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कर्तव्य - 8

कर्तव्य—(8)

स्कूल से आने के बाद , जब घर में प्रवेश किया तो माहौल कुछ बोझिल सा लग रहा था ।

“भैया क्या बात है ?””मैंने अपूर्व भैया से पूछा ।

“पता नहीं , मैं अभी अपने स्कूल से आया हूँ ।” भैया ने कहा ।

हम दोनों अलग-अलग स्कूल में पढ़ने जाते थे।

मैंने देखा बड़े भैया बहुत ग़ुस्से में है, मंझले भैया चुपचाप बैठे हुए थे । मैंने कहा— “क्या हुआ भैया?”

उन्होंने कुछ जबाब नहीं दिया और अंदर कमरे में जाकर लेट गए । किसी से बात भी नहीं कर रहे थे ।

कुछ देर हम लोग ऑंगन में ही बैठे रहे तभी पिताजी को आते हुए देखा तो हम वहाँ से उठकर दूसरे कमरे में चले गये ।

मंझले भैया को पिताजी कुछ प्यार से समझा रहे थे और भैया नीचे नज़र करके सब कुछ सुन रहे थे ।

बड़े भैया ने पिताजी को सारी बातें बताई, लेकिन हमारी समझ से बाहर थीं । हमें कुछ समझ नहीं आया, हम अंदाज़ा लगा रहे थे कि क्या बात हो सकती है ।

मॉं ने भैया से कहा— “मैं उसे समझा दूँगी , तुम मंझले पर हाथ मत उठाया करो ; वह अब छोटा नहीं है तुम्हारे बराबर का हो गया है । हाथ उठाना तुम्हें शोभा नहीं देता, समझाने से समझ जायेगा ।

“मॉं आप नहीं जानती कि उसका वहाँ जाना कितना ग़लत है, आप समझा दीजिए वरना अच्छा नहीं होगा ।”
बड़े भैया ने कहा ।

मॉं कमरे में गई और पिताजी के साथ बाहर आ गई । सब कुछ सामान्य हो गया । शाम को मॉं ने खाना बनाया तो पिताजी और सभी भाई बहिनों ने मिलकर खाना खाया । बाद में हम लोग आइस-पाइस खेलने चले गये। खेल कर आये तो अपने बिस्तर पर जाकर सो गए ।

सुबह अपने दैनिक कार्यों के बाद सभी अपने अपने कार्य करने लगे, हम अपना टिफ़िन लेकर स्कूल चले गये।

आज स्थिति स्कूल से आने के बाद फिर कुछ ख़राब लगी। हमारी समझ में यह आया कि बड़े लोगों ने भैया को कहीं जाने के लिए मना किया है लेकिन भैया नहीं मानते चले ही जाते हैं ।

बड़े भैया ने मंझले भैया को बहुत समझाया और सुबह की रेल से अपने शहर चले गए जहॉ वह नौकरी करते थे।
सब कुछ सामान्य था लेकिन मंझले भैया को जहॉं जाना होता चले जाते ।घर पर किसी की बातों का उन पर कोई असर ही नहीं होता । मॉं भी अकेले में बात कर के भैया को समझाने की पूरी कोशिश करतीं ।

एक बार बड़े भैया अचानक ही छुट्टी लेकर आ गये , जब उन्होंने देखा कि मंझले भैया पूरे दिन घर में नहीं हैं और रात को भी देर रात तक घर नहीं आये तो जिस स्थान पर भैया जाते थे वहाँ से पकड़ कर लाये । आकर उन्हें कमरे में बंद कर उनकी पिटाई की, हम सोते से जग गये । हम रोने लगे बड़े भैया से कहने लगे भैया को मत मारिए ।हम कुछ भी समझ नहीं पा रहे थे ।

अगले दिन बड़े भैया उन्हें साथ लेकर चले गए, और अपनी ही कंपनी में काम पर लगा दिया । भाभीजी घर पर ही रहतीं, दोनों भाई सुबह खाना खाकर जाते और रात को आकर खाना खाकर सो जाते । यही क्रम बहुत दिनों तक चलता रहा, सब कुछ सामान्य था ।

बड़े भैया पहले से ही काम करते थे,उनका काम अधिक शारीरिक रूप से से श्रम का नहीं था । मंझले भैया अधिक पढ़े नहीं होने के कारण उन्हें जो काम मिला वह शारीरिक रूप से मेहनत का था ।शाम को भैया थक जाने के कारण सो जाते और सुबह वही काम करने चले जाते । अब उनका सभी जगह जाना बंद हो गया ।

एक परिवार पास में ही रहता, वहाँ उनके हम उम्र एक बेटा था और एक बिटिया थी । भैया कभी-कभी छुट्टी में उनके घर चले ज़ाया करते तो उनकी मम्मी बेटा जैसा प्यार करतीं और कुछ खाने को भी दे देती थीं ।वहाँ उनके घर पर मंझले भैया को बहुत अच्छा लगता ।

विद्यासागर नाम था उनके दोस्त का , नीलिमा बहन का नाम था । विद्यासागर और नीलिमा के साथ उनकी खूब पटरी खाती। उनकी मम्मी से मॉं जैसा ही प्यार मिलता ।
विद्यासागर की मॉं जो भी कुछ बनातीं भैया को ज़रूर खिलाती इसलिए भैया ख़ूब ख़ुश रहते, इस तरह वह बहुत प्रसन्न रहने लगे और उनका मन भी लग गया ।

एक बार भाभीजी की मॉं की तबियत ख़राब हो गई तो उन्हें बड़े भैया अपने घर पर ही ले आये , वे वहीं पर रहने लगीं । कुछ महीने सब कुछ अच्छा चलता रहा ।

एक दिन विद्यासागर ने बताया कि हमारे पापा का ट्रांसफ़र दूसरे शहर में हो गया है, हम सब लोग चले जायेंगे। कुछ दिनों तक उनके पापा अकेले रहने के बाद व्यवस्था करके सभी परिवार के सदस्यों को ले गए । जब वह गये भैया को बहुत ख़राब लग रहा था ।धीरे-धीरे समय निकल रहा था, जो समय मस्ती में कटता था;अब काटना बहुत मुश्किल हो रहा था । उन्हें घर की याद आने लगी, मॉं को बहुत याद करते ।

एक बार उन्होंने भाभीजी से कहा कि मुझे दिन में भूख लगती है आप टिफ़िन बना कर दे दिया कीजिए । भाभीजी तो कुछ नहीं बोलीं लेकिन उनकी माता जी ने बहुत डॉंट लगाई।क्या सारे दिन मेरी बेटी खाना ही बनाती रहेगी , जितना खाना हो सुबह खा कर ज़ाया करो । भैया कुछ नहीं बोले ,उदास रहने लगे ।

भैया को काम पर शारीरिक मेहनत करनी पड़ती, इसलिए उन्हें भूख बहुत लगती, लेकिन खाना दो ही समय मिल पाता । बढ़ती उम्र और खुराक पूरी न मिलने से कमजोर होते जा रहे थे ।

मंझले भैया , बड़े भैया से कभी भी कोई शिकायत नहीं करते क्योंकि वह भाभीजी को दुख पहुँचाना नहीं चाहते, उनका आदर करते थे ।

एक दिन अवकाश का दिन था बड़े भैया किसी काम से दूसरे शहर में गये थे । मंझले भैया ने भाभीजी से कहा भूख लगी है खाना बना दीजिए । भाभीजी तो कुछ नहीं बोलीं,माता जी ने कहा—“आज खाना शाम को ही बनेगा तभी सब खायेंगे ।”

भैया को ग़ुस्सा आया और वह बाहर चले गये , बहुत देर तक मंदिर में बैठे रहे प्रसाद खाया;फिर बैठे-बैठे उन्हें मॉं की याद आने लगी । हाथ जोड़ कर भगवान को देखते हुए वह रोने लगे फिर उठकर खड़े हुए घड़ी की दुकान पर जाकर अपनी घड़ी बेच दी और बस से घर के लिए रवाना हो गए ।

क्रमशः ✍️

आशा सारस्वत




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