कर्तव्य - 9 Asha Saraswat द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कर्तव्य - 9

कर्तव्य (9)

मॉं ने पूछा-“क्या तुम बड़े लल्ला को बताकर आये हो?”
भैया ने कोई उत्तर नहीं दिया और बाहर चले गये ।

भैया हमारे पास ही रहने लगे, सुबह जाते और शाम को आकर खाना खाकर सो जाते ।

एक दिन बड़े भैया का तार आया जिससे सूचना मिली कि भैया बिना बताए ही वहॉं से चले आए हैं ।

“बेटा तुम चले जाओ वरना नौकरी नहीं रहेगी।”मॉं ने बहुत समझाया ।

भैया ने मॉं से कहा “मैं वहाँ नहीं जाऊँगा आप वहाँ ख़बर भेज दीजिए ।”

कोई भी बात भैया बताने को तैयार नहीं थे सिर्फ़ यही कहते । “मैं नहीं जाऊँगा वहाँ मैं यहीं काम करूँगा ।”

कुछ दिनों बाद बड़े भैया आये उन्होंने बहुत समझाया लेकिन कोई बात न मानने की ज़िद थी उन्हें ।बड़े भैया अपने शहर चले गये ।

मंझले भैया ने एक दिन मॉं को बताया मेरा काम लग गया है, “मुझे सप्ताह में एक दो दिन को बाहर जाना होगा “ बाक़ी समय घर पर ही रहूँगा और घर पर ही काम करूँगा ।”

भैया कुछ दिनों के लिए बाहर जाते,आने के बाद मेरे लिए,अपूर्व भैया के लिए खिलौने-मिठाई लाते; हमारे लिए ड्रेस भी कभी-कभी ले आते।

अपूर्व भैया भी बड़े हो रहे थे तो उनके लिए भी काम की तलाश की जा रही थी । एक दिन मंझले भैया ने सुझाव दिया कि हमारी जो दुकानें हैं , उनमें से एक दुकान ख़ाली करा ली जाए और हम दौनो दैनिक उपयोग की वस्तुओं की दुकान खोल लें ।

कुछ दिनों बाद दुकान ख़ाली करा ली गई और सामान ख़रीदने के बाद दुकान शुरू कर ली ।भैया ने कहा जब मैं अपने शहर में नहीं हुआ तब अपूर्व को दुकान देखनी होगी, जब मैं यहाँ हूँ तो मैं और अपूर्व दोनों ही बैठेंगे ।
काफ़ी दिनों तक सब कुछ अच्छा चलता रहा सभी ख़ुश थे । मंझले भैया एक दो दिन को बाहर जाते बाक़ी समय में घर पर रहते और दुकान पर बैठते।

मंझले भैया का रिश्ता तय हुआ और शादी हो गई । भाभीजी घर में आने से बहुत सारी ख़ुशियों भी आ गई ।
कुछ दिनों तक मॉं की तबियत बहुत ख़राब रही, बहुत इलाज भी हुआ लेकिन एक दिन प्रातः बेला में मेरी ऑंखें खुली तो सब लोग रो रहे थे ,मैं उठकर उस दिशा में दौड़ी जहां से सबकी रोने की आवाज़ें आ रही थी ।

मैं देख कर अचंभित रह गई मेरी मॉं इस दुनिया में नहीं थी, हम भाई-बहन बहुत रोये । मॉं हमें पिताजी के सहारे छोड़ कर चलीं गई । पिताजी हम सब को गले लगा कर गुमसुम थे ।

धीरे-धीरे हम समर्थ होने लगे और उम्र से ज़्यादा समझदारी भी आ रही थी । हम पिताजी के साथ हंसी ख़ुशी रहने लगे । पिताजी कभी-कभी कहानियाँ सुनाते हुए जीवन जीने की कला सिखाने लगे; हम बड़े ध्यान से सुनकर उनकी कही हुई बातों को अमल में लाने की पूरी कोशिश करते । जब कोई गलती कर देते तो वह बड़े ही अच्छे ढंग से समझाते।

हमें किसी ने बताया कि हमारी मँझली भाभीजी दिमाग़ से फ़िट नहीं है अब वो नहीं आयेगी । मॉं तो इसी ग़म में चलीं गई, भैया और पिताजी भी उदास रहने लगे ।
हमें जब जानकारी हुई तो हमारा भी मन किसी काम में न लगता ।

एक दिन हमने देखा भैया बहुत सारा सामान लेकर आये, जब हमने खोलकर देखा तो मन प्रसन्न हो गया । हमारे लिए भैया बहुत सी आतिशबाजी लेकर आये, दिवाली निकट आ रही थी इसलिए हमारे लिए बहुत से उपहार और कपड़े भी भैया लेकर आये थे ।

पिताजी ने कहा अरे! “तुम इतना खर्च क्यों करके आये हो बेटे यह सब हम दिवाली पर ले आते।”

“मुझे दिवाली पर बहुत फ़ायदा हुआ है इसलिए मैं सभी के लिए उपहार ले आया ।” भैया ने कहा ।

हमसब की ख़ुशी देख पिताजी कुछ नहीं बोले।

तरह-तरह की मिठाइयों के साथ त्यौहार सभी ने बहुत ख़ुशी से मनाया ।

दुकान की व्यवस्था बहुत अच्छी चल रही थी,भैया जब भी बाहर जाते अपूर्व भैया दुकान बहुत अच्छे तरीक़े से चलाते ।

हमारी दीदी घर पर मिलने आईं और उनके साथ एक सज्जन भी आये जो कि हमारे मंझले भैया का अपनी बहन का रिश्ता पक्का कर चले गये , पिता न होने के कारण दीदी जीजा जी की मदद से उनके भाई ने भैया का वसंत पंचमी के मुहूर्त में आदर्श विवाह कर दिया ।

भैया का बाहर जाने के दिन अब बढ़ गये , वह सप्ताह में कई बार जाते कभी-कभी पूरे सप्ताह ही बाहर रहते । उनके पीछे अपूर्व भैया उनका पूरा काम देखते ।

उनकी गृहस्थी भी बढ़ रही थी,भाभीजी के चार बच्चों की देखभाल भैया के बाहर जाने पर अपूर्व भैया ही करते,
दुकान में से ही बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करते ।

पिताजी ने बहुत बार मंझले भैया को समझाया कि “तुम्हारी दुकान अच्छी चल रही है, तुम अब बाहर का काम छोड़ कर अपना ही काम बढ़ाने का प्रयास करो।”

भैया अपनी मनमानी करते और अपूर्व भैया पर अपना अंकुश रखते। उन्हें एक दिन की भी छुट्टी नहीं मिल पाती, वह लगातार काम में ही ख़ुशी से लगे रहते ।बच्चों का पूरा ध्यान रखते जब जिसको जितने पैसे की आवश्यकता होती दे दिया करते । भाभीजी को भी खर्च के लिए दे दिया करते ।

भैया ,अपूर्व भैया से हिसाब करते तो उन्हें डाँटते तुम इतना खर्च क्यों करते हो । अपूर्व भैया संकोच में कुछ नहीं कह पाते, भैया के सामने वह बोलते भी नहीं थे।

क्रमशः ✍️

आशा सारस्वत