हम कैसे आगे बढे - उपन्यास
Rajesh Maheshwari
द्वारा
हिंदी प्रेरक कथा
यह घटना मगध की है। मगध के एक छोटे से राज्य के राजा की कोई सन्तान नहीं थी। जब वे वृद्धावस्था के करीब पहुँचे तथा उन्हें लगा कि उनके जीवन का सूर्य अब अस्ताचल के करीब जा रहा है ...और पढ़ेसन्तान प्राप्ति की कोई आषा नहीं रही तो उन्होने अपने राज्य के एक सैनिक को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। वह सैनिक बहुत वीर और साहसी था। वह बहुत बुद्धिमान भी था। उसने अपनी बुद्धि और वीरता से अनेक बार राजा के प्राणों की रक्षा की थी। यही कारण था कि राजा का उस पर स्नेह और विष्वास था। राजा की मृत्यु के बाद वह राजगद्दी पर बैठाया गया।
हम कैसे आगे बढे ( प्रेरक कहानिया) ...और पढ़े आत्म-कथ्य कभी खुशी - कभी गम के बीच जीवन के साठ बसंत जाने कब बीत गये। जो कुछ देखा, सुना और समझा उन अनुभूतियों और विचारों को कविता, कहानी और उपन्यास के रूप में व्यक्त किया। कुछ सच और कुछ कल्पना का सहारा लेकर अपनी अभिव्यक्तियों को सरस और सरल बनाने का प्रयास किया है। मेरा सृजन पाठकों को प्रसन्नता भी दे और
११. चतुराई एक घने जंगल में एक हाथी अपने झुण्ड से भटककर घूम रहा था। वह थक चुका था और एक वृक्ष के नीचे आराम करने के लिये खड़ा हो गया। वह रूक-रूक कर चिंघाड़ रहा था। उसी ...और पढ़ेपर एक बन्दर विश्राम कर रहा था। हाथी की चिंघाड़ से उसकी निद्रा में व्यवधान आ रहा था। उसने हाथी से अनुरोध किया कि आप कहीं और जाकर विश्राम करने चले जाएं। मैं इस वृक्ष पर अनेक वर्षों से रह रहा हूँ। आपकी आवाज से मैं आराम नहीं
२१. धन का सदुपयोग धन का मूल्य उसका स्वामी बनने में नहीं होता है वरन धन का मूल्य उसका सही उपयोग करने में होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम धन को व्यर्थ बरबाद करें। हमें ...और पढ़ेका सही उपयोग करना चाहिए। एक बार एक षिक्षाविद एक विष्वविद्यालय बनाने के लिये एक सेठ के पास दान मांगने पहुँचे। उस समय वह सेठ अपने लड़के को डांट रहा था। उसके लड़के को सिगरेट पीने की आदत पड़ गई थी। उसे देखने के लिये सेठ ने अपने नौकर को उसके
३०. फातिहा हिमाच्छादित पर्वतों के बीच, कल-कल बहते हुए झरनों का संगीत, प्रकृति के सौन्दर्य को चार चाँद लगा रहा था। कष्मीर की इन वादियों में पहुँचना बहुत कठिन है। चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पर्वत और गहरी खाइयाँ हैं। ...और पढ़ेक्षेत्र में भारत और पाक की सीमा है। यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से दोनों देषों के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे देष की सीमा में अंतिम चैकी पर मेजर राकेष के नेतृत्व में सेना एवं कमाण्डो दल देष की सीमाओं की रक्षा करने के लिये तैनात था। राकेष
३७. बाँसुरीवाला मुंबई षहर के पैडर रोड पर अपने मित्र के यहाँ जब भी मैं जाता तो प्रतिदिन सुबह 6 बजे के लगभग एक अंधा वहाँ से बाँसुरी बजाता हुआ निकलता था। वह बाँसुरी के बीच बीच में ...और पढ़ेही मधुर स्वर में भजन गाता जाता था। एक दिन मैंने उसे रोका और उससे कुछ बातें की। बातों में पता चला कि वह एक कुलीन परिवार का व्यक्ति था। एक दुर्घटना में उसकी आँखें जाती रही। उसके ही अपने लोगों ने कपटपूर्वक उसका कुछ हथिया लिया और