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तुम्हारे बाद - उपन्यास
Pranava Bharti
द्वारा
हिंदी कविता
दिल के दरवाज़े पे साँकल जो लगा रखी थी
उसकी झिर्री से कभी ताक़ लिया करती थी
वो जो परिंदों की गुटरगूं सुनाई देती थी
उसकी आवाजों को ही माप लिया करती थी
न जाने गुम सी हो गईं हैं ये शामें क्यूँ
और तन्हाई के भी पर से निकल आए हैं
मेरे भीगे हुए लमहों से झाँकते झोंके
आज पेशानी पे ये क्यों उतर के आए हैं
कुछ तो होता ही है, भीतर बंधा सा होता है
जो चीरता है किन्हीं अधखुले अलफ़ाज़ों को
क्या मैं कह दूँ वो सब कहानी सबसे ही
या तो फिर गुम रहूँ, और होंठ पे उंगली रख लूँ ?????
1 ---- दिल के दरवाज़े पे साँकल जो लगा रखी थीउसकी झिर्री से कभी ताक़ लिया करती थीवो जो परिंदों की गुटरगूं सुनाई देती थीउसकी आवाजों को ही माप लिया करती थीन जाने गुम सी हो गईं हैं ये ...और पढ़ेक्यूँऔर तन्हाई के भी पर से निकल आए हैंमेरे भीगे हुए लमहों से झाँकते झोंकेआज पेशानी पे ये क्यों उतर के आए हैंकुछ तो होता ही है, भीतर बंधा सा होता हैजो चीरता है किन्हीं अधखुले अलफ़ाज़ों कोक्या मैं कह दूँ वो सब कहानी सबसे हीया तो फिर गुम रहूँ, और होंठ पे उंगली रख लूँ ?????? 2
7 ---- ये तेरी रूह का साया मुझे परचम सा लगे लरजते आँसू भी मुझको कभी शबनम से लगें यूँ ढला रहता है तू जिस्म में मेरे अक्सर कि तेरा दिल भी मुझे अपनी ही धड़कन सा लगे कभी ...और पढ़ेतो कभी उस ओर दिख ही जाता है ये तेरी ही दुआओं का कुछ असर सा लगे ये रंजोगम भी कैसे बनाए हैं मालिक सबकी ही आँख का आँसू मुझे अपना सा लगे जाने शिकवा करूँ या शुक्रिया करूँ किसका मेरी रूह में कहीं कुछ हौसला सा लगे 8----- बहुत शान से जी ली थी ज़िंदगी मैंने और बहुत
13 ----- इंतज़ार किया सदा ही उस हसीन पल का होगी ख्वाबों की ताबीर, बदलेगी अपनी तकदीर फूल खिलेंगे मन के गुलशन में, चह्केंगी खुशियाँ आँगन में बादलों की छाँह दुलारेगी हमें, प्यार की कूक पुकारेगी हमें ज़िंदगी मुस्कुराएगी ...और पढ़ेमें, रोशनी के दिए जलाएगी पाँवों में होगी गति, झूमेंगी, नाचेंगी, महकेंगी, बहकेंगी फिजाएँ हर ओर होंगी प्यारी अदाएँ चमकेंगे सितारे, तुम्हारे–हमारे कोई नया गीत सुनेंगे रोज़ मिलकर सारे भरे होंगे भंडार, न होगी हा-हाकार सुबह से साँझ तक चलेगी मस्त बयार तभी भरेंगे मन में मादक गीत, सुमधुर संगीत क्यों इंतज़ार में ही ख़त्म हो जाता है जीवन? छूट
19 -------- न जाने कौन रोक देता है मुझको यूँ ही टोक देता है मुझे कुछ गुनाह करने से मेरे कदम नहीं बढ़ पाते हैं, थम जाते हैं और बेबस सी एक आह फिसल जाती है आसमान से ज़मीं ...और पढ़ेआँगन तक तेरी यादों के बीच ही घिरी मैं जाती हूँ तेरी यादों के ही कँवल खिला करते हैं और मन घूमता रहता है उनके ही संग भरी हो भीड़ हरेक सू ही पर मैं तन्हा तेरी यादों के दरीचों में घूम आती हूँ जैसे कोई भूली हुई सी कहानी मन में हो जैसे सागर की रवानी मेरी धड़कन में
25---- एक मनी-प्लांट की बेल ने सजा रखा था घर को मेरे दूर-दूर तलक फैली थी सुंदर बेल एक किनारे से दूसरे किनारे तक सच कहूँ तो वो मेरी हमजोली थी देख हरियाली की एक चादर सी मेरे चेहरे ...और पढ़ेकँवल खिला सा जाता था मेरी आँखों की रोशनी भी तो बढ़ जाती थी हरेक लम्हा मेरे साथ मुस्कुराता था एक दिन यूँ अचानक चूं-चूं सुनाई दी मुझको हरे पत्तों के बीच गुनगुना रहा था कोई जैसे फुसफुसाता सा मुझको बुला रहा था कोई वो तो जोड़ा था एक प्यारी सी चिड़िया का मेरे कानों में वो मिसरी सी जैसे