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घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम - उपन्यास
saurabh dixit manas
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम (भाग-1)“चलो कपड़े पहनते हैं अब इश्क़ पूरा हुआ–––छी...!! बस यही रह गया है प्यार–मुहब्बत का पर्याय!” पास पड़ी मेज पर किताबें पटकते हुए निशा ने कहा । मैंने पीछे पलटकर देखा तो यूँ लगा मानो सुपरफास्ट ट्रेन का बेकाबू इंजन मेरी ओर दौड़ा चला आ रहा है जिसे मैं असहाय खड़ा देखने के सिवा कुछ और नहीं कर सकता था ।“बस लड़कों को लड़कियों से मात्र एक चीज की ही दरकार होती है उसे लिया फिर निकल पड़े अगले शिकार पर । खून खौलता है मेरा, ऑल मैन्स आर डॉग!” ऐसा कहकर निशा ने मेरी तरफ घूरकर
घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम (भाग-1)“चलो कपड़े पहनते हैं अब इश्क़ पूरा हुआ–––छी...!! बस यही रह गया है प्यार–मुहब्बत का पर्याय!” पास पड़ी मेज पर किताबें पटकते हुए निशा ने कहा । मैंने पीछे पलटकर देखा तो यूँ लगा मानो ...और पढ़ेट्रेन का बेकाबू इंजन मेरी ओर दौड़ा चला आ रहा है जिसे मैं असहाय खड़ा देखने के सिवा कुछ और नहीं कर सकता था ।“बस लड़कों को लड़कियों से मात्र एक चीज की ही दरकार होती है उसे लिया फिर निकल पड़े अगले शिकार पर । खून खौलता है मेरा, ऑल मैन्स आर डॉग!” ऐसा कहकर निशा ने मेरी तरफ घूरकर
घाट–84 ‘‘रिश्तों का पोस्टमार्टम’’ (भाग-3)नहीं–नहीं वो ऐसा नहीं कर सकती वो तो कितनी प्यारी है, लेकिन ? मेरे मन में फिर से सवालों का ज्वार–भाटा उठने लगा ।अरे काशी विश्वनाथ जी कैसा स्वागत करे हो अपनी नगरी में! मैंने ...और पढ़ेकी तरफ देखकर मन में कहा । फिर जल्दी से डायरी को बैग में रखने लगा तो हाथ सेे कुछ टकराया । बैग को अच्छे से टटोला तो नोकिया 1100 के पीछे का कवर हाथ लगा । अरे ये तो मेरे फोन का है । मैंनेे बुदबुदाते हुए बैग को फिर अच्छे से चेक किया तो मेरा फोन उसी में
घाट–84 ‘‘रिश्तों का पोस्टमार्टम’’ (भाग-3)नहीं–नहीं वो ऐसा नहीं कर सकती वो तो कितनी प्यारी है, लेकिन ? मेरे मन में फिर से सवालों का ज्वार–भाटा उठने लगा ।अरे काशी विश्वनाथ जी कैसा स्वागत करे हो अपनी नगरी में! मैंने ...और पढ़ेकी तरफ देखकर मन में कहा । फिर जल्दी से डायरी को बैग में रखने लगा तो हाथ सेे कुछ टकराया । बैग को अच्छे से टटोला तो नोकिया 1100 के पीछे का कवर हाथ लगा । अरे ये तो मेरे फोन का है । मैंनेे बुदबुदाते हुए बैग को फिर अच्छे से चेक किया तो मेरा फोन उसी में