी भरपूर ध्यान रखना आवश्यक है ।जो अपनी सभी ज़िम्मेदारियों को बख़ूबी निभाता है वही समाज में एक अच्छा व्यक्ति कहलाता है ।ऐसा सदियों से सुनने में आता रहा है ।लेकिन कुछ भारत-माता के सपूत , माता पिता के बेहद लाड़ले ऐसे भी इस संसार में हैं
कर्तव्य (2) मैं जैसे ही अंदर गई भाभीजी ने मुझे गले लगा लिया और मेरी पहनी हुई फ्राक की खूब तारीफ़ की । मुझे भी अच्छा लगा और मैं उनसे बातें करने लगी ।भाभीजी— “गुड़िया तुम्हारी ...और पढ़ेबहुत सुंदर है,कौन लाया था ।” मैंने बताया—“भाभीजी यह ड्रेस रक्षा बंधन पर बड़े भैया लेकर आये थे, आज ही मैंने पहनी है ।देखो भाभीजी मेरे लिए भैया माला भी लाये थे , यह भी मैंने पहली बार पहनी है; कैसी लग रही है ।” भाभीजी— “अरे वाह क्या बात है
कर्तव्य (3) मॉं रसोई में कुछ बना रहीं थीं , बहुत अच्छी ख़ुशबू आ रही थी; हम और भैया रसोई में गये तो देखा मॉं मिसरानी चाची के साथ पकवान और भोजन बनाने में लगीं थीं । ...और पढ़े मैंने मॉं से पूछा— मॉं खाना तो सुबह बन गया हम सबने खा लिया , अब आप किसके लिए खाना बना रहीं है? मॉं तो अपने काम में लगीं थीं । मिसरानी चाची ने हमें बताया— आज कुछ मेहमानों के लिए नाश्ता बन रहा है । जब भी मॉं
कर्तव्य (4) वहाँ पर खेलने में बहुत आनंद आ रहा था, सभी रिश्ते के भाई-बहिनों के साथ हम खेल रहे थे । हमें खेलते हुए देख कर भाभीजी के रिश्तेदारों के बच्चे भी वही हमारे साथ ...और पढ़ेलगे । हमें भाभीजी को सजे हुए देखने का मन था, इसलिए हम अन्य बच्चों के साथ अंदर चले गए; पूर्व भैया वहीं खेलते रहे । जब हम अंदर गये तो भाभीजी तैयार हो रही थी उनके पास जाने की अनुमति नहीं मिली । हमारी नई सहेलियों ने वही
कर्तव्य (5) बारात में हमारी कुछ नई सहेलियों से मुलाक़ात हुई तो उनके साथ खेलने में बहुत आनंद आ रहा था । घर पर आने के बाद उन सब की याद आ रही थी लेकिन भाभीजी ...और पढ़ेसानिध्य में ज़्यादा कमी नहीं खली । शाम की दावत के लिए पूरी तैयारी हो रही थी, हम यह तय करना चाह रहे थे कि हम और पूर्व भैया कौन सी ड्रेस पहनें । हम अंदर से अपनी-अपनी ड्रेस ले आए और भाभीजी को दिखाने लगे, तभी दीदी ने कहा— “तुम लोग भाभीजी को