पवित्र रिश्ता... भाग-४ निशा शर्मा द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पवित्र रिश्ता... भाग-४

सारा दिन हिमांशु बस अपनी आँखों के सामने से गुज़री हुई उस गाड़ी और उसमें बैठी हुई उस लड़की के बारे में ही सोचता रहा मगर लाख यत्न करने के बाद भी वो किसी भी नतीजे पर नहीं पहुँच पाया कि आखिर वो आदमी था कौन जो उस लड़की को इतने अधिकार से और इतनी बर्बरता से डाँट रहा था ।

अगले कुछ दिन ऐसे बीते कि वो लड़की न तो सीढ़ियों पर और न ही कहीं सोसायटी के कैम्पस में ही नज़र आयी जबकि हिमांशु जितनी बार भी अपने फ्लैट से बाहर होता तो उसकी नज़रों समेत उसके दिल की बस एक ही ख्वाहिश होती कि काश वो अभी सामने आ जाये लेकिन दिल का मनाया इतनी आसानी से होता कहाँ हैं और फिर ये कोई रोमांटिक हिन्दी मूवी तो थी नहीं कि हीरो नें अपनी आँखें बंद करके हीरोइन के बारे में सोचा और हीरोइन हाज़िर !

आज इतवार था मतलब कि सुकून भरा दिन , न ऑफिस की भागमभाग और न ही दोड़-दौड़कर हर काम को निपटाने की जल्दी ! आज रोहित नें हिमांशु को अपने यहाँ लंच पर इनवाइट किया था । दरअसल आज वो दोनों मिलकर लंच बनाने और खाने वाले थे ।

हिमांशु अलसाया हुआ उठा और फिर उसनें अपनी पसंद के गाने लैपटॉप पर लगाये और फिर अपने डेली-रुटीन में व्यस्त हो गया ।

"मुझे तेरी वफ़ा का सहारा मिल जाये तो ज़िंदगी मिल जायेगी"... टोनी कक्कड़ का ये गीत लैपटॉप के साथ ही साथ शायद आज हिमांशु के दिल में भी बज रहा था !

वो ठीक साढ़े ग्यारह बजे तैयार होकर रोहित के फ्लैट के सामने खड़ा था । दोनों दोस्त जब मिलकर लंच प्रिपेयर करने में मशरूफ थे तभी उन्हें अपने सामने के फ्लैट से चीखने-चिल्लाने की आवाजें सुनाई दीं जिनपर जहाँ हिमांशु बेहद चौंका वहीं रोहित बिल्कुल सामान्य बना रहा जैसे कि कुछ हुआ ही न हो ।

"यार, ये आवाजें...तुझे सुनाई दे रही हैं न !", हिमांशु नें चलते हुए टीवी का वॉल्यूम रिमोट से स्लो करते हुए पूछा ।

"अरे यार ! क्या आवाजें ? ये तो यहाँ रोज का है । हर दिन सुबह और शाम बाकी रविवार को तो पूरा दिन बस यही । कितनी बार सोसायटी के लोगों नें इनकी कम्पलेन भी की लेकिन पता नहीं साला कितना पावरफुल और बहरूपिया किस्म का बंदा है कि हर बार उस पर एक्शन होते-होते रह जाता है ।", रोहित नें मुँह बिचकाते हुए कहा ।

हिमांशु लंच करने के कुछ देर बाद ही रोहित के घर से चला आया क्योंकि आज वहाँ उसका मन बिल्कुल भी नहीं लग रहा था, शायद सामने के फ्लैट से आने वाली वो चीखें उसे जबर्दस्ती उसके अतीत में ढकेलने का काम कर रही थीं ।

हिमांशु अपने फ्लैट में आकर बिस्तर पर चुपचाप अपनी आँखें बंद करके लेट गया । कुछ देर में उसकी आँख लग गई!

आज मेरी तबियत ठीक नहीं है , प्लीज़ आज रहने दीजिए न !

हम्म ! अरे जिसकी बीवी इतनी खूबसूरत हो वो भला रूके भी तो कैसे ? हाँ कैसे ? बताओ न...नयना, कैसे ?

आपनें आज ज्यादा पी ली है और इसकी बदबू से मेरा जी मचलता है , बस आज छोड़ दो प्लीज़ !

अरे तुम तो रोने लगी और ये क्या तुम हाथ क्यों जोड़ रही हो ? ? ? चलो अच्छा नहीं करते आज कुछ बस मेरे पास आकर चुपचाप लेट जाओ...चुपचाप....अपने होठों पर उंगलियाँ रखते हुए उस शख्स नें चुप रहने का इशारा किया।

नयना कुछ निश्चिंत सी होकर चुपचाप उसके पास बिस्तर पर लेट गई और उसनें अपनी आँखें मूंद लीं । वो सुकून की चार साँसें भी न ले पायी थी कि वो शख्स जो कि उसका पति प्रदीप था, उसके ऊपर बिल्कुल एक भूंखे भेड़िये की तरह झपट पड़ा । नयना रोती रही, गिड़गिड़ाती रही लेकिन उस वहशी की वहशियत न रुकी । कुछ देर बाद नयना बिस्तर पर अपने शरीर पर तमाम नोचने-खसोटने और दाँत से काटे के निशान लिए पड़ी थी और वो शख्स दूसरी तरफ़ मुँह के बल बिस्तर पर औंधा लेटकर खर्राटे भर रहा था । चौदह वर्षीय हिमांशु न जाने उस घर के किस कोने से ये सब देख रहा था और फिर देखते ही देखते उसकी आँखों में खून उतर आया । अब हिमांशु के हाथ खून से पूरी तरह से सने हुए थे जिसे देखकर उसकी माँ नयना की चीख निकल गई...हिहिहिमममममांशुशशशशु.... ! ! !

मममममममाआआआआआ.... एक चीख के साथ हिमांशु की आँख खुल जाती है और उसका शरीर पसीने से तरबतर था । वो अब पूरी तरह से नींद से तो जाग चुका था मगर फिर भी वो अपने इस सपने से पूरी तरह से बाहर नहीं निकल पा रहा था । उसका शरीर थरथर काँप रहा था । लगभग दस से पन्द्रह मिनट के बाद वो बड़ी ही हिम्मत करके उठा और वॉशरूम चला गया ।

हिमांशु का मन आज घर में बिल्कुल भी नहीं लग रहा था तो उसनें अपने दोस्त रोहित को कॉल लगाई लेकिन उसके दोस्त का फोन बिज़ी था जिसपर उसनें बाहर सोसायटी के पार्क में घूमने का मन बना लिया और वो अपने घर में पहने हुए लोअर और हाफ टी-शर्ट में ही नीचे पार्क में पहुँच गया । पार्क बिल्कुल खाली पड़ा था हालांकि रोज़ वहाँ बच्चों और महिलाओं की काफी भीड़ होती है लेकिन आज शायद अवकाश वाला दिन होने की वजह से सब लोग बाहर घूमने गये हुए हैं ।

कुछ देर पार्क के चक्कर लगाने के बाद हिमांशु वहीं एक बेंच पर बैठ गया और वो अपना फोन निकालकर उसमें दिनभर के आये हुए वॉट्सऐप और फेसबुक के मैसेजेस को चैक करने लगा । वो फोन देख ही रहा था कि तभी उसकी निगाह अपने ठीक बगल के छोटे पार्क में घूमते हुए एक कपल पर पड़ी जो शायद किसी बात पर बहस कर रहे थे और इससे पहले कि हिमांशु उनके बीच हो रही बहस के मुद्दे को सुन या समझ पाता उस शख्स नें रूककर अपने साथ चल रही उस लड़की के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मार दिया जिसकी गूंज न जाने क्यों हिमांशु के कानों से होती हुई सीधे उसके दिल तक पहुँच गई । वो बड़ी ही फुर्ती से वहाँ से उठा और फिर अनायास ही उसके कदम उस कपल की ओर बढ़ गये लेकिन हिमांशु जब तक वहाँ पहुँचा वो शख्स वहाँ से जा चुका था और जब हिमांशु उस लड़की के करीब पहुँचा तो ये देखकर दंग रह गया कि वो लड़की कोई और नहीं बल्कि वो ही सीढ़ियों वाली लड़की थी ।

"आप ठीक तो हैं न ! वो शख्स कौन था जो अभी आपके साथ था ? उसनें आपके साथ बद्तमीजी की, आपको थप्पड़ मारा और आपनें उसे बिना कुछ बोले बस ऐसे ही जाने दिया । आखिर क्यों ? वो था कौन आपका ?", हिमांशु एक अजनबी लड़की से बड़े ही हक के साथ ये सबकुछ कह रहा था जबकि वो भी कहीं न कहीं इस बात से बहुत ही अच्छी तरह से वाकिफ़ था कि यहाँ हक जताने का उसे बिल्कुल भी हक नहीं था तभी चुपचाप खड़ी वो लड़की एकदम से चीख पड़ी...जानना चाहते हो न कि आखिर मैंने उसे इतनी आसानी से क्यों जाने दिया ? आखिर वो लगता क्या है मेरा और मुझे इस तरह घर के बाहर,बाहरी-लोगों के सामने थप्पड़ मारने का हक भला किसने दिया ? हम्म ! तो मिस्टर उसे ये हक दिया है मेरी माँ ने जो आजतक कभी अपना भी हक मेरे बाप से नहीं ले पायी और उसे ये हक दिया है मेरे नपुंसक भाई और उसकी प्राँणों से भी प्यारी मेरी भाभी नें और इस महान समाज नें क्योंकि समाज कहता है कि वो मेरा भगवान है, मेरा परमेश्वर है ! क्यों ? क्या तुम अभी भी नहीं समझे ? अरे, वो पति है मेरा...पति !", ये कहकर गुस्से से भरी हुई वो लड़की अपने पैर पटकती हुई वहाँ से चली गई ।

उस लड़की को तो शायद ये अंदाज़ा भी न होगा कि वो अपने पीछे कितना कुछ तोड़कर और बिखेरकर चली गई थी ! हिमांशु के पैर लड़खड़ाने से लगे और वो खुद को सम्भालता हुआ और अपने टूटे हुए दिल के टुकड़ों को समेटता हुआ, बोझिल कदमों से अपने फ्लैट की ओर चल दिया ।

ओऐ....हिमांशु...हिमांशु....रोहित नें शायद हिमांशु को नीचे से निकलते हुए देख लिया था और उसनें कई बार उसको पुकारा लेकिन हिमांशु को तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था वो चुपचाप चलता हुआ अपने फ्लैट में आ गया ।

आज की रात हिमांशु पर बहुत भारी थी वो गुमसुम सा बिस्तर पर लेटा हुआ सारी रात करवटें बदलता रहा। उसके कानों में गूंज रहे थे तो बस वो शब्द जिनकी कल्पना उसनें कभी सपने में भी नहीं की थी....वो पति है मेरा,पति ! ...पति ! ...पति !

हिमांशु को अब अपनी पीड़ा उस लड़की की पीड़ा से भी ज्यादा मालूम हो रही थी । सुबह होते-होते हिमांशु तेज़ बुखार से तपने लग गया था ।

ऑफिस का टाइम हो जाने पर भी जब हिमांशु अपने घर से नहीं निकला तो रोहित नें उसे दो-तीन बार फोन किया और जब उसनें फोन पिक नहीं किया तो चिंतित होता हुआ रोहित हिमांशु के घर पर पहुँच गया । वहाँ पहुँचकर जब उसनें हिमांशु की ऐसी हालत देखी तो पहले तो उसनें ऑफिस में कॉल करके इन्फॉर्म किया उसके बाद उसनें हिमांशु को चाय के साथ बिस्किट देकर उसे पैरासिटामोल दी । इसके बाद रोहित हिमांशु को कुछ हिदायतें देकर और शाम को आने के लिए बोलकर, ऑफिस के लिए निकल गया ।

अगले कुछ दिनों तक हिमांशु की हालत में जब कोई सुधार नहीं हुआ तो रोहित नें हिमांशु की बड़ी बहन गरिमा को उसके बारे में बताना चाहा लेकिन हिमांशु नें रोहित को अपनी कसम देकर गरिमा को कुछ भी नहीं बताने के लिए मना लिया जिसपर रोहित नें भी एक शर्त रखी कि अगर वो उसके साथ डॉक्टर को दिखाने चलेगा और प्रॉपर ट्रीटमेंट लेगा तभी वो ये बात गरिमा दीदी को नहीं बतायेगा जिसपर हिमांशु रोहित के साथ डॉक्टर के पास जाने के लिए राज़ी हो गया ।

लगभग एक हफ्ते के इलाज के बाद आज हिमांशु स्वस्थ्य हो चुका था और आज वो ऑफिस जाने की तैयारी कर रहा था कि तभी उसका दोस्त रोहित उसके साथ जाने के लिए उसके फ्लैट पर आ गया क्योंकि हिमांशु नें अपने स्वास्थ्य का बहाना बनाकर रोहित से ये कह दिया था कि अब वो ही रोज़ उसके फ्लैट के नीचे या ऊपर उसके पास आ जाया करे क्योंकि उसे सीढ़ियाँ चढ़ने में या उसके फ्लैट तक आने में तकलीफ़ होती है।

वो दोनों नीचे आ चुके थे और जैसे ही रोहित नें बाइक स्टार्ट की वैसे ही उनके सामने से वो लड़की गुज़री जिसे देखकर रोहित नें हिमांशु से कहा कि ये वो ही मेरे सामने के फ्लैट वाली लड़की है यार जिसका पति इसे हर बात पर जलील करता रहता है और मुझे तो लगता है कि वो इस पर हाथ भी उठाता है क्योंकि यार इसकी चीखने-चिल्लाने की आवाज़ों से तो ऐसा ही लगता है और तू उस दिन जब घर पर आया था तब भी तो इन लोगों के घर से तेज़-तेज़ आवाज़ें आ रही थीं न ! !

"चल यार...हमें क्या करना ? तू चुपचाप बाइक चला यार,वैसे भी सिर में दर्द है मेरे", कहकर हिमांशु नें रोहित को चुप करा दिया ।

ऑफ़िस में भी हिमांशु गुमसुम सा ही रहा और चुपचाप अपना पैंडिंग काम निपटाता रहा । शाम को ऑफिस से लौटते वक्त भी बाइक पर वो चुपचाप ही रहा जिसे रोहित नें उसकी बीमारी से जोड़कर देखते हुए उससे कुछ भी नहीं कहा ।

"यार, आज मैं खाना तेरे साथ ही खाऊँगा", हिमांशु नें बाइक से उतरते हुए रोहित से कहा जिसपर रोहित नें खुश होते हुए उसे आधे घंटे बाद अपने घर आने के लिए कहा।

रोहित के ऊपर अपने फ्लैट में चले जाने के बाद हिमांशु अपने घर जाने की बजाय वहीं नीचे पार्क में एक बैंच पर बैठ गया और सोच के समंदर में गोते लगाने लगा। उसे रह-रहकर सुबह रोहित द्वारा कही गई बातें याद आ रही थीं । अब धीरे-धीरे उसे सबकुछ समझ में आ रहा था कि वो लड़की जिसका आँचल हिमांशु सामने के फ्लैट की खुली हुई खिड़की में से देखा करता था या वो लड़की जो उस दिन उससे सीढ़ियों पर टकराई थी, वो दोनों एक ही हैं ! इसके साथ ही साथ सबसे बड़ी बात ये कि वो लड़की जिसनें ज़िंदगी में पहली बार हिमांशु के दिल के तार छेड़े थे, वो लड़की एक शादीशुदा लड़की है ।

इस बात को बार-बार सोचना उसे बहुत भीतर तक अपराधबोध के एक बेहद गहरे एहसास से भर गया था । आखिर मुझसे इतना बड़ा पाप हुआ कैसे ? मैं तो ऐसा नहीं या फिर मैं ऐसा ही हूँ । अपने बाप के जैसा... खुद से तमाम प्रश्न करता हुआ हिमांशु नकारात्मकता की गहरी खाई में गिरता उससे पहले ही उसके दोस्त रोहित का उसे बुलाने के लिए फोन आ गया ।

रोहित के घर पहुँचते ही हिमांशु के उससे शराब के लिए पूछे जाने पर रोहित बहुत ज्यादा आश्चर्यचकित होकर बोला....

क्या ? शराब ! तू होश में तो है न मेरे यार ! तूने कबसे ये गलत शौक पाल लिये, हम्म !

"यार तुझे क्या लगता है कि मैं सही हूँ ! नहीं मेरे दोस्त मैं कोई सही-वही नहीं हूँ ! गलत हूँ मैं गलत और बस उसी गलती की सज़ा आज मैं खुद को दूँगा यार", हिमांशु नें बड़ी ही मायूसीभरी आवाज़ में कहा ।

"अच्छा ! अब समझा तो तू शराब पीकर खुद को सज़ा देगा । चल ठीक है ,दूँगा मैं तुझे शराब मगर पहले मुझे अपनी गलती तो बता क्योंकि जहाँ तक मैं तुझे जानता हूँ हिमांशु, मेरे दोस्त तू तो चाहकर भी कभी कोई ऐसी गलती नहीं कर सकता कि जिसकी सज़ा तुझे खुद को या किसी और को तुझे देनी पड़े", हिमांशु को बड़े ही गौर से देखते हुए रोहित नें कहा।

"यार , तुझे तो पता है न कि मेरा बाप पुलिस में एक बड़े पद पर था और उसी बड़े पद का फायदा उठाकर उसनें एक बेचारी शादीशुदा औरत की इज्ज़त और उसकी घर-गृहस्थी के साथ कैसा खिलवाड़ किया था और उसका निर्दोष पति सारी उम्र मेरे बाप की गंदी नीयत की वजह से जेल में सड़-सड़कर मर गया",ये कहते हुए हिमांशु की आँखें नम हो गयीं ।

"यार , देख इन पुरानी बातों को बार-बार दोहराने से क्या फायदा", रोहित नें हिमांशु को समझाने वाले अंदाज़ में कहा।

दोहरा तो इसे मेरे कर्म रहे हैं यार ! आज जाने-अंजाने में, मैं भी वो ही गलती करने जा रहा था । यार रोहित तेरे दोस्त को प्यार हो गया यार और पता है किससे ? एक शादीशुदा औरत से...कहते हुए फूट-फूटकर रो पड़ा हिमांशु और उसे अपने दोनों हाथों का सहारा देकर सम्भालते हुए रोहित नें कहा कि यार तू किस दुनिया में जी रहा है ? यहाँ देख जहाँ हर जगह नाजायज़ सम्बन्धों की बाढ़ सी आ रखी है और वहाँ तू उस गुनाह का पश्चाताप करने में लगा हुआ है जो कि तूने जानकर तो नहीं किया न मेरे भाई और फिर मुझे ये तो बता कि प्यार करना कब से गुनाह होने लग गया,हम्म.... मैं मानता हूँ कि तेरे पापा नें जो किया वो सरासर गलत था और उस गुनाह की तो शायद कोई सज़ा भी नहीं लेकिन मेरे दोस्त तेरी उनसे क्या तुलना ? तूने जो किया अंजाने में किया और फिर तूने प्यार ही तो किया है न कोई अपराध तो नहीं किया न और देख इस बारे में मैं तुझसे और कुछ नहीं जानना चाहता क्योंकि मुझे अपने यार पर पूरा भरोसा है कि वो जानकर कभी कोई भी काम गलत नहीं कर सकता । अब मुझसे तू बस एक वादा कर कि तू ये खुद को सज़ा-वज़ा देने का ख्याल न अब कभी भूलकर भी अपने दिल या दिमाग में नहीं लायेगा ।

कहते हैं न कि अगर सुनने वाला हमारा सच्चा हमदर्द हो तो हमारा मन कुछ हल्का हो जाता है और शायद कुछ ऐसा ही सुकून और हल्कापन आज हिमांशु खुद में महसूस कर रहा था ।

क्या अब हिमांशु सबकुछ भुलाकर आगे बढ़ जायेगा ? ? ?

जानने के लिए पढ़ें अगला भाग.... क्रमशः

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐