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तलाश - 4

#तलाश
भाग -4
(गतांक से आगे)

उसके पास कोई साझेदार भी नही था जिसे वह अपने मन की बात बता सके, या अपनी उपेक्षा को साझा कर सके,कई बार उसका मन होता कि वह अपनी समस्या शमित और मां की उपेक्षा के बारे में सुजाता दी से बात करे, पर हिम्मत नही कर पाती, उसे लगता अगर ये बात इधर उधर हो गई तो लोग क्या कहेगें ... शमित और मां तक ये बात चली गई तो? असल प्रश्न लोग क्या कहेगें पर आकर अटक जाती,
सुजाता चाहती थी कि कविता अपने मन की किताब स्वयं खोले..फिर उसका काम पन्ने पलटने भर का रहेगा,
दोनों के अंदर कहने और सुनने की इच्छा का आवेग इतना तीव्र था कि बस समय की प्रतीक्षा की जा रही थी,
उस दिन पांच सितम्बर शिक्षक दिवस था, सुबह वैभवी दीदी का फोन आया, चहकते हुये दीदी बोली "हमारे परिवार की एक मात्र शिक्षिका कविता को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...स्कूल की तरफ से क्या प्रोग्राम है आज,
धन्यवाद दी, आप और मां कैसे हैं ?
हम ठीक है...तुम बताओ, शमित कैसे हैं और वो तुम्हारी हाई फाई सासु मां कैसी हैं ...हंसते हुये वैभवी ने प्रश्न दागा,
सब लोग ठीक हैं, आज स्कूल मैनेजमैंट स्टाफ को पिकनिक पर भेज रहा है,आठ से नौ तक बच्चों के साथ कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम...फिर दस बजे तक बच्चों की छुट्टी,
अरे हां.. कविता मां पूछ रही थी और मैं भी पूछ रही हूं कि तुम बच्चों को ही पढ़ाती रहेगी या अपना बच्चा भी पालोगी .....अभी तक तुम लोगों ने बच्चे के बारे में कुछ भी सोचा नही?
इस प्रश्न से कविता ने 'शब्द हलक में अटक गये हो' ऐसा महसूस किया, चेहरा आरक्त हो आया, जो शर्म से नही बल्कि निरुत्तर होने से था,
क्या हो गया कविता ..तुम कुछ बोल क्यों नही रही...
नही..नही दी अभी कुछ सोचा नही, खैर शाम को बात करते हैं, आधे घन्टे में स्कूल निकलना है, मां से कहना शाम को बात करुंगी, यह कह कर उसने फोन काट दिया,
कविता अजीब सी घबराहट महसूस कर रही थी, "अरे ये तो मैंने सोचा ही नही कि ये प्रश्न भी कभी सामने आ खड़ा होगा और वो क्या उत्तर देगी' वह अपने आप से बोली,
वो पिछलें कई सालों से अपनी गृहस्थी को जमाने के लिये बहुत कुछ मानसिक त्राण को सह रही थी, उसे लगता कि शमित का शान्त स्वभाव व जटिल व्यक्तित्व कभी न कभी पिघल कर सम हो जायेगा,मां को तो उनकी अहमन्यता के साथ ही उसने स्वीकार कर लिया था, इसीलिए उसने कभी किसी को अपने एकाकीपन का राजदार नही बनाया, पर आज जो प्रश्न सामने आये वो अब आते रहेंगे, इसलिये वो आज शमित का सामना नही करना चाहता थी,
अनमने से तैयार होकर दुर्गादी को बोल कर चली गई,कि पिकनिक के कारण आज लौटने में देर हो सकती है,आप घर में सब को बता देना ,
स्कूल पहुंच कर किसी भी चीज में उसका मन नही लग रहा था, बहुत औपचारिक रुप से स्कूल में बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल थी, पर उसका ध्यान नही था, रह रह के वैभवी दी का प्रश्न उसको परेशान कर रहा था,आज महसूस कर रही थी कि उसे मां और दीदी को शमित और उसके बीच के ठन्डें सम्बन्धों के बारे में पहले ही बता देना चाहिए था जिससे वह लोग भी इस तरह के प्रश्न पूछने से बचते, पर और कई नई तरह की आवश्यक अनावश्यक बातें और बहस बातों का विषय होता, जिनसे वो बचना चाहता थी,
वह नही चाह रही थी कि उसे पिकनिक जाना पड़े, पर अभी घर भी नही जाना चाहती थी, किसी एकान्त में बैठ कर अपना और अपने आस पास का विश्लेषण करना चाहती थी,
बच्चों की छुट्टी के बाद सभी लोग स्टाफ रूम में एकत्रित हुये थे, तभी सुजाता ने बताया कि वे पिकनिक नही आ पायेगी क्योंकि विन्नू को बुखार है मुझे उसके पास रहना होगा, ,तुम लोग जाओ और खूब मस्ती करना,

सुजाता की बात सुन अनायास ही कविता बोली "सुजातादी मेरा भी बिल्कुल मन नही है पिकनिक जाने का ,क्या मैं आप के साथ आप के घर चल सकती हूं ? विन्नू से भी मिल लूंगी,
"नेकी और पूछ पूछ, पर पिकनिक को मिस करोगी मेरे घर में, बुखार के कारण विन्नू चुपचाप पड़ा है",
"दी आपका साथ भी किसी पिकनिक से कम नही, साथ में आपके हाथ का बना खाना भी मिलेगा जो सोने में सुहागा होगा,और विन्नू से भी मुलाकात कर लूंगी, उसे अच्छा ही लगेगा",
हां चलो स्वागत हैं,मेरा दिन भी बेहतर गुजरेगा,
दियामैम और रचनामैम कहती रही " कविता आप सुजाता दी के घर नही जाओगी, हमारे साथ पिकनिक पर चलोगी, बहुत सुन्दर जगह है", पर कविता ने मन बना लिया था कि उसे कहीं नही जाना , आज वो अपना पिकनिक का समय सुजाता दी के साथ बितायेगी,
दोनों होस्टल की ओर निकल गई, घर पहुंचे तो विन्नू का बुखार उतरा होने के कारण वो छाया को तंग कर रहा था कि उसे क्रिकेट खेलना है और वह बॉलिंग करे,पर छाया कि जिद्द थी कि उसके लिये नाश्ते में दलिया बना है वह पहले उसे खा ले तब वह बॉल डालेगी,
उन्हें देख विन्नू खुश हो गया, "मौसी प्रणाम" कह कर बैट को छोड़ कर मां से लिपट गया, और बोला आप मौसी को भी ले आई बहुत अच्छा किया, वो मेरे साथ खेल सकती हैं,
हम दोनों तुम्हारे कारण पिकनिक छोड़ कर घर आई.. कोई खुशी नही ...तुम्हें क्रिकेट खेलने का साथ मिल गया इसलिये खुश हो, प्यार से सर में हाथ फिराते हुये सुजाता बोली,
कविता जब भी विन्नू से मिलती उसके प्रति वात्सल्य भाव उमड़ता,और अपने अधूरेपन का अहसास होता, पर वह कभी शमित से इस बारे में बात नही कर पाई, शमित की उपेक्षा अजीब सी थी , कभी आंखें मिला कर बात नही करता, न बात करने की पहल अपनी ओर से करता,जितना पूछा या कहो तो सिर्फ हां या नहीं में उत्तर देता,पर फिर भी वह शमित के लिये कोमल भावनायें महसूस करती, उसे खुद समझ में नही आता कि ऐसा क्यों है?
विन्नू! मौसी का बच्चू.. इधर आओ,मेरे पास,तुम्हारे साथ खेलने ही ती आई हूं ..पर पहले अपना नाश्ता फिनिश करो, और अपनी मेडिसन ले लो,तब खेलेंगे ...यह कहते हुये कविता की आंखें तरल हो आई,
ओ. के. मौसी ..कहता हुआ विन्नू छाया दीदी आप मुझे नाश्ता दे दो कह कर डायनिंग चेयर में बैठ गया,
सुजाता ने मुस्कुरा कर कविता को बैठने को कहा,सुजाता ने महसूस किया कि आज कविता बहुत उदास है, पर उसने कुछ पूछा नही, पर आज कविता के मन को उद्वेलित तो करना ही होगा..पर कैसे...कुछ सोचती रही सुजाता,
कुछ देर कमरे में चुप्पी छाई रही,सुजाता ने छाया को चाय बनाने को कहा , और दीवार में लगी एक पेटिंग की ओर इशारा कर बोली "कविता देखो मेरी बनाई पेन्टिग,मैंने अपने आप को ही उकेरा है इस चित्र में , तुम इसे ध्यान से देखो.. मैं कपड़े बदल के आती हूं फिर पेटिंग को लेकर हम बात करेंगें,
ओह !अच्छा आप पेटिंग भी करती है,क्याबात है... सर्व गुण सम्पन्न हमारी सुजाता दी,
ठीक है दी! यह कह कविता साईड वॉल में में लगी उस पेटिंग को ध्यान से देखने लगी जिसे उसने आज से पहले ठीक से देखा नही था, शायद ध्यान ही नही दिया था,
क्रमश:
डा.कुसुम जोशी
गाजियाबाद, उ.प्र.

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