कर्तव्य - 10 Asha Saraswat द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कर्तव्य - 10

कर्तव्य (10)

हम सब घर पर थे और मंझले भैया बाहर अपने किसी काम से गए थे, तभी बाहर कुछ शोरगुल सुनाई दिया । बाहर के दरवाज़े पर जाकर देखा तो हमारे पड़ौस में रहने वाले देवी दत्त चाचा जी ने बताया कि तुम्हारे भाई और सामने की गली में रहने वाले बिल्लू जो कि बदमाश है ,दोनों में लड़ाई हो रही है । उन्होंने बताया “मैंने बीच बचाव करने की कोशिश की लेकिन कोई बात मानने को तैयार नहीं ।”

मैंने दौड़ कर अंदर जाकर सब को बताया, दूसरे मंझले भैया घर पर ही थे वह वहाँ दौड़ कर गये तो उन्होंने वहाँ देखा कि बिल्लू के सिर में चोट लगी है और वह धमकी देता हुआ पुलिस चौकी की ओर दौड़ा जा रहा है । भीड़ भी बहुत थी , दोनों भाई घबरा गए और एक तरफ़ जाकर चिंतित थे कि अब पुलिस हमारे घर आयेगी।
चिंता में दोनों थे, तभी न जाने कहाँ से छोटे मंझले भैया के मन कोई ख़्याल आया और अपनी क़मीज़ उतार कर उसमें एक छोटा पत्थर बांधकर घुमाते हुए भैया के सिर पर दे मारा । देखते ही देखते उनके सिर में चोट लगी और खून बहने लगा । जल्दी से अपनी क़मीज़ पहनकर भैया को पुलिस चौकी की ओर लेकर शोर करते हुए दौड़ने लगे, सभी उनके पीछे दौड़ते हुए पहुँच गए ।

पुलिस चौकी पर तैनात लोगों से छोटे भाई ने कहा “हमारे भैया को बिल्लू ने बहुत मारा है ।” चोट देख कर पुलिस डाक्टर के पास लेकर गई और दोनों का उपचार कराकर आगे ऐसी हरकत की तो बंद कर दिए जाओगे । चेतावनी देकर दोनों की सुलह कराने के बाद छोड़ दिया।

घर आने के बाद सबने मंझले भैया से पूछा कि बिल्लू से तुम्हारी लड़ाई क्यों हुई उसका तो बहुत बदमाशों के साथ उठना-बैठना है,तुम्हारे साथ झगड़ा क्यों हुआ । मंझले भैया ने कोई बात ठीक से नहीं बताई,अंदर कमरे में जाकर लेट गए ।

अगले दिन बड़े भैया ने कहा “तुम्हारे साथ झगड़ा किस बात पर हुआ?”
उन्होंने गर्दन नीचे कर ली और कोई भी जबाब नहीं दिया ।बड़े भैया चिंतित थे उन्होंने अपने साथ ले जाने की बात कही,तब उन्होंने कहा “अब मैं कोई लड़ाई नहीं करूँगा भैया,मुझे माफ़ कर दीजिए ।”

भैया ने अकेले में बहुत समझाया और अपनी नौकरी पर चले गये ।

कुछ दिनों तक मंझले भैया बड़े शांत होकर अपनी दुकान का काम देखते रहे,जब बाज़ार जाते या भोजन करने जाते तो अपूर्व भैया को बैठाकर चले जाते।

धीरे-धीरे भैया फिर बाहर का काम करने जाने लगे ।
कुछ दिनों तक दो दिन बाहर रहते,बाक़ी दिन घर पर रहकर अपना काम सँभालते । अपने परिवार, बच्चों को खूब अच्छे कपड़े लाते स्वयं भी बढ़िया कपड़े पहनते। भाभीजी को भी कपड़े गहने की कोई कमी नहीं रखते ।

भैया के बड़े बेटे का जन्मदिन था,भाभीजी ने सब तैयारी अपूर्व भैया की सहायता से कर ली । रात तक भैया का इंतज़ार करते रहे वह नहीं आये , सब लोग खाना खा कर सो गए । पिताजी ने देखा कि भाभीजी अभी नहीं सोईं है,उनको पिता जी ने समझाया कि अब सो जाओ लल्ला को कोई काम होगा जो वह नहीं आ पाया ।भाभीजी को तो समझा दिया लेकिन पिता जी को बहुत चिंता हो रही थी ।

इस बार भैया पंद्रह दिन में आये,सभी बच्चों को कुछ न कुछ उपहार लेकर आये।

पिताजी ने कहा “ लल्ला तुम बच्चों को छोड़कर बाहर चले जाते हो ,हमें बहुत चिंता होती हैं तुम अब अपनी दुकान ही देखा करो । हम कुछ करने की हालत में नहीं हैं ,अपूर्व तुम्हारा पूरा काम सँभालता है । अब हम अपूर्व को दूसरी दुकान खुलवाने के इच्छुक हैं,इसके लिए रिश्तेदार आने लगे हैं इस की भी शादी करनी है ।” भैया ने सुनकर कुछ नहीं कहा,चुपचाप वहाँ से चले गए ।

अगले दिन वही बात पिताजी ने फिर दोबारा दोहराई, भैया ने जबाब में कहा “पिता जी आप क्यों चिंता करते हैं,अपूर्व की पूरी ज़िम्मेदारी मेरी है। मैं उसके सब काम बहुत अच्छी तरह करूँगा और शादी भी,आप को बिलकुल चिंता करने की ज़रूरत नहीं है ।” पिता जी शांत होकर किसी काम से बाहर चले गये ।

भैया अपने बेटों से ज़्यादा अपनी इकलौती बेटी को बहुत प्यार करते थे ।उसका जन्म दिवस बहुत ही अच्छी तरह मनाते थे । सभी को बुलाया और दावत बहुत अच्छी की । तभी एक परिवार के व्यक्ति अपूर्व भैया की शादी की बात करने के लिए पिता जी के पास आये। पिताजी ने कहा “हमारे बेटे से बात कर लीजिए ।” वह मंझले भैया के पास बात करने गये तो उन्होंने ठीक से बात नहीं की और फिर आने की बात कहकर उन्हें भेज दिया ।कुछ दिनों बाद वह फिर आये तब भी उनसे कोई बात नहीं की। उन्हें कोई और लडका समझ आ गया वहॉं रिश्ता पक्का कर उन्होंने शादी कर दी ।

अब भैया कभी पंद्रह दिन,कभी बीस दिन तक बाहर ही रहते ।आने पर सब के लिए सामान लाते। धीरे-धीरे बच्चे भी बड़े हो रहे थे, पूरा खर्च अपूर्व भैया दुकान में से ही देते थे। बच्चों पर भैया का कोई ध्यान ही नहीं था ,सब अपनी मनमानी करते कोई किसी का कहना नहीं मानता । अपने पापा का भी कहना टाल जाते और भैया को समय ही नहीं था,उन सब को देख ने का।बच्चों को हमेशा अच्छे कपड़े , अच्छा बाज़ार का खाना ही पसंद आता । पढ़ने में भी किसी का मन नहीं लगता और दोस्तों के साथ घूमने में बहुत खुश रहते ।

एक दिन पड़ौसी बच्चे ने आकर बताया कि भैया का बड़ा बेटा स्कूल न जाकर मैदान में दूसरे बच्चों के साथ ताश खेल रहा है । अपूर्व भैया को पता लगा तो वह तुरंत दौड़ कर उसे लेने गये , समझा कर बहुत मुश्किल से उसे साथ में लेकर आये । घर आकर वह दहाड़ मार कर रोने लगा , और भाभी जी से बोला “चाचाजी ने मुझे मेरे दोस्तों के सामने डॉंट कर मारा ।”
भाभीजी ने अपूर्व भैया को बहुत बुरा-भला कहा और बोलीं “तुम्हें मेरे बच्चों से कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है । आज के बाद मेरे बेटे से कुछ कहने की ज़रूरत नहीं ।”
अपूर्व भैया बहुत दुखी हुए और कमरे में अकेले जाकर मॉं को याद कर रोते रहे,परंतु पिता जी से किसी की कोई शिकायत नहीं की ।

क्रमशः ✍️

आशा सारस्वत