तलाश - 3 डा.कुसुम जोशी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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तलाश - 3

#तलाश -3
(गंताक से आगे)

सुजाता और कविता के बीच मित्रता का बहाना बना सुविनय, और इस मित्रता ने कविता को जीवन के प्रति सोचने समझने के लिये एक नया आयाम दिया, कई रिश्तों की रिक्तता के बाद भी सुजाता और सुविनय अपने जीवन को अपने लिये और सामाजिक चैतन्य के साथ जी रहे थे कविता ने अपने लिये अपनी नकारात्मक से उबरने का एक सन्देश देखा,
अब कभी कभी वह स्कूल कैम्पस में ही बने होस्टल में सुजातादी के घर चली जाती,
सुजाता बहुत ही सुलझी ओर सन्तुलित थी, उन्होंने कभी कविता से उसके अनमनेपन को लेकर कोई प्रश्न नही किया, पर वह कविता की परवाह एक बड़ी बहन की तरह करने ली थी, सुविनय का रिश्ता कविता आन्टी से कविता मौसी में बदल गया था,
सुजाता के अपने दुख थे, पर वह कठिनाईयों से पार पाना बेहतर जानती थी,सुखी गृहस्थी को जी रही सुजाता के पांव से जमीन अनायास ही तब खिसक गई जब अपने व्यवसाय के सिलसिले में काम से लौटते हुये विनय एक हादसे का शिकार हो गये, और डॉक्टर के अथक परिश्रम के बाद भी बचाया नही जा सका, गोद में दो साल के बच्चे को लेकर बदहवास सी सुजाता को कुछ समझ में नही आ रहा था कि उसका क्या होगा?
अपनों और अपने घर आस पास की संवेदना जब धीरे धीरे रीत गई तो भविष्य की जमीन बहुत खुरदुरी है ये सुजाता महसूस करने लगी थी ,
नमन और उसकी पत्नी मौलश्री जो हमेशा विनय के जीवित रहते सुजाता को घर की रीढ़ मानते थे, सबसे पहले उनकी आंखें फिरने लगी, बड़े भाई के पूरे व्यवसाय पर एक छत्र राज करने की कामना थी या भाभी और भतीजे को आजीवन पालने के झंझट से बचने के भाव' , ये सुजाता को कभी स्पष्ट रूप से शब्दों में कुछ नही कहा गया...पर बदला हुआ व्यवहार बहुत आगे की कहानी कहने लगा था, सास बहुत बूढ़ी और बीमार थी, बेटे की मृत्यु के बाद तो धीरे धीरे उनकी समझने और बोलने की शक्ति जाती रही, बिस्तर में लेटे लेटे एकटक छत को निहारती और आंसू गिराया करती,
विनय के जाने के तीन महीने बाद सुजाता के पिता आये थे बेटी से मिलने , नमन ने पिता जी को चाशनी घुले शब्दों में आग्रह किया कि "वो कुछ दिनों के लिये भाभी और सुविनय' को अपने साथ लेकर जायें, कुछ बदलाव महसूस करेंगी भाभी,हर दम उदास रहती हैं",
वह साल भर से पहले घर से बाहर नही जाना चाहता थी, उसने मना भी किया था, पर नमन और मौलश्री हर हाल में उन्हें भेजना चाहते थे, जाने से पहले नमन ने उनसे आग्रह किया कि वह कुछ पन्नों में अपने हस्ताक्षर कर दें.. हो सकता है कहीं जरुरत पड़ जाये,
सुजाता समझ गई थी कि अब इस घर में उनके लिये कुछ नही बचा है..सुजाता ने नमन को आश्वासन दिया कि वह लौट कर करेगी, बहुत ही जरुरी हुआ तो फोन कर देना वह आ जाएंगी , नमन के चेहरें में नाराजगी के भाव थे,पर वो कुछ बोला नही।
बहुत दुखी मन से उसे पिता के साथ इलाहाबाद आना पड़ा,पिता को भी समझ में आ रहा था कि अब बेटी का निबाह इस घर में सम्भव नही, वह चिन्तित थे,
मां पिता, भैय्या भाभी, बच्चों के साथ सुजाता अपने दुख से उतरने की कोशिश कर रही थी, पिता हमेशा दुखों से उबर कर अपने पांव में खड़े होने की बात करने लगे थे,
मां पिता, भैय्या भाभी, बच्चों के साथ सुजाता अपने दुख से उबरने की कोशिश कर रही थी, पिता हमेशा दुखों से उबर कर अपने पांव में खड़े होने की बात करने लगे थे,
लगभग दो महिने होने को आये, नवल ने पलट कर कभी फोन नही किया,शुरु शुरु सुजाता फोन करती थी पर बहुत औपचारिक बातें होती, पर नवल मौलश्री उसे कभी नही पूछते कि कब आओगी? अब भैय्या भाभी की नजरों में भी उपेक्षा भाव दिखने लगा था, इस बात को मां पिताजी भी महसूस कर रहे थे, फिर मां पिताजी ने एक दिन हर तरह की ऊंच नीच का अहसास कराया,
"सुजाता बेटा तुम्हारे दुख को हम समझते हैं, पर तुम्हें अपने लिये विन्नू के लिये घर से बाहर निकलना ही पड़ेगा.. जब तक हम हैं बेटा कोई दिक्कत नही है,पर कब तक हम रहेंगे, जिस दिन हमने आंखें मूंद ली ..फिर तुम्हारे भैय्या भाभी क्या करेंगे कुछ नही पता....शायद ये बात तुम ही बेहतर बता सकती हो,
नवल भी तुम्हारे लिये कुछ नही करेगा, फिर भी हम कोशिश करेंगे कि वह विन्नू को तो अपने पिता का कुछ हक दे, बाकिंटंपं लड़ाई झगड़े पर हमें नही पड़ना",
तुम उच्चशिक्षित हो, तुम्हें उठना ही होगा और अपने दुखों में स्वयं काबू पाना होगा, हम हरदम तुम्हारे साथ हैं..और तुम्हें अपने बल पर जीते हुये देखना चाहते हैं",
शब्द बहुत ताक़तवर होते हैं, कभी कभी तो जादुई असर रखते हैं, मां पिता के इन विनम्र शब्दों से सुजाता अपने दुखों को झटक कर उठ खड़ी हुई, पर वह कहीं दूर जाना चाहता थी, इस माहौल से दूर,
अजब सा संयोग बना मानो ईश्वर ने सुजाता के मन को समझ लिया हो, पिता के एक मित्र अवस्थी अंकल जो इलाहाबाद के किसी कॉलेज से अवकाशप्राप्त करने के बाद पहाड़ के एक प्रसिद्ध स्कूल में मैनेजमैंट का काम देखते थे , वो आन्टी के साथ संगम स्नान के लिये इलाहाबाद आये, और उनके घर में रुके थे, बातों ही बातों सुजाता के मन की इच्छा पूरी हो गई,
दो महिने बाद एक औपचारिक से साक्षात्कार के बाद होस्टल वार्डन और अध्यापन के लिये चुन लिया गया,इस पहाड़ी शहर में मां बेटे ने अपनी एक दुनिया बसा ली,
सुजाता को जिन्दगी ने समझा दिया कि हर व्यक्ति के हिस्से के अपने अपने दुख सुख हैं , जो आते जाते रहते हैं, पर किसी का भी स्थायी भाव नही है, इसलिये लम्बे अरसे तक दुख को ढोकर जीना अपने और विन्नू के भावी जीवन को पीड़ादायक बनाना होगा,अपनी सब यादों को सहेज कर रखते हुये बहुत सकारात्मक भावों के साथ उसने अपने आप को काम में और विन्नू के लालन पालन में झोंक दिया,
सहकर्मी और छात्रों के बीच लोकप्रिय सुजाता ने कविता को भी गहरे प्रभावित किया,आज कविता सुजाता के हर दुख, सुख, और जीवन को व्यवस्थित करने की कहानी की साझेदार थी , सुजाता से हर मुलाक़ात के बाद वो और अधिक तीव्रता के साथ अपने जीवन का विश्लेषण करने लगती, हालांकि दोनों की पीड़ा अलग अलग थी पर उबरने के लिये समान जिजीविषा की जरुरत थी, इसी जिजीविषा को वह जुटा नही पा रही थी,
उसके पास कोई साझेदार भी नही था जिसे वह अपने मन की बात बता सके, या अपनी उपेक्षा को साझा कर सके,
क्रमश:
डा.कुसुम जोशी
गाजियाबाद, उ.प्र.