Talash - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

तलाश - 7



तलाश -13
(गतांक से आगे)

किस बात पर और क्यों बुलाया होगा... शमित ने शायद कुछ कह दिया हो..क्या कहेगीं वो.. सोचती रही,फिर हिम्मत करके मां के कमरे में चली गई,
मां अपनी भव्य बेडरुम चेयर में बैठी थी उनका चेहरा तमतमाया हुआ था, शमित भी चुपचाप तनावग्रस्त से मां के पास सर झुकाये बैठे थे,
कविता के कमरे में प्रवेश के साथ ही मां ने उसे गहरी नजरों से ऊपर से नीचे तक देखा, ऐसा लगा मानों बात शुरु करने के लिये शब्द तलाश रही हो,
तुम्हें परेशानी क्या है, तुम चाहती क्या हो...कड़क आवाज में मांजी ने कहा, कविता से वो ज्यादा बात नही करती थी इसलिये कविता उनकी कठोर आवाज से परिचित नही थी एक पल वह सहम गई,
कविता ने कोई उत्तर नही दिया, सर झुका के जमीन को एक टक देखती रही,
तीन साल से भी ज्यादा हो गये हैं मैंने एक दिन भी शमित को मुस्कुराते नही देखा, तुम्हारी अपनी दुनिया है, इस घर को तो तुमने अपना समझा ही नही, न इस घर के लोगों के प्रति तुम्हें आत्मीयता है,
कविता को गुस्सा तो बहुत आ रहा था चाह कर भी वह उत्तर देने से अपने को रोक रही थी, सुजाता दी हमेशा कहती हैं "कि अगर आप गलत हो तो चुप रहना सही है लेकिन गलत बात को सहना भी गलत है इसलिये दृढ़ता से अपनी को रखना चाहिये",
पर मां हमेशा कहती है "बड़े लोग जो भी कहते हैं उसमें तुम्हारी भलाई छुपी होती है,इसलिए पलट के जवाब नही देना चाहिये", कविता इन बातों में उसी भलाई के एंगल को तलाश करने लगी ...
वह हमेशा भरे पूरे खुशहाल परिवार के प्रति बहुत आकर्षण महसूस करती थी, इसीलिये उसने शुरु से कोशिश की कि वह सबका ध्यान रखे लम्बे समय तक तो वह अपनी की जा रही उपेक्षा की भी उपेक्षा करती रही, पर अब वह धीरे धीरे वह इन रिश्तों को निभाने में थकने लगी थी,
उसकी चुप्पी ने मांजी के गुस्सा में आग का ही काम किया "अब तुम ही यह बताओ कि "तुम क्या चाहती हो...? अब हमें भी तुमसे कोई उम्मीद नही बची है, इतने सालों में एक किलकारी भी इस आंगन में नही चहकी,हमने क्या सोचा था और हुआ क्या...शमित तो तभी मना कर रहा था ..हमारा ही दिमाग खराब हुआ ...
कविता को क्रोध के कारण चमक महसूस हुई , अनायास ही उसका गुस्सा फूट पड़ा "आपने अपने बेटे की बात माननी चाहिये थी...आपका ही शौक था अपने बेटे की शादी का,मेरा तो कोई आग्रह नही था .....रही आंगन में किलकारी की बात ...ये तो आपने अपने बेटे से पूछनी चाहिये"..व्यंग्य भरे क्रोध से वह कहती चली गई, अचानक उसकी नजर शमित पर पड़ी उसके चेहरे में नाराजगी और शर्मिन्दगी के भाव साथ साथ आ जा रहे थे, उसे लगा ये क्या कह गई वो..उसका चेहरा लाल हो आया था,सांसों की गति भी तेज महसूस की ,
मांजी कविता का ये रुप देख हैरान थी, बोली बस यही रुप नही देखा था तुम्हारा आज तुम्हारी मन की बात भी पता चल गई,....हमारी ओर से तुम स्वतंत्रत हो, ये सामने मेज में तुम्हारा सामान है इसे ले जाओ और जिस समय यहां से जाना चाहती हो जा सकती हो, चाहे अभी ..चाहे कल सुबह....
क्रमश:
डॉ. कुसुम जोशी
गाजियाबाद, उ.प्र.

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