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रॉयल फ्लैट रहस्य - उपन्यास
Rahul Haldhar
द्वारा
हिंदी डरावनी कहानी
सुबह - सुबह पोस्टमैन एक चीट्ठी देकर गया है और देवेंद्र जी उसे लेकर देख रहे थे , उनके दिमाग में एक बात समझ नही आ रहा कि एकाएक विजय ने उन्हें चीट्ठी क्यों लिखा ? वैसे भी चीट्ठी के ऊपर विजय नाम छोड़ और कुछ भीनही लिखा गया है । बाध्य होकर उन्होंने चीट्ठी के लिफाफेको फाड़ा , अंदर से निकल आया चार - पांच पन्ने की एक चीट्ठी , लिखावट साफ है पर जैसे कांपते हुए हाथोंसे लिखा गया है कुछ पन्नो की यह चीट्ठी । देवेंद्र जी पहले से अंत तक एकबार चीट्ठी को देखकर फिर पहले से पढ़ना शुरू किया ।
सुबह - सुबह पोस्टमैन एक चीट्ठी देकर गया है और देवेंद्र जी उसे लेकर देख रहे थे , उनके दिमाग में एक बात समझ नही आ रहा कि एकाएक विजय ने उन्हें चीट्ठी क्यों लिखा ? वैसे भी चीट्ठी ...और पढ़ेऊपर विजय नाम छोड़ और कुछ भीनही लिखा गया है । बाध्य होकर उन्होंने चीट्ठी के लिफाफेको फाड़ा , अंदर से निकल आया चार - पांच पन्ने की एक चीट्ठी , लिखावट साफ है पर जैसे कांपते हुए हाथोंसे लिखा गया है कुछ पन्नो की यह चीट्ठी । देवेंद्र जी पहले से अंत तक एकबार चीट्ठी को देखकर फिर पहले
यहाँ पर एक विशेष पुराना व प्रसिद्ध मंदिर है वह मैं जानता था इसीलिए उसे देखने के लिए भी एक प्लान बनाया था । दोपहर होने वाला था इसलिए एक होटल में जाकर दोपहर के खाने को समाप्त ...और पढ़े। खाना खत्म कर उस मंदिर को देखने चला गया । खाना , घूमना सब कुछ खत्म कर घड़ी की तरफ नजर दौड़ाई तो देखा साढ़े चार बज रहें हैं । एक दुकान से तीन मोमबत्ती खरीदकर रॉयल फ्लैट पहुँचतें - पहुँचतें लगभग शाम हो गया । ठंडी में शाम कुछ जल्दी ही हो जाता है । मैं धीरे - धीरे
अब आगे …….. विजय के घर से निकल कर देवेंद्र जी रास्ते पर ही बैठ गए । उसके बाद पॉकेट से मोबाइल को निकाल कुछ नम्बर को डायल किया । कॉल रिसीव होते ही उधर से उत्तर सुने बिना ...और पढ़ेदेवेंद्र जी बोले – " हैल्लो महेश जी बोल रहे हैं । " " हाँ आप कौन ? " " मैं हूँ देवेंद्र सिंह । " " जी कौन देवेंद्र ? " " देवेंद्र सिंह , ऑफिसर ऑफ इंवेस्टिगेशन एजेंसी , डिपार्टमेंट ऑफ मर्डर मिस्ट्री बैच नम्बर 45 , अब पहचाने ।" उधर से अब उत्तर आया – " ओ
आधे घंटे बाद ही रमाकांत के घर सामने गाड़ी को राघव ने रोका । घड़ी में उस समय शाम के छह बजे हैं । शाम के बाजार धीरे - धीरे बढ़ रहे हैं रास्ते पर लोगों के भीड़ भी ...और पढ़ेलगा है । गौरव गाड़ी से उतरकर घर की तरफ बढ़ा , घर के सामने पार्किंग जोन न रहने के कारण राघव गाड़ी को स्टार्ट करके आगे बढ़ा । घर के कॉलिंग को बजाने की जरूरत नही हुई क्योंकि सामने के गेट को खोलते ही दरवाजे से किसी ने झांका । गौरव बोल पड़ा – " रमाकांत जी हैं ?
ऑफिस लौटते समय राघव ने एक अद्भुत प्रश्न किया – " वैसे गौरव भैया एक महिला जो कुछ ही देर में मरने वाली है वह उस दर्दनाक समय में भी अपने खून से चिन्ह क्यों बनाएगी ? " गंभीर ...और पढ़ेमें गौरव ने उत्तर दिया – " वही तो नही समझ पा रहा लेकिन मन कह रहा है वह कोई साधारण लिखे गए चिन्ह नही थे । वह क्या हो सकता है दिमाग में नही आ रहा । " ऑफिस पहुँचतें ही महेश जी ने फोन कर जानकारी दी – " गौरव रॉयल फ्लैट के बारे में रमाकांत के पास