तुम्हारे बाद - 1 Pranava Bharti द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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तुम्हारे बाद - 1

1 ----

दिल के दरवाज़े पे साँकल जो लगा रखी थी 
उसकी झिर्री से कभी ताक़ लिया करती थी 
वो जो परिंदों की गुटरगूं सुनाई देती थी
उसकी आवाजों को ही माप लिया करती थी
न जाने गुम सी हो गईं हैं ये शामें क्यूँ
और तन्हाई के भी पर से निकल आए हैं
मेरे भीगे हुए लमहों से झाँकते झोंके
आज पेशानी पे ये क्यों उतर के आए हैं 
कुछ तो होता ही है, भीतर बंधा सा होता है 
जो चीरता है किन्हीं अधखुले अलफ़ाज़ों को 
क्या मैं कह दूँ वो सब कहानी सबसे ही 
या तो फिर गुम रहूँ, और होंठ पे उंगली रख लूँ ??????

 

 

2 ---

ये तेरी छुअन की लरज

समा गई है मेरे भीतर कहीं

जैसे भरी हो गंध ईश्वर की

जैसे उसके हाथ चिपके हों मेरे सिर पर यूँ

जैसे कोई रोता हुआ बच्चा

माँ की गोद में जाने को मचले

यूँ ही तेरे साथ का अहसास हुआ करता है

और ये सब मुझे हर पल

दिन-रात हुआ करता है

ये सदाएं नहीं तो और क्या हैं

जो दुआएँ बनके मेरे अंतर में जम के बैठी हैं

पलकें बंद हों या खुली हुई हों ऑंखें

पूरी उम्र का ही तो अहसास दिला जाती हैं

तेरी बातें ही तेरी याद दिला जाती हैं

धडकनें होती हैं जब द्वार पर दिल के यूँ ही

पल-पल मधुमास का अहसास हुआ करता है

दिल के कोने किसी खुशबू से भरे जाते हैं

और सन्तूर की सी तान बजी जाती है

किसी भी दौर में खुशबू ये भरी जाती है

और कहीं दूर तक ये हाथ पकड़ ले जाती है

ये तेरी एक लरज जो ‘ईश’ बनके बैठी है

ये ही अहसास है जो प्रीत बने बैठी है

वो दिशाओं की हवाओं में लरजती रहती

ये तो वो शै है जो हर पल ही रवां रहती है ||

 

 

3 ------

कुछ लकीरें सी खिंची रहती हैं भीतर मेरे

मैं उन्हें हाथ में लेने को बढ़ी जाती हूँ

कभी तो दौड़कर उनको पकड़ भी पाती हूँ

न पकड़ पाऊँ तो बेमौत मरी जाती हूँ

बंद मुट्ठी में छिपी हैं ये लकीरें यूँ तो

जो निकलकर कभी माथे पे चिपक जाती हैं

ये रात तन्हा है, पागल है, या है दीवानी

दिल के शीशे में मुझे चीरके ले जाती है

यूँ ही माथे पे दरारों सी चिपक जाती हैं

कुछ हवाएँ कभी छूती हैं दिल के पर्दों को

कुछ सदाएं यूँ ही कुछ झांकती सी रहती हैं

ये रोशनी का समां पिघलता है आँखों में

और कुछ धडकनें पसरी हुई हैं साँसों में

मेरे भीतर कुछ घटाएँ छिपी बैठी हैं

झाँका करती हैं इनसे कुछ शबनमी बूँदें

देती अहसास ये जैसे किसी खनक की अक्सर

जैसे दौलत जहाँ की खनखनाती हो भीतर

मैं सबमें बाँट दूँ दौलत ये सारी की सारी

और फिर मूँद लूँ आँखें जो खुली हैं अब तक ||

 

 

4 -----

मैं दिल की आग में खुद को जिलाए बैठी हूँ

दिल की देहरी पे अपना सिर टिकाए बैठी हूँ

तेरे अहसान बहुत हैं यूँ तो मुझ पर

मैं उनपे आस का सेहरा सजाए बैठी हूँ

ये तेरी याद ही तो ईश बनके आती है

मुझको पिछली सभी बातों की कसम देती है

सुनहरे ख्वाब की लड़ियाँ हों या हों वीराने

सबमें ही तो कोई आस जिला देती है

वो समुंदर की तरह लेती हैं उछालें यूँ

मैं कभी डरती कभी खुद उछल सी जाती हूँ

तू है पास मेरे, मेरी ही छाया बनकर

मैं तुझसे दूर कभी कैसे रह भी सकती हूँ ||

 

 

5 -----

कभी मैं सोचती हूँ एक दिया सा बन जाऊँ

और तेरे साए को उसकी रोशनी से भर दूँ

तेरी रोशन निगाह मुझको अगर छू ले तो

मैं अपनी उम्र का पूरा सुकून पा जाऊँ

ये है सारी उम्र का फ़साना कागज़ पर

जिसे मैं खो भी दूँ तो दिल पे लिखा रहता है

कुछ तो होती हैं बातें सरगोशी की

ये तो सब दिल के आँचल पे लिखा रहता है

जान भी लें कि सारी ही दुनिया फ़ानी है

कहीं है धूप तो फिर छाँव की रवानी है

लपटें उठती हैं साँसों से कैसे ऊपर

इनको छूने की मगर दिल ने मेरे ठानी है

 

6 ----

तू मेरे ख़्वाब में बस यूँ ही मिलाकर मुझसे

तेरी खुशबू मेरी धड़कन में बसी रहती है

वो ख्वाब चाहे किसी रंग में रंग दे मुझको

तेरी बातें मेरी साँसों में पिघल सी जाती हैं

सामने ताने सुनाए ये दुनिया सारी

ख़्वाब में तो कहीं कोई किसी को गिला न हो

वो हसरतें भी ढली जाती हैं जैसे सूरज

ख्वाब में किसी उजाले का ज्यूं पता न हो

हरेक पल ही तू मेरी निगाह में रहता

तेरी जुदाई से यहाँ कोई भी खफ़ा न हो

यूँ सरे-आम कहने से फ़ायदा भी क्या

जो तुझमें जीने की भीतर कहीं सदा न हो