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ये चकलेवालियां, ये चकलेबाज - उपन्यास
Neela Prasad
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
ये चकलेवालियां, ये चकलेबाज नीला प्रसाद (1) सुबह दफ्तर में वह दिन और दिनों जैसा ही था– एकरसता की लड़ी में गुथा, जाने - पहचाने स्वाद वाला। जाते वसंत की खिली धूप में चमकदार, कुरमुरा, क्रिस्प -सा सोंधा -सोंधा दिन, जो दरवाजे से घुसते समय के गुड मॉर्निंग, नमस्ते से शुरू होकर शाम को बाय या गुड नाइट पर खत्म हो जाने वाला हो। लगा नहीं था कि उसकी एकरसता यूं पापड़ की तरह चरमरा कर टूटेगी और शाम को सब - के - सब, चूर हो गए पापड़ की तरह ही अपने दिल, अपनी मान्यताओं और सोच के चरमराए
ये चकलेवालियां, ये चकलेबाज नीला प्रसाद (1) सुबह दफ्तर में वह दिन और दिनों जैसा ही था– एकरसता की लड़ी में गुथा, जाने - पहचाने स्वाद वाला। जाते वसंत की खिली धूप में चमकदार, कुरमुरा, क्रिस्प -सा सोंधा -सोंधा ...और पढ़ेजो दरवाजे से घुसते समय के गुड मॉर्निंग, नमस्ते से शुरू होकर शाम को बाय या गुड नाइट पर खत्म हो जाने वाला हो। लगा नहीं था कि उसकी एकरसता यूं पापड़ की तरह चरमरा कर टूटेगी और शाम को सब - के - सब, चूर हो गए पापड़ की तरह ही अपने दिल, अपनी मान्यताओं और सोच के चरमराए
ये चकलेवालियां, ये चकलेबाज नीला प्रसाद (2) दोपहर लंच टाइम था। खाना खाकर सब अपनी -अपनी टोली में बैठे गपिया रहे थे। इसी बहाने काम की एकाध बात भी हो जा रही थी कि किसने, कौन -सी फाइल दबा ...और पढ़ेहै और किसके पास से कौन -सी फाइल तुरंत नहीं निकलने से कितनी परेशानी होगी– और फिर यह निराशावाद कि हमारा ऑफिस ही बुरा है, बाकी सबों का कितना अच्छा! यहां तो बड़ी पॉलिटिक्स है जी!!– सब एकमत थे। मैं, जो चार - पांच ऑफिसों में काम कर चुकी थी, इस बात से सहमत नहीं थी, पर मेरी सुनने को
ये चकलेवालियां, ये चकलेबाज नीला प्रसाद (3) शाम शाम होते - होते ऐसा लगा जैसे हम सब एक दूसरे के सामने नंगे हो गए। मैं तो खैर नई थी पर लगा कि जैसे सबों को सबों का पता था ...और पढ़ेफिर भी किसी को किसी का पता नहीं था। यह पता होना वैसे ही था जैसे एक दूसरे के शरीर के अंगों, आकारों और उभारों का पता होना जिन्हें हमने कभी देखा नहीं था, पर जिनका अनुमान सबों को था। कपड़े उतर जाने पर एक दूसरे के सामने खड़े होने की शर्म से घिरे सब चुप हो गए। ऑफिस में