पवित्र रिश्ता... - अंतिम भाग। निशा शर्मा द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पवित्र रिश्ता... - अंतिम भाग।

"मुझे अब जाना होगा ! सुबह होने में बस कुछ ही समय बाकी है और अगर मेरे पहुँचने से पहले अभ्युदय नींद से जाग गए तो बहुत मुश्किल हो जायेगी !", कहती हुई खुशी जैसे ही अपनी जगह से उठने को हुई हिमांशु नें उसे रोक दिया....

एक मिनट , सॉरी लेकिन मुझे ये बिल्कुल भी समझ में नहीं आया कि आप यहाँ मेरे पास .... मतलब कि...हिमांशु को अपनी बात पूरी करने में बहुत संकोच हो रहा था जिसे भाँपने में खुशी को दो पल का समय भी नहीं लगा और वो हिमांशु को बीच में ही टोककर बोल पड़ी ... "जी मैं समझ गई कि आप इस समय किस उलझन में उलझे हुए हैं, यही न कि आखिर ये सब बातें मैं यहाँ आपको बताने क्यों आयी ? तो इसका जवाब आपको देने के लिए मैं खुद भी बहुत बेकरार हूँ लेकिन अभी नहीं ! अभी मुझे जाना होगा वरना अनर्थ हो जायेगा",...इतना कहकर खुशी वहाँ से तेज़ कदमों से चलती हुई हिमांशु के फ्लैट से बाहर निकल गई और हिमांशु खुद को एक अजीब सी स्थिति में महसूस करता

हुआ वहीं कुर्सी पर बैठा रह गया। एक बार को तो उसे ये भी समझ में नहीं आ रहा था कि ये सपना था या हकीकत ? ? ?

कुछ देर बाद अपने ही सवालों-जवाबों के चक्रव्यूह में फंसा हुआ हिमांशु बड़ी ही मशक्कत के बाद उसमें से निकलकर ऑफिस जाने के लिए रेडी होने चला गया ।

ऑफिस में भी आज उसका कुछ खास मन लगा नहीं और लगता भी तो कैसे ? वो तो अभी भी पिछली रात के साये में ही जो डूबा हुआ था । शाम को जब वो घर पहुँचा तो उसके दोस्त रोहित का भी फोन आया और कुछ इधर-उधर की बातों के बाद रोहित नें उसे बताया कि वो वहाँ लखनऊ से कुछ दूर पर ही कानपुर में रह रही अपनी बुआजी के घर भी जायेगा और अब वो अगले तीन या चार दिन बाद ही लौटेगा जिसकी सूचना उसनें पहले से ही ऑफिस में मेल के द्वारा दे दी है ।

हिमांशु का आज डिनर करने का भी मन नहीं था तो उसनें खाना बाहर से ऑर्डर कर लिया और खुद नहाने चला गया ! हिमांशु नहाने के बाद अपने घर के छोटे से मंदिर में स्थापित भगवान जी के सामने हाथ जोड़कर बस खड़ा ही हुआ था कि डोरबेल बज उठी । उसनें फटाफट से अपने हाथ जोड़े और दरवाज़ा खोलने के लिए तेजी से आगे बढ़ा, उसे लगा कि शायद डिलीवरी-ब्यॉय उसका खाने का ऑर्डर लेकर आया होगा और इसी सोच में उसनें आननफानन में दरवाज़ा खोल दिया लेकिन सामने खुशी को खड़ा देखकर वो शर्माता हुआ सा अंदर आ गया क्योंकि उसने उस वक्त अपने बदन पर सिर्फ एक जिमवेस्ट और नीचे एक सफ़ेद रंग की टॉवल लपेटी हुई थी जिसे देखकर खुशी नें भी अपनी नज़रें झुका लीं और जब हिमांशु अपने बेडरूम के अंदर चला गया तभी उसनें फ्लैट के अंदर प्रवेश किया ।

कुछ देर बाद हिमांशु अपना लोअर और एक ब्लैक कलर की टी-शर्ट पहनकर बेडरूम से बाहर रूम में आया जहाँ कल रात की तरह ही खुशी आज भी एक कुर्सी पर बैठी हुई थी ।

हिमांशु के ऊपर वो ब्लैक कलर की टीशर्ट बेहद खूबसूरत लग रही थी जिसे देखकर खुशी भी उसकी तारीफ़ करने से खुद को रोक नहीं पायी ।

आपकी टीशर्ट बहुत अच्छी लग रही है ।

ओह्ह...ये ! थैंक्यू , हिमांशु एक सरसरी सी निगाह अपनी टीशर्ट पर डालते हुए बोला ।

जी वो अभ्युदय अपने ऑफिस की किसी पार्टी में गये हुए हैं तो बस मैंने सोचा कि अपना जो कल मैं अधूरा छोड़ गई थी,उसे पूरा कर दूँ !

उसकी इस बात पर कुछ असहज सा हो गया, हिमांशु !

खुशी नें फिर आगे बोलना शुरू किया...हिमांशु जी आप मुझसे पूछ रहे थे न कि मेरे वो सारी बातें आपसे बताने का क्या आशय था ? हिमांशु जी आपको पता है कि इंसान अपना दिल किसके सामने खोलकर रखता है ? ..... फिर कुछ देर ठहरकर हिमांशु की आँखों में अपनी आँखें डालते हुए खुशी नें खुद ही अपने प्रश्न का उत्तर दिया.... इंसान अपना दिल सिर्फ उसी के सामने खोलता है जिससे उसे उम्मीद होती है कि वो उसके दर्द को समझेगा, उसके दर्द को बाँटेगा और आप जानते हैं कि ये उम्मीद मुझमें किसने जगाई ? ? ?

आपनें हिमांशु जी, आपनें ! आपकी आँखों की इस शराफ़त नें जिसनें मुझे कभी भी उस चुभती हुई नज़र से नहीं देखा जिस तरह की मेरे बदन के हर एक हिस्से को घूरती हुई नज़रों का सामना मैं बचपन से आज तक करती आयी हूँ और मुझमें ये उम्मीद जगाई आपके उस स्नेहिल तथा भावनात्मक रिश्ते नें जो आपनें मेरी खिड़की पर रखे हुए मेरे उस पौधे से जोड़ लिया है...खुशी नें अपनी खिड़की पर रखे हुए उस पौधे की ओर देखकर इशारा करते हुए कहा ।

हिमांशु जी उस दिन जब आप मेरे फ्लैट के बाहर बिना किसी भी बात की परवाह किये मेरी डोरबेल लगातार बजाये जा रहे थे और फिर दरवाज़ा न खुलने पर आपनें अपनी बेबसी के चलते खुद को जो बारिश में भीगने की सज़ा दी थी वो काफी है मेरे लिए आपकी इंसानियत और मेरे प्रति आपकी पवित्र भावना का आंकलन करने के लिए !

तभी डोरबेल बज उठी,इस बार शायद डिलीवरी-ब्यॉय ही था । हिमांशु नें दरवाज़ा खोला और अपना खाने का ऑर्डर रिसीव कर लिया और उसके बाद वो फिर से एक बार खुशी के सामने आकर बैठ गया ।

देखिए आपको शायद मेरी ये बात बहुत अजीब और घटिया लगेगी और जितना मैं अभी तक आपको जान पायी हूँ उसके मुताबिक तो मुझे ये भी डर है कि कहीं मेरी पूरी बात सुनने के बाद आप मुझे अपने घर से धक्के मारकर ही न निकाल दें !

प्लीज़ ! आप इस तरह की बातें बोलकर मुझे शर्मिंदा न करें । देखिए खुशी जी मैं आपसे वादा करता हूँ कि मैं आपकी किसी भी बात पर जैसा कि आप सोच रही हैं वैसा रिएक्ट तो बिल्कुल भी नहीं करूँगा और रही बात आपकी मुझसे उम्मीद की तो मैं इतना तो ज़रूर कह सकता हूँ कि अगर मेरे वश में होगा तो मैं आपको नाउम्मीद बिल्कुल भी नहीं करूँगा !

जी आपके ही वश में है, हिमांशु जी ! सबकुछ आपके ही वश में है अगर आप चाहें तो मेरी जिंदगी के आसमान पर छायी ये दुखों की बदली छंट सकती है ।

मैं कुछ समझा नहीं,खुशी जी ! प्लीज़ आप ज़रा खुलकर बताइए कि आखिर मैं आपकी ज़िंदगी में किस तरह से मददगार साबित हो सकता हूँ ? ? ?

मुझे... मुझे.... खुशी के शब्द उसके गले में ही घुटे जा रहे थे...और फिर वो चीख पड़ी...मुझे माँ बना दो....हिमांशु ! !

और उस चीख के साथ जैसे सबकुछ शांत हो गया। दिल चीर देने वाली उस खामोशी के कुछ देर बाद हिमांशु वहाँ से उठकर किचेन में चला गया, जहाँ उसनें दो से तीन गिलास पानी लगातार अपनें हलक से उतार लिया । उसके पैर मानों वहीं पर जम से गये हों । वो चाहकर भी वहाँ से हिल नहीं पा रहा था तभी वहाँ पर खुशी भी आ गई और उसनें अपना आँचल हिमांशु के सामने फैला दिया....मुझे नाउम्मीद मत करो...प्लीज़...प्लीज़ हिमांशु मुझे नाउम्मीद मत करो...खुशी बेतहाशा रोये जा रही थी मगर हिमांशु तो जैसे वहाँ पत्थर का बनकर खड़ा हुआ था ।

देखो ये तो तुम भी जानते हो कि अब ये ही मेरी नियति है और मैं ये बिल्कुल भी नहीं चाहूँगी कि मेरे बच्चे का बाप पैसों से खरीदा हुआ हो या फिर वो सिर्फ मेरे साथ अपनी हवस पूरी करने के लिए सोये !

मैं चाहती हूँ कि मेरे बच्चे का पिता एक नेकदिल इंसान हो, जो सिर्फ कहने के लिए इंसान न हो हिमांशु बल्कि जिसकी इंसानियत सचमुच में जिंदा हो और सबसे बड़ी बात कि जो मेरे बच्चे की माँ की पूरे दिल से इज्ज़त करता हो...ये कहते-कहते खुशी नें अपने दोनों हाथ हिमांशु के सामने जोड़ लिए और फिर वो अचानक से हिमांशु के पैरों में गिर गई !

पत्थर बना हिमांशु अब पिघल चुका था , उसनें धीरे से अपने पैरों में बैठी हुई खुशी को बड़े स्नेह और सम्मान के साथ उसके दोनों हाथ पकड़कर ऊपर उठाया और खुशी रोती हुई उसके सीने से लिपट गई !

इस रात के बीत जाने के बाद अगले एक-दो महीनों तक न तो हिमांशु नें कभी खुशी से मिलने की कोशिश की और न ही खुशी ही कभी उससे मिलने आयी ।

फिर एक दिन खुशी नें हिमांशु को कॉल करके अपने माँ बनने की बात बतायी जिसपर हिमांशु नें खुशी से बस इतना ही कहा कि...."हमेशा खुश रहो", ... ये कहते-कहते उसकी पलकें गीली हो गईं .... अब ये आँसू खुशी के थे या फिर उसके खुशी से जुदा होने के एहसास के इसे शब्दों में बयान करना तो खुद हिमांशु के वश की भी बात नहीं थी ।

हिमांशु के एग्जाम्स खत्म हो चुके थे और वो इस बीच अपनी दीदी गरिमा से भी उनके घर जाकर मिल आया था । खुशी की खिड़की पर रखा हुआ पौधा फिर से हराभरा हो चुका था । रोहित अपने मामा जी की बेटी की शादी में बनारस जाने की तैयारी कर रहा था और सबसे बड़ी बात कि अब खुशी का पति उसकी खुशी की परवाह करने लगा था । खुशी के पति में अचानक आये हुए इस बदलाव को हिमांशु समेत रोहित नें भी महसूस किया था कि अब खुशी के फ्लैट से चीखने-चिल्लाने या लड़ने-झगड़ने की आवाजें नहीं आती थीं और अब वो अक्सर अपने पति के साथ बाहर घूमने भी जाया करती थी और वो भी हमेशा भारतीय-परिधान पहनकर !

रोहित बनारस गया हुआ था और जनवरी की इस ठंडभरे दिन में आज फिर बेमौसम बरसात हो रही थी कि तभी एक ओला-कैब हिमांशु के फ्लैट के नीचे आकर रुकी शायद हिमांशु कहीं जा रहा था तभी बरसात की अंदर आती हुई बौछारों के कारण खिड़की बंद करने आयी हुई खुशी की नज़र उस कैब में सामान रखते हुए हिमांशु पर पड़ी और किसी आशंका से भरकर खुशी नंगे पाँव ही सीढ़ियों से दौड़ती हुई नीचे आयी लेकिन वो कैब अब वहाँ से जा चुकी थी ।

खुशी पागलों की तरह सोसायटी के गेट की तरफ़ भागी ! कैब बस मेन गेट से बाहर निकल ही रही थी कि उसमें बैठे हुए हिमांशु की नज़र अचानक ही अपनी कैब के पीछे भागती हुई खुशी पर पड़ी और उसनें तुरंत ही कैब-ड्राइवर से कैब रोककर साइड में लगाने के लिए कहा ।

हिमांशु...हिमांशु...खुशी बारिश में पूरी तरह से भींग चुकी थी और वो बुरी तरह से हाँफ़ भी रही थी ।

तुम कहाँ जा रहे हो हिमांशु और वो भी मुझे बिना बताए ?

आपको मैं किस हक से बताता ? आखिर हक क्या है मेरा आप पर और वैसे भी खुशी जी मैं आप पर किसी भी तरह का कोई भी हक जताकर हमारे बीच के इस पवित्र रिश्ते को बदनामी के दलदल में ढकेलना नहीं चाहता !

लेकिन आप इस तरह से और इतना सारा सामान लेकर....खुशी की बात को बीच में ही काटते हुए हिमांशु नें कहा.... मैं जा रहा हूँ खुशी जी और शायद अब कभी भी न लौटूँ !

और खुशी जी मुझे इस बात का भी डर है कि कहीं मैं अपने अंश को देखकर अपनी मर्यादा न भुला बैठूँ और फिर हमारे इस पवित्र रिश्ते की पवित्रता को बरकरार रखना खुद मेरे वश में भी नहीं होगा !

खुशी नें अपने गालों पर बहते हुए आँसुओं को छुपाते हुए झुककर हिमांशु के पैर छुये !

"आप रो रहे हैं ?", खुशी नें हिमांशु की आँखों में झाँकते हुए पूछा...

"नहीं, बिल्कुल नहीं ! ये तो आपकी खुशहाल ज़िंदगी को देखकर निकले हुए मेरे खुशी के आँसू हैं.... चलता हूँ, अपना और अपने बच्चे का ख्याल रखना और हाँ अभी जो आप बच्चों की तरह दौड़ रही थीं न ये सब अब इस हालत में नहीं चलेगा, समझीं आप !", हिमांशु नें अपने आँसुओं को पोंछते हुए और अपने होठों पर हँसी लाने की नाकाम कोशिश करते हुए खुशी को हिदायत देते हुए अंदाज़ में कहा ।

और हाँ कभी ज़रूरत पड़े तो मेरा नम्बर हमेशा रोहित के पास रहेगा ,ख्याल रखिएगा....कहता हुआ हिमांशु कैब में बैठ गया ।

कैब के जाते ही वो बेमौसम की बारिश भी थम गई ! खुशी अपने फ्लैट में वापिस आ चुकी थी और उसनें अपनी खिड़की पर रखे हुए उस हरेभरे पौधे को बड़े ही स्नेह के साथ सहलाया और फिर खिड़की बंद कर ली ! !
समाप्त !

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐