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पवित्र रिश्ता... - उपन्यास
निशा शर्मा
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
नोएडा की एक पचास मंजिला सोसायटी, जहाँ हर तरफ़ बस इमारतें ही इमारतें, एक-दूसरे का मुँह ताकती हुई इमारतें ! नीचे बने हुए चिल्ड्रन्स पार्क में खेलते हुए बच्चे और इसी पार्क के ठीक सामने बनी हुई इमारत के दसवें माले पर चढ़ता हुआ सामान... शायद किसी नें अभी-अभी बनकर तैयार हुई इस इमारत के दसवें माले पर एक फ्लैट खरीदा है और आज वो लोग इसमें शिफ्ट भी हो रहे हैं । इसी फ्लैट के ठीक सामने किराए पर रहता है एक लड़का...रोहित ! "रोहित शायद तेरे सामने वाले फ्लैट में कोई रहने के लिए आ गया है, देख
नोएडा की एक पचास मंजिला सोसायटी, जहाँ हर तरफ़ बस इमारतें ही इमारतें, एक-दूसरे का मुँह ताकती हुई इमारतें ! नीचे बने हुए चिल्ड्रन्स पार्क में खेलते हुए बच्चे और इसी पार्क के ठीक सामने बनी हुई इमारत के ...और पढ़ेमाले पर चढ़ता हुआ सामान... शायद किसी नें अभी-अभी बनकर तैयार हुई इस इमारत के दसवें माले पर एक फ्लैट खरीदा है और आज वो लोग इसमें शिफ्ट भी हो रहे हैं । इसी फ्लैट के ठीक सामने किराए पर रहता है एक लड़का...रोहित ! "रोहित शायद तेरे सामने वाले फ्लैट में कोई रहने के लिए आ गया है, देख
अगले दिन सुबह हिमांशु काफी जल्दी ही सोकर उठ गया या कहें कि वो सारी रात सोया ही नहीं ! इस तरह का आकर्षण हिमांशु अपनी ज़िंदगी में पहली बार ही महसूस कर रहा था ।छब्बीस वर्षीय हिमांशु की ...और पढ़ेसे लेकर कॉलेज तक की शिक्षा-दीक्षा तो ऑनली ब्यॉयज़ संस्थानों में ही हुई थी शायद इसे भी इसके एक बड़े कारण के रूप में देखा जा सकता है और इसके अलावा उसके अंतर्मुखी स्वभाव का भी इसमें काफी योगदान रहा कि आज अपने ऑफिस की न जानें कितनी महिला-सहकर्मियों का तो वो नाम तक भी ठीक से नहीं जानता है
"आखिर ऐसा भी क्या गुस्सा हिमांशु और फिर वो हमारे पापा हैं, कोई गैर तो नहीं हैं मेरे भाई!", गरिमा यानि कि हिमांशु की बड़ी बहन नें हिमांशु से कहा । "प्लीज़ दीदी,मैं इस बारे में बात करके आपको ...और पढ़ेपरेशान नहीं करना चाहता ।", हिमांशु नें एक गहरी साँस खींचते हुए जवाब दिया । अरे,अगर तुझे अपनी दीदी की परेशानी की इतनी चिंता है तो तू घर वापिस क्यों नहीं चला जाता ? देख मुझे बहुत अच्छे से पता है कि तेरी इस कंपनी की एक ब्रांच वहाँ फरीदाबाद में भी है और फिर तुझे ये जॉब करने की
सारा दिन हिमांशु बस अपनी आँखों के सामने से गुज़री हुई उस गाड़ी और उसमें बैठी हुई उस लड़की के बारे में ही सोचता रहा मगर लाख यत्न करने के बाद भी वो किसी भी नतीजे पर नहीं पहुँच ...और पढ़ेकि आखिर वो आदमी था कौन जो उस लड़की को इतने अधिकार से और इतनी बर्बरता से डाँट रहा था । अगले कुछ दिन ऐसे बीते कि वो लड़की न तो सीढ़ियों पर और न ही कहीं सोसायटी के कैम्पस में ही नज़र आयी जबकि हिमांशु जितनी बार भी अपने फ्लैट से बाहर होता तो उसकी नज़रों समेत उसके दिल
ये दौलत भी ले लो , ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो , मुझसे मेरी जवानी .... जगजीत सिंह जी की इस गज़ल को सुनते हुए आज एक बार फिर हिमांशु अपनी स्टडी-टेबल के सहारे लगी हुई ...और पढ़ेपर बैठकर अपनी किसी किताब के पन्ने पलट रहा था लेकिन आज उसके घर की खिड़की बंद थी और उसका ध्यान आज बस अपनी किताब के पन्नों तक ही सीमित था तभी उसकी बहन गरिमा का फोन आ गया । भाई, तू कबसे यहाँ नहीं आया । कल तेरे जीजा जी भी तुझे याद कर रहे थे । किसी दिन