Suno Punia book and story is written by Roop Singh Chandel in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Suno Punia is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
सुनो पुनिया - उपन्यास
Roop Singh Chandel
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
सुनो पुनिया (1) घाम की चादर आंगन के पूर्वी कोने में सिकुड़ गई थी. पुनिया ने मुंडेर की ओर देखा और अनुमान लगाया सांझ होने में अधिक देर नहीं है. ठंड का असर काफी देर पहले से ही बढ़ने लगा था. रह-रहकर हाथों के रोंगटे खड़े हो जाते थे और बदन कांप उठता था. पुनिया चाहती थी कि डेलवा (टोकरी) आज ही तैयार हो जाए. ’थोड़ा-सा ही बचा है---’ सोचकर उसने कुछ कांस खोंसकर सूजा उसमें घोंप दिया और आरण (सरकंडा) से तैयार मूंज फंसाकर आगे बुनना शुरू कर दिया. डेलवा समाप्त कर उसे आंगन बुहारना था, इसीलिए वह जल्दी-जल्दी
सुनो पुनिया (1) घाम की चादर आंगन के पूर्वी कोने में सिकुड़ गई थी. पुनिया ने मुंडेर की ओर देखा और अनुमान लगाया सांझ होने में अधिक देर नहीं है. ठंड का असर काफी देर पहले से ही बढ़ने ...और पढ़ेथा. रह-रहकर हाथों के रोंगटे खड़े हो जाते थे और बदन कांप उठता था. पुनिया चाहती थी कि डेलवा (टोकरी) आज ही तैयार हो जाए. ’थोड़ा-सा ही बचा है---’ सोचकर उसने कुछ कांस खोंसकर सूजा उसमें घोंप दिया और आरण (सरकंडा) से तैयार मूंज फंसाकर आगे बुनना शुरू कर दिया. डेलवा समाप्त कर उसे आंगन बुहारना था, इसीलिए वह जल्दी-जल्दी
सुनो पुनिया (2) घिनुआखेड़ा अहीरों का ही गांव है---एक सौ तीस घरों का छोटा-सा गांव. सभी काश्तकार. परिश्रमी और अपने काम में प्रवीण किसानों का गांव है यह. रामभरोसे का बाप रघुआ के पास पच्चीस बीघे मातवर खेत हैं. ...और पढ़ेका ट्यूबवैल है और करने वाले दस मजबूत हाथ. गांव में वह सबसे अधिक सम्पन्न है. रामभरोसे उसका तीसरा और छोटा लड़का है—कम पढ़ा, लाड़-प्यार में पला-बढ़ा. कुछ-कुछ जिद्दी. पुनिया उसके मन में चढ़ गई तो वह शांत कैसे बैठ सकता था? कुछ दिनों तक वह दलपत खेड़ा के चक्कर काटता रहा---पुनिया से मिलकर अपनी बात कह देने के लिए
सुनो पुनिया (3) पुनिया अब घर से अकेली कम ही निकलती थी. जब कभी जाती या तो अपनी माई के साथ या पडोस की बसंती के साथ. बसंती उम्र में पुनिया से चार साल छोटी थी, और पारस सोचता ...और पढ़ेक्यों न बसंती के माध्यम से ही वह अपनी बात पुनिया तक पहुंचा दे, लेकिन वह ऎसा भी नहीं कर सका. एक दिन कुछ देर के लिए पुनिया से फिर मुलाकात हो गई. बसंती साथ थी उस दिन पुनिया के. बसंती खेत में कुछ खोद रही थी और पुनिया मेड़ पर उसकी प्रतीक्षा कर रही थी. पारस अपने खेतों की
सुनो पुनिया (4) बलमा के ढोल का स्वर भी तेज से तेजतर होता जा रहा था. बलमा झूम रहा था. उसके हाथ स्वतः चल रहे थे---जैसे उनमें मशीन लगा दी गई हो. और मशीन रामभरोसे के हाथों में भी ...और पढ़ेलग गई थी आज. जितनी तेजी से उसके हाथ चल रहे थे, उतनी ही तेजी से उसका दिमाग भी गतिशील था. ’तो यही अवसर है पारस को सबक सिखाने का---पुनिया से उसे दूर करने का---जो मेरी है---उससे मिलने, बात करने, देखने का सबक मिलना ही चाहिए!’ कड़ाक---कड़ाक—कट---कड़ाक---पारस का प्रहार बचाने में दिमाग चकरघिन्नी हो गया रामभरोसे का. संभलकर वह प्रहार