पवित्र रिश्ता... भाग-५ निशा शर्मा द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पवित्र रिश्ता... भाग-५

ये दौलत भी ले लो , ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो , मुझसे मेरी जवानी .... जगजीत सिंह जी की इस गज़ल को सुनते हुए आज एक बार फिर हिमांशु अपनी स्टडी-टेबल के सहारे लगी हुई चेयर पर बैठकर अपनी किसी किताब के पन्ने पलट रहा था लेकिन आज उसके घर की खिड़की बंद थी और उसका ध्यान आज बस अपनी किताब के पन्नों तक ही सीमित था तभी उसकी बहन गरिमा का फोन आ गया ।

भाई, तू कबसे यहाँ नहीं आया । कल तेरे जीजा जी भी तुझे याद कर रहे थे । किसी दिन आजा न भाई, फिर तेरी पसंद की गट्टे की सब्जी और दाल की कचौड़ियाँ बनाती हूँ । बोल कब आ रहा है ?

दीदी, अभी तो पॉसिबल नहीं हो पायेगा । दरअसल ऑफिस में आजकल थोड़ा पैंडिंग वर्क भी पड़ा है मेरा और फिर सीऐ के एग्जाम्स भी नजदीक हैं । देखता हूँ,कोशिश करूँगा पर पक्का कुछ नहीं कह सकता ।

"चल रहने दे , मैं अच्छी तरह से जानती हूँ तेरे बहाने।", गरिमा नें उदासीभरे स्वर में कहा ।

नहीं दीदी, ऐसा नहीं है और फिर मैंने कहा न कि मैं कोशिश करूँगा !

"रहने दे ! बहुत अच्छे से जानती हूँ मैं तुझे और तेरी कोशिशों को ! जब हॉस्टल में थी तो माँ-पापा और तू सबसे दूर थी फिर जब पढ़ाई पूरी हुई तो ब्याह दी गई और उसके बाद मायका नसीब होने से पहले ही माँ चली गई, पापा को तो खुद से ही फुर्सत नहीं और बचा तू तो तेरे पास भी कहाँ समय है अपनी इस बेवकूफ बहन के लिए ?", इस बार बोलते हुए गरिमा का गला रूंध गया जिसका एहसास होने पर हिमांशु तुरंत ही बोल पड़ा...नहीं मेरी प्यारी दीदी ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, मेरा जो है सब आपका ही तो है मेरी प्यारी दीदी और फिर आपके सिवा मेरा और है भी कौन ?

भाई-बहन दोनों ही अब एक-दूसरे के एहसासों को जी रहे थे ।

अच्छा चल, अब ज्यादा सैन्टी मत हो । जब तेरे पास टाइम हो,आ जाना लेकिन आना ज़रूर ! बाय...लव यू एंड टेक केयर !

बाय दीदी...लव यू एंड टेक केयर टू !

अगले कुछ दिनों तक सबकुछ सामान्य रहा । वो ही सुबह ऑफिस जाना और शाम को वापिस आकर, थोड़ी-बहुत पढ़ाई करने के बाद सो जाना । इस बीच हिमांशु रोहित के घर पर एक बार भी नहीं गया, हाँ बीच में एक बार रोहित खुद ही उसके घर ज़रूर आया था ।

अगले दिन ऑफिस में गाँधी-जयंती की छुट्टी थी तो हिमांशु नें गरिमा के घर जाने के लिए सोचा और उसनें रोहित को भी साथ चलने के लिए कहा लेकिन रोहित को अपने मामा जी की बड़ी लड़की की शादी के सिलसिले में लड़का देखने के लिए लखनऊ जाना था। इसलिए उसनें हिमांशु के साथ गरिमा के घर जाने के संदर्भ में अपनी असमर्थता जता दी । वैसे तो शायद हिमांशु अपना प्रोग्राम कैंसिल भी कर देता लेकिन उस दिन फोन पर गरिमा के इमोशनल होने के बाद उसनें तय किया था कि अब अगली जो भी छुट्टी पड़ेगी उसमें अपनी बहन गरिमा से मिलने उसके ससुराल ज़रूर ही जायेगा !

हिमांशु तैयार होकर बस घर से निकलने ही वाला था कि तभी उसे बाहर से बादलों के गरजने की आवाज सुनाई दी जिसपर उसने जब खिड़की खोलकर देखा तो बाहर बारिश का मौसम बनता हुआ उसे दिखाई दिया। अब उसनें गरिमा के घर बाइक से न जाकर कैब से जाने का निर्णय लिया और वो अपने फोन में कैब बुक करने लगा मगर शायद खराब मौसम के चलते उसके फोन में नैटवर्क ठीक से नहीं आ रहा था तब उसनें नेटवर्क के लिए अपने फ्लैट की खिड़की खोली और वो खिड़की के सहारे अपना फोन लगाकर खड़ा हो गया।वो कैब बुक करने ही लगा था कि तभी बरबस ही उसकी नज़र न चाहते हुए भी उसके सामने वाले फ्लैट की खिड़की पर चली गई, हालांकि आज उस खिड़की का पर्दा गिरा हुआ था पर हवा के तेज़ झोंके से वो पर्दा बार-बार उड़ने लगता था और पर्दे के उड़ते ही वो हराभरा सा पौधा जिसे हिमांशु पहले अक्सर देखा करता था, दिखने लगता था लेकिन आज वो पौधा पहले की तरह हराभरा बिल्कुल भी नहीं था बल्कि बुरी तरह से सूख चुका था मानों कोई जर्जर शरीर अपनी अंतिम साँसें गिन रहा हो। उस पौधे का ऐसा हाल देखकर हिमांशु को बहुत दुख हुआ । पता नहीं हिमांशु नें पहली नज़र में ही उस पौधे से कैसा अंजाना सा बंधन जोड़ लिया था ? ? ?

हिमांशु उस पौधे के बारे में सोच ही रहा था कि अचानक से बारिश होने लगी और बारिश की तेज़ बौछारें उसके कमरे के अंदर तक आने लगीं जिसपर हिमांशु नें फुर्ती से अपना हाथ खिड़की बंद करने के लिए बढ़ाया लेकिन सामने वाले फ्लैट की खिड़की पर नज़र पड़ते ही उसके हाथ अचानक ही रुक गए और वो एकटक वहाँ देखता ही रह गया ।

उस फ्लैट में वो ही शादीशुदा लड़की खड़ी हुई थी और उसके बिल्कुल सामने उसका पति खड़ा हुआ था जो हाथ हिला-हिलाकर उस लड़की से कुछ कह रहा था और फिर अचानक ही वो शख्स उस लड़की के गालों पर लगातार चार-पाँच थप्पड़ मारने लगा और फिर उसनें उस लड़की को ज़ोर से एक ओर धकेल दिया ।

अब हिमांशु का धैर्य बर्दाश्त की सीमा को पार कर चुका था । वो तेजी से अपने घर से निकलकर फटाफट नीचे पहुँच गया और गुस्से से काँपता हुआ हिमांशु अब उस लड़की के फ्लैट के सामने खड़ा था । अब उसनें उस लड़की के फ्लैट की डोरबेल बजाना शुरू किया । वो उस डोरबेल को लगातार प्रैस करता जा रहा था लेकिन वहाँ किसी नें भी दरवाज़ा नहीं खोला और उस फ्लैट के अंदर से बहुत ही तेज़ म्यूजिक की आवाज आ रही थी । हिमांशु काफी देर वहाँ खड़ा रहा लेकिन जब उसे वहाँ से कोई जवाब नहीं मिला तो वो हारकर सीढ़ियों के रास्ते उतरकर नीचे आ गया ।

बारिश अब बहुत तेज़ हो चुकी थी और ये बेमौसम की बारिश अब बादलों के साथ-साथ हिमांशु की आँखों से भी बरस रही थी । हिमांशु नें जो कैब बुक की थी वो भी अपने-आप ही कैंसिल हो चुकी थी शायद भगवान नें आज हिमांशु की किस्मत में कुछ और ही लिखा था ।

हिमांशु पार्क में पड़ी हुई बेंच पर जाकर बैठ गया , कुछ ही पलों में बारिश नें उसे तरबतर कर दिया । न जाने कितने घंटों तक वो वहाँ बैंच पर बैठा रहा फिर धीरे-धीरे रात के सन्नाटे के गहराने के एहसास नें जैसे उसे झिंझोड़ दिया और फिर उसके कदम अपने फ्लैट की ओर बढ़ गए जहाँ उसकी ज़िंदगी का एक अलग ही मोड़ न जाने कबसे उसका इंतज़ार कर रहा था ।

हिमांशु जैसे ही अपने फ्लैट के सामने पहुँचा, वहाँ उसे अपने दरवाज़े से लगकर बैठी हुई वो ही लड़की मिली जिसे देखकर वो बेहद चौंक गया और फिर वो उससे बिना कुछ बोले अपने फ्लैट का लॉक खोलने लगा । हिमांशु नें जैसे ही दरवाज़ा खोला वो लड़की बिना कुछ बोले चुपचाप उसके फ्लैट के अंदर दाखिल हो गई इसपर हिमांशु नें भी ये सोचकर कि कहीं कोई पड़ोसी न सुन ले और इस निर्दोष लड़की की कहीं उसकी वजह से बदनामी न हो जाये, ये सोचकर खुद भी चुपचाप ही अंदर जाना मुनासिब समझा ।

जब तक दरवाज़ा बंद करके वो अंदर आया , वो लड़की उसके कमरे के फर्श पर बैठ चुकी थी ।

"अरे, आप नीचे क्यों बैठी हैं ? प्लीज़ आप इधर, इस कुर्सी पर आराम से बैठ जायें", हिमांशु नें कुर्सी खींचकर उसकी तरफ़ इशारा करते हुए कहा ।

वो लड़की चुपचाप फर्श से उठकर कुर्सी पर बैठ गई !

"आप सोच रहे होंगे कि मैं भी कितनी अजीब लड़की हूँ न जो इतनी रात में इस तरह से आपके फ्लैट में",.......इतना कहते-कहते वो रो पड़ी !

"नहीं, देखिए मैं ऐसा कुछ भी नहीं सोच रहा हूँ और प्लीज़ आप रोयें नहीं , प्लीज़"...., इतना कहकर हिमांशु दौड़कर किचेन से एक गिलास पानी ले आया जिसे कि वो लड़की एक ही साँस में पूरा पी गई ।

देखिए मैं आपको पहचानता हूँ और आप मेरे सामने वाले ही फ्लैट में रहती हैं । बाकी आप मुझसे क्या मदद चाहती हैं,प्लीज़ खुलकर बतायें ।

हिमांशु की इस बात पर वो लड़की खिलखिलाकर हंस पड़ी और हिमांशु उस लड़की को बड़ी ही हैरानी से हंसते हुए देखता रहा ।

"क्या हुआ ? अच्छा, आप सोच रहे होंगे कि कहीं मैं

पागल तो नहीं हूँ न जो कि अभी कुछ देर पहले इतना बिलख-बिलखकर रो रही थी और अब यूँ बत्तीसी फ़ाड़कर हंस रही हूँ !", उस लड़की ने हिमांशु की तरफ़ मुखातिब होते हुए कहा । तो जी नहीं मिस्टर , बिल्कुल भी नहीं ! मैं पागल नहीं हूँ लेकिन आपके द्वारा मुझे पागल समझे जाने पर मुझे ज़रूर हंसी आ रही है ।

मैं कुछ समझा नहीं कि आप ये क्या बात कर रही हैं ? मैंने आपको कब पागल कहा या समझा ? ? ?

जी बताती हूँ...एक बार फिर से वो मुस्कुरायी ! आप क्या समझते हैं कि मैं कुछ नहीं जानती, सबकुछ बस आपको ही पता है । बस आपको ही पता है कि आज मेरे पति नें मुझे कितना मारा या सिर्फ आपको ही पता है कि वो मुझे हर वक्त टॉर्चर करता है , हम्म ! बोलिए न हिमांशु जी , जी हाँ प्लीज़ अब आप इस बात पर मत चौकिए कि मुझे आपका नाम भी मालूम है । अरे , मुझे तो ये भी मालूम है कि आप मेरी उस सामने वाली खिड़की के खुलने का कभी घंटों इंतज़ार किया करते थे, उस लड़की ने खिड़की की तरफ़ इशारा करते हुए कहा! और हिमांशु जी मुझे ये भी मालूम है कि आप न जाने कितनी बार मुझे देखने भर की चाह में मेरे फ्लैट की दस मंजिला सीढ़ियाँ चढ़े हैं ! आपको क्या लगता है कि मुझे कुछ नहीं मालूम ?

हिमांशु जी आपनें कितनी आसानी से कह दिया कि मैं आपके सामने वाले फ्लैट में रहती हूँ और आप मुझे पहचानते हैं, बस इतना ही !

कुछ देर चुप रहने के बाद उस लड़की नें एक गहरी साँस खींचकर एक बार पुनः बोलना शुरू किया... हिमांशु जी उस दिन सीढ़ियों पर जब आप मुझे देख रहे थे तब भी मैंने आपको वहाँ मुझे देखते हुए देखा था क्योंकि उस तरह से किसी नें कभी मुझे देखा ही नहीं । मुझे घूरने वाले तो बहुत मिले मगर मुझे निहारने वाला तो कभी कोई मिला ही नहीं और बस आपकी ये ही बात है जो आपको इस दुनिया की भीड़ से अलग खड़ा कर देती है , जो मुझे आपके बीमार होने पर आपके लिए व्रत रखने, दुआ करने और आपकी सच्चे दिल से इज्ज़त करने के लिए विवश कर देती है... वो लड़की बोलती ही जा रही थी और हिमांशु मंत्रमुग्ध सा बस उसे सुनता ही जा रहा था ।

अब मैं आपको वो बताऊँगी जो कि आप मेरे बारे में नहीं जानते...लड़की की आवाज़ में अब गंभीरता घुल चुकी थी ।

"मेरा नाम खुशी है", इतना कहते हुए वो एक बार फिर व्यंग्यात्मक अंदाज़ में हंस पड़ी और इसके बाद उसनें एक बार फिर से एक गहरी साँस भरकर दोबारा बोलना आरंभ किया । ये जो मुझे मारता-पीटता है न , वो मेरा पति है जो कि शायद मैं एक बार पहले भी आपको बता चुकी हूँ,याद है न !

हिमांशु नें जवाब में अपना सिर हिला दिया !

हिमांशु जी ऐसा नहीं है कि वो मुझसे प्यार नहीं करता । करता है न बहुत प्यार करता है लेकिन उससे भी ज्यादा प्यार वो अपने-आप से करता है, अपनी मरदानगी से करता है । मरदानगी....एक बार फिर वो जोर से हंस पड़ी ! दरअसल ये सारी प्रॉब्लम न इस मरदानगी की ही है ।

उस लड़की ने कुछ देर के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं और फिर आँसुओं की बारिश के साथ ही वो अपनी आँखें खोल सकी ! हालाँकि उसनें अपने आँसुओं को पीने की बहुत कोशिश की लेकिन वो ऐसा करने में सफल न हो सकी ।

"एक मिनट , आपनें आज डिनर किया है क्योंकि मैंने नहीं किया और मुझे बहुत ज़ोर की भूंख लग रही है", ये कहकर हिमांशु किचेन में जाकर मैगी बनाने लगा जबकि उसे तो अभी भूंख का दूर-दूर तक कोई एहसास भी नहीं था लेकिन उसके दिल में जैसे ही उस लड़की की हालत देखकर उसके भूंखे होने का ख्याल आया तो वो खुद को वहाँ से उठने से रोक न सका !

जिंदगी की कश्मकश से जूझते हुए हिमांशु और खुशी की ज़िंदगी अब कौन सा नया मोड़ लेगी ? ? ?.....

जानने के लिए पढ़ें इनकी ज़िंदगी की एक अनोखी कहानी का अगला भाग .... क्रमशः

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐