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ये चकलेवालियां, ये चकलेबाज - 2

ये चकलेवालियां, ये चकलेबाज

  • नीला प्रसाद
  • (2)
  • दोपहर

    लंच टाइम था। खाना खाकर सब अपनी -अपनी टोली में बैठे गपिया रहे थे। इसी बहाने काम की एकाध बात भी हो जा रही थी कि किसने, कौन -सी फाइल दबा रखी है और किसके पास से कौन -सी फाइल तुरंत नहीं निकलने से कितनी परेशानी होगी– और फिर यह निराशावाद कि हमारा ऑफिस ही बुरा है, बाकी सबों का कितना अच्छा! यहां तो बड़ी पॉलिटिक्स है जी!!– सब एकमत थे। मैं, जो चार - पांच ऑफिसों में काम कर चुकी थी, इस बात से सहमत नहीं थी, पर मेरी सुनने को तो कोई तैयार ही नहीं था। मेरे बोलना शुरू करते ही सब टॉपिक बदल देना चाहते थे।

    बात खेल -खेल में शुरू हुई। मीना दीदी ने कहा कि जो नेहा से उगलवा देगा कि वह कितनी बार किसके बेडरूम तक जा चुकी है या गेस्ट हाउस में चेयरमैन के बेडरूम में कितनी बार एंट्री ले चुकी है, उसे वे पार्टी देंगी।

    ‘लो, हम ये शुभ काम अभी किए देते हैं। आप तो बेंगॉली स्वीट्स को फोन करो जी।’ संदीप ओवर -कॉंन्फिडेंस में उठ खड़ा हुआ और नेहा के पास चलता बना।

    उसने जाने क्या कहा कि दो मिनट के अंदर ही हमेशा हंसती रहने वाली नेहा बौखला गई।

    ‘ज़बर्दस्ती मान लूं कि मैं बॉसों के साथ सोती हूं, क्यों? इन बुड्ढों के साथ सोती हूं मैं, जिन्हें मैं इतना नापसंद करती हूं कि कभी अपने घर घुसने तक नहीं देती। ये जो लार टपकाते अपनी उमर का खयाल किए बिना मेरे साथ फ्लर्ट करते हैं! काम करने को देर तक रुक जाती हूं, परमानेंट नहीं हूं तो कुछ बोल नहीं पाती, इसीलिए मैं शरीर बेचने वाली हो गई। शरीर का लेन - देन करके लाभ उठाने की नीयत वाली हो गई– चकलेवाली हो गई मैं?? और फिर वैसे भी लाभ के लिए कइयों को देह देना ही क्यों गलत समझा जाए, कइयों के दिल से एकसाथ खिलवाड़ करना क्यों नहीं? देह का कारोबार वेश्यावृत्ति है और भावनाओं का, दिल का कारोबार– वह क्या है? इमोशनल प्रॉस्टिट्यूशन? और जहां देह और दिल दोनों का व्यापार हैं, पर अपनाने की कोई नीयत नहीं– वह क्या है? अगर मैं चकलेवाली हूं तो इस हॉल के कोने में बैठी, शादीशुदा मिसेज़ रागिनी क्या हैं? हैं?? रोज सुबह ऑफिस आकर सबसे पहले बाथरूम जाकर सिंदूर मिटाती हैं, मुस्कान बिखेरती -इतराती संजीव सर को गुड मॉर्निंग बोल दिन की शुरुआत करती हैं। अपने से बीस साल बड़े, शादीशुदा, किशोर बच्चों के बाप संजीव सर को दिन भर में दर्जनों लव एस.एम.एस. भेजती हैं, रोज ही उन्हें पर्सनल आई.डी. से लव लेटर भी लिखती हैं। शाम को ऑफिस छोड़ने से पहले बाथरूम जाकर फिर से सिंदूर लगाती हैं, और ऑफिस से विदा हो जाती हैं। फिर घर जाने के रास्ते में प्रेमी को दिन -भर भेजे प्रेम संदेसे मिटा, ईमानदार -भरोसेमंद पत्नी का वेश बनाए घर घुसकर पति के गले में बाहें डालकर कहती होंगी कि दिन-भर उन्होंने पति को कितना -कितना मिस किया... अकसर, बैठे - बैठे एक ही प्रेम संदेसा पति और प्रेमी दोनों को भेज देती हैं। प्रेग्नेंट थीं पति से और दिन भर प्रेम संदेसे भेजती रहती थीं संजीव सर को–इस बारे में क्यों बात नहीं होती इस ऑफिस में? यह इतने अरसे से चल रहा है–प्रेम संदेसे, प्रेम पत्र, कार में हाथ पकड़े फिल्मी गाने गाते साथ घूमना, शॉपिंग करना, मूवी देखना ...दिल किसी का, देह किसी और की.. तो वह क्या है?? और संजीव सर क्या हैं - जो घर और शादी की सुविधा भोगते ऑफिस में प्रेम करते हैं?? रागिनीजी किसके लिए करती हैं करवाचौथ– पति के लिए, प्रेमी के लिए कि दोनों के लिए? अगले जनम में किसका साथ मांगती हैं??’

    मैं हक्की-बक्की रह गई। इमोशनल प्रॉस्टिट्यूशन, भावनात्मक वेश्यावृत्ति। सही तो कह रही है नेहा और.. जो उसने कहा, अगर सच है तो मेरी तरह ही कितना दुख पाते होंगे रागिनी के पति और संजीव सर की पत्नी!!

    नेहा रो रही थी और कहती जा रही थी।

    ‘आखिर मेरे ही बारे में क्यों अनाप-शनाप बोलते रहते हैं आप सब? उधर कोने में बैठी अनु जी को क्यों नहीं कहते कुछ, जो खुले आम पति के सामने शरद सर की कार में बैठकर चल देती हैं ऑफिस.. पति कुछ कह नहीं पाते कि कहीं बैकवर्ड बिहारी न कहाएं.. फ्लर्ट करते रहते हैं दोनों सबों के सामने। कहने को तो पड़ोसी हैं, बस सुविधा की खातिर साथ आते-जाते हैं, पर असलियत यह है कि दोनों अपने-अपने साथी से धोखा करते प्रेम करते हैं। हाथों में हाथ डाले साथ घूमते हैं प्रगति मैदान के मेले में और कइयों द्वारा होटल के कमरे में साथ -साथ देखे जा चुके हैं। ये दिल्ली है–बहुत बड़ा शहर–इसीलिए अपने साथी द्वारा पकड़े नहीं गए अब तक, तो ये दोनों शरीफ हो गए? जरा समझाओ न कैसे? ये दोनों अफसर हैं और शादीशुदा हैं, इसीलिए शरीफ हैं, कैरेक्टर वाले हैं; और मैं क्लर्क हूं, कुंवारी हूं इसीलिए कैरेक्टरलेस??’

    मेरी आंखें फटी रह गईं। दिल -दिमाग में कोई चक्की चलने लगी और मैं कन्फ्यूज़ होने लगी।

    चोट खाई नेहा कहती जा रही थी–

    ‘और सूरी सर का क्या जो कविता मैम पर ऐसे फिदा हुए कि उनकी पत्नी को टूटे दिल से घर छोड़ कर चले जाने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचा! अब कविता मैम तो यहां आराम से पति के घर रहती हुई सर से प्रेम करती हैं, प्रेम -गीत गाती -बजाती काम करती हैं, गाहे-बगाहे घूम भी आती हैं सूरी सर के साथ और कविता मैम के पति? सुना है वह इनके लिए करवा चौथ करते हैं। सोचते होंगे कि उनकी पत्नी उन्हें कितना प्यार करती हैं तो हर जन्म में उन्हें यही मिलें– और ये करवा चौथ करती होंगी ये सोच कर कि हर जन्म में यही सीधा -सा, भोला -भाला पति मिले ताकि हर जन्म में इसे इसी आसानी से चीट कर सकूं… सूरी सर की पत्नी अकेली, एक छोटे -से शहर में स्ट्रगल कर रही हैं – थोड़ा कमाती हैं और पति से डिवोर्स लेने की कोशिश में बरसों से कोर्ट के चक्कर काट रही हैं। सूरी सर उन्हें तलाक नहीं दे रहे क्योंकि पत्नी के रूप में वह इतनी अच्छी हैं कि कैसे छोड़ें, और फिर कविता मैम सर के साथ के लिए तैयार भी तो नहीं! सर अकेले रहते कविता मैम को प्यार करते जीते हैं। पर सर की पत्नी ने तो सिर्फ उन्हें प्यार किया और जब पता चला कि सर उन्हें नहीं, किसी और को प्यार करते हैं तो अलग होना चाहा.. उन्हें तो न शादी में प्यार मिला, न शादी से मुक्ति... तो सर और कविता मैम क्या हैं!? जब सूरी सर को हार्ट अटैक हुआ तब कविता मैम सेवा करने को उनके घर या अस्पताल क्यों नहीं गईं? क्यों कतरा कर निकल गईं कि यह तो पत्नी का फर्ज है, जो उनके नाम का सिंदूर लगाती है, भले ही तलाक के लिए चक्कर काटती फिर रही है! समाज के सामने बोल क्यों नहीं पाईं कि मैं उनकी प्रेमिका हूं और इसी नाते मैं करूंगी सेवा?

    और ये कामना जी, जो चैट पर इस ऑफिस के लोगों से फ्लर्ट करती रहती हैं, प्यारे-प्यारे एस.एम.एस. भेजती रहती हैं। मुंह पर बड़ाई के पुल और आंखों से ओझल होते ही बुराई-खिंचाई.. ये कहना कि इनकी बड़ाई करते रहो, इन्हें प्रेम संदेसे भेजते रहो तो आगे प्रमोट करते रहते हैं, अच्छी सी.आर. लिखते हैं.. हा -हा -हा.. क्या है ये! ये भी इस ऑफिस वालों की नजर में प्रेम ही होगा शायद?

    तुम सारे फिज़िकली, इमोशनली या दोनों तरह के चकलेबाज हो–मानो चाहे ना मानो!!’

    वह कुछ क्षणों के लिए चुप हो गई और ऑफिस में लोगों को इधर -उधर घूरती रही, मानो याद कर रही हो कि किसी का किस्सा छूट तो नहीं गया! फिर मुझ पर आकर उसकी नजरें ठहर गईं। वह बोल पड़ी

    ‘और ये नीता मैम...’

    जाहिर है, अपना नाम लिए जाते ही मैं चौकन्नी हो गई, मेरा दिल धड़क गया।

    ‘ये जानती हैं कि इनके पति को बार-बार, किसी और से प्यार हो जाता है और वह भी उससे, जो किसी से छल करती हुई ही उन्हें कर रही होती है प्यार! वह इन्हें प्यार नहीं करते, बस सेक्स और समाज के लिए साथ रहते हैं, फिर भी पति को लुभाने की कोशिश में लगी रहती हैं ये! जप-तप करती हैं, पति को ज़्यादा-से-ज़्यादा सुख देने की कोशिश करती रहती हैं कि वह और कहीं चले न जाएं, इनके ही बने रहें – और वह भी तब, जब ये खुद इतनी सुंदर, इतनी काबिल, इतनी इंटेलिजेंट हैं, इतनों द्वारा चाही गई हैं, भले ही इन्होंने प्यार स्वीकारा नहीं, पति के साथ बेवफाई नहीं की – फिर भी प्यार के बिना देह का लेन-देन, बिन भरोसे, बिन ईमानदारी का साथ, खुद से पति को खेलने की खुली इजाजत... ये इनकी शादी की मोरलिटी है - क्यों?? अरे, तुम सब क्या बोलोगे, तुम सारे कैरेक्टरलेस क्या दूसरे का कैरेक्टर बखानोगे? तुम सब तो अपने चॉइस से, अपने बेसिक कैरेक्टर में चकलेबाज और चकलेवालियां हो और इसे मोरल समझते हो। मैंने तो अपने फायदे के लिए भावना का व्यापार किया, न देह का। आज तक न किसी को शरीर दिया, न किसी से फ्लर्ट किया। इतने सारे मेरे पीछे हैं और मैं मुस्कराकर टाल देती हूं– काम करती हूं, इश्क-रोमांस के लिए नहीं आती ऑफिस। मिडल क्लास लड़की हूं, कुंवारी हूं तो जानती हूं अपनी लिमिट, और उसी अनुसार डील करती हूं। पर सबों ने सिर्फ हंसकर बात कर लेने और कुंवारी होने की वजह से मुझे अवेलेबल समझ लिया है। कोई मेरे साथ मूवी जाना चाहता है तो कोई मेरा हाथ पकड़कर अपार सुख पाता है। कितने नर्म हैं मेरे हाथ - उनकी पत्नी के तो उतने नर्म नहीं! कितनी मोहक है मेरी मुस्कान, उनकी ज़िंदगी में पहले आई किसी लड़की की उतनी मोहक नहीं... और मेरी आंखें? वह तो गहरी झील-सी हैं, जिनमें डूब जाने का मन करता है। मैं प्रेम संदेसे भेजूं या प्रेम पत्र लिखूं तो आधा ऑफिस मेरी जेब में हो। पर मैं यह सब नहीं करती। रिश्तों में बेईमानी मुझे पसंद नहीं। फ्लर्ट कहीं के, सारे दोगले साले... फ्लर्टेशन और इनफैचुएशन की कमीनगी को प्रेम समझने वाले, बेहया और बेवफा साले।’ उसकी आंखों में हिंसा उतर आई थी।

    मैं शर्मिंदा हो गई - अपनी शादी, अपने-आप पर। इस ऑफिस में अपनी छवि और ज़िंदगी के दोहरेपन पर। अगर धरती फट सकती तो मैं उसमें वहीं समाकर शांति पा जाती। सही तो है, वेश्यावृत्ति भावनात्मक भी होती है - बल्कि शारीरिक से कहीं ज्यादा खतरनाक, ज्यादा हिंसक, ज्यादा दबी - छुपी और ज्यादा प्रताड़नादायक!! यह मुझसे बेहतर कौन जान सकता था जो शादी की शुरूआत से पति की इमोशनल चकलेबाजी झेलती, मनश्चिकित्सकों की दवाइयां खाती, शादी साबुत बचाने की जी तोड़ कोशिश में, टुकड़े - टुकड़े हो जाती जीती रही थी। मैं जानती थी कि एक रिश्ता घर पर रख छोड़, बाहर प्रेम के नाम पर दूसरा रिश्ता जोड़ने की चाहना भरी, घर बर्बाद करने वाली उच्छृंखलता और बेहयाई कभी प्रेम नहीं हो सकती। जो इसे प्रेम समझता है, उसे शादी करने या शादी में बने रहने का कोई हक नहीं। प्रेम रिश्ते तोड़ता नहीं, रिश्ते जोड़ता है; वह बर्बाद नहीं करता, भरोसा -विश्वास बनाए रख आबाद करता है। प्यार का कमल तो स्थिर रिश्तों के जल में ही खिल सकता है आखिर! चकलेवालियों के पास घर नहीं होता, वह मजबूरी में चकलेवालियां बनती है। तरसती मर जाती हैं इस चाह में कि एक घर हो, कोई प्यार करने वाला हो.. और दूसरी तरफ शादी में बनी रह, दिल लेने - देने का कारोबार करने वाली ये इमोशनल चकलेवालियां बिना किसी मजबूरी घर तोड़ती हैं, रिश्ते बर्बाद करती हैं पर अपनाती नहीं, क्योंकि इनके पास घर पहले से होता है - - ठीक कहा नेहा ने! ये गुपचुप करती हैं अपना धंधा और न पुलिस द्वारा कभी पकड़ी जाती हैं, न समाज द्वारा। ये दो लोगों का निजी मामला है - कह कर अपने परिवार का सम्मान पाती धंधा करती, किसी और का परिवार तोड़ती शान से जीती हैं। ये इस धंधे को प्यार कहती हैं– इस छल को, झूठ को और प्रपंच को कहती हैं ये प्यार!!

    ऑफिस में सन्नाटा छा गया। घबराई हुई मीना मैम उठीं और नेहा को चुप कराने की कोशिश करने लगीं। वह चुप नहीं हुई। उसने मीना मैम के कंधे पर सर रख दिया और रोती हुई कहने लगी–

    ‘मैम, मैं ये चकलेबाजी क्यों करूं जबकि मेरे पास सचमुच का प्यार है! चीट करके, किसी को धोखा देकर सुख पाने, दिल भरने वाला प्यार नहीं, बल्कि वह प्यार जो छल नहीं करता, रिश्ते और घर रचता है.. किसी को नहीं पता क्योंकि मैंने कभी बताया ही नहीं। मुझे किसी से प्यार है.. इतना निजी और इतना कोमल है ये अहसास कि गलत लोगों के सामने बोल दिए जाने तक से मैला हो जाएगा। मैम, मैं शादी करने वाली हूं और इंतजार कर रही हूं कि परमानेंट हो जाऊं तो मेरी सैलरी बढ़ जाए, ताकि मेरी गृहस्थी बस सके’

    वह रो रही थी। मीना मैम आखिरकार उसे एक ओर ले जाने में सफल रहीं। किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह नेहा के पास जाए। हर किसी के अंदर कुछ उघड़ जो गया था… और उसे उघाड़ा था नेहा ने।

    क्रमश..

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