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तलाश - उपन्यास
डा.कुसुम जोशी
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
कविता भारी कदमों से वो बस की और बढ़ी, उसे लगा शमित उसे शायद रोक लेगें.., इसलिये स्टेशन तक छोड़ने आये हों..,कुछ तो कहेगें ..,
बस में चढ़ते कविता ने पीछे मुड़ के देखा ..शमित नही थे वहां कहीं , धक रह गई थी ,एक बार भी नही कहा "पहुंच के फोन करना ,जल्दी वापस आना, कुछ भी नही कहा,रुलाई सी आने की बैचेनी में गला भर आया ,कविता चुपचाप बस में बैठ गई,।
जब तक बस निकल नही गई इसी उम्मीद से बस की खिड़की से बाहर देखती रही कि शायद शमित एक बार आ जाय, पर नही,वो निराश सामने की सीट में सर टिका के आंखें बंद कर निराशा से उबरने की कोशिश करने लगी।
#तलाश (1भाग) कविता भारी कदमों से वो बस की और बढ़ी, उसे लगा शमित उसे शायद रोक लेगें.., इसलिये स्टेशन तक छोड़ने आये हों..,कुछ तो कहेगें .., ...और पढ़े बस में चढ़ते कविता ने पीछे मुड़ के देखा ..शमित नही थे वहां कहीं , धक रह गई थी ,एक बार भी नही कहा "पहुंच के फोन करना ,जल्दी वापस आना, कुछ भी नही कहा,रुलाई सी आने की बैचेनी में गला भर आया ,कविता चुपचाप बस में बैठ गई,। जब तक बस निकल नही गई इसी उम्मीद से बस
#तलाश-भाग-2(गतांक से आगे)दुर्गा दी ने बताया मांजी सख्त तो हमेशा से रही हैं, बाबूजी बड़े साहब होकर भी मांजी से डरते थे, और दोनों बेटे भी, करीब आठ साल पहले मणि भैय्या जर्मन पढ़ने गये ...और पढ़े, मांजी नही चाहते थी,पर बाबूजी की शह में मणि भैय्या चले गये और तीन साल पहले लौटे,पर साथ में जर्मन बीबी के साथ ,मांजी और बाबूजी ने कहा तो कुछ नही, सभी को बुला कर बहुत बड़ी दावत की थी, पर मांजी बाबूजी से बहुत नाराज रही, पर कुछ तो टूटा था बाबूजी के अंदर भी , उसके दो महिने बाद बाबूजी चल
#तलाश -3 (गंताक से आगे)सुजाता और कविता के बीच मित्रता का बहाना बना सुविनय, और इस मित्रता ने कविता को जीवन के प्रति सोचने समझने के लिये एक नया आयाम दिया, कई रिश्तों की रिक्तता ...और पढ़ेबाद भी सुजाता और सुविनय अपने जीवन को अपने लिये और सामाजिक चैतन्य के साथ जी रहे थे कविता ने अपने लिये अपनी नकारात्मक से उबरने का एक सन्देश देखा, अब कभी कभी वह स्कूल कैम्पस में ही बने होस्टल में सुजातादी के घर चली जाती, सुजाता बहुत ही सुलझी ओर सन्तुलित थी, उन्होंने कभी कविता से उसके अनमनेपन को लेकर कोई प्रश्न
#तलाश भाग -4 (गतांक से आगे) उसके पास कोई साझेदार भी नही था जिसे वह अपने मन की बात बता सके, या अपनी उपेक्षा को साझा कर सके,कई बार ...और पढ़ेमन होता कि वह अपनी समस्या शमित और मां की उपेक्षा के बारे में सुजाता दी से बात करे, पर हिम्मत नही कर पाती, उसे लगता अगर ये बात इधर उधर हो गई तो लोग क्या कहेगें ... शमित और मां तक ये बात चली गई तो? असल प्रश्न लोग क्या कहेगें पर आकर अटक जाती, सुजाता चाहती थी कि कविता अपने मन की किताब स्वयं खोले..फिर
#तलाश -5 गंताक से आगेकविता बड़े हैरान होकर उस आकर्षक चित्र को देखते रही, और हैरान थी कि इतनी खूबसूरत और सार्थक पेंटिंग में उसकी नजर आजतक क्यों नही ...और पढ़े जिसमें दो महिलायें एक चट्टान में एक दूसरे की ओर पीठ किये बैठी हैं , जिसमें उदास चेहरे वाली एक महिला की और एक नदी बह रही है जिसके किनारे कुछ पेड़ थे, पर उनमें पतझड आया हुआ था, सामने डूबता सूरज अपनी तेज खो चुकी रश्मियों के साथ दिखाई दे रहा है, उस महिला की उदासी ,चेहरे का फीकापन उसके दर्द को बयान कर