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बिकी हुई लड़कियां - उपन्यास
Neela Prasad
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
बिकी हुई लड़कियां नीला प्रसाद (1) मैं उसके घर के दरवाजे के सामने खड़ी हूं. दूसरे तल्ले के उसके घर के बाहर तक सीढ़ियां लांघकर नहीं, अंदर उमड़ती लहरों को चीरकर पहुंची हूं. अलग-अलग किस्म की भावनाएं, साझा सुख- दुख, बातें, सलाह, आंसू, हंसी और गलतफहमियों की यादों की अंदर उमड़ती लहरें.. और यह अहसास कि हर बार उन सबों को लांघकर ज्यादा करीब होते गए थे हम दोनों! पर अभी तो बीच में इतने बरसों का मौन पसरा था. नहीं, अनबोला नहीं, बस अपनी- अपनी व्यस्तताओं में इस कदर खोया जीवन कि कभी- कभी फोन पर औपचारिक बातें भले
बिकी हुई लड़कियां नीला प्रसाद (1) मैं उसके घर के दरवाजे के सामने खड़ी हूं. दूसरे तल्ले के उसके घर के बाहर तक सीढ़ियां लांघकर नहीं, अंदर उमड़ती लहरों को चीरकर पहुंची हूं. अलग-अलग किस्म की भावनाएं, साझा सुख- ...और पढ़ेबातें, सलाह, आंसू, हंसी और गलतफहमियों की यादों की अंदर उमड़ती लहरें.. और यह अहसास कि हर बार उन सबों को लांघकर ज्यादा करीब होते गए थे हम दोनों! पर अभी तो बीच में इतने बरसों का मौन पसरा था. नहीं, अनबोला नहीं, बस अपनी- अपनी व्यस्तताओं में इस कदर खोया जीवन कि कभी- कभी फोन पर औपचारिक बातें भले
बिकी हुई लड़कियां नीला प्रसाद (2) मुझ पर इतना भरोसा है- मैं खुश हुई. पर एक क्षण के गर्व के बाद संकोच से गड़ने लगी. शुचि को तो जैसे अंदाजा ही नहीं है कि अब मैं पहले वाली नहीं ...और पढ़ेअब मेरी दुनिया दूसरी है. ‘आप देख रही हैं न, कि यह कितनी छोटी-सी लगती है. तभी तो हुई सारी समस्या. यह सिद्ध करने में कि यह अठारह से ऊपर है, पसीने आ गए. कोई मानता ही नहीं था- न पुलिस, न डॉक्टर, न महिला संस्था वाले कि यह बालिग है. डॉक्टर तक कह रही थीं कि इसकी जांच की
बिकी हुई लड़कियां नीला प्रसाद (3) ‘और एक अच्छा लड़का जुगाड़ने की भी’, तरु बोली. ‘आंटी, हम बानी को जल्दी- से- जल्दी ब्याह देना चाहते हैं. दिल्ली में यह सब कोई सोचता नहीं होगा कि बूढ़े के साथ रह ...और पढ़ेहै, पुलिस के साथ अकेली यात्रा करके आई है.. वगैरह बुलशिट.. तो आप इसे दिल्ली में ही सेटल करा दीजिए. कोई घरेलू नौकर भी चलेगा. सर्वेंट क्वार्टर में रहेगी हमारी बानी और राज करेगी. आपके घर या किसी पहचान वाले के यहां कोई ड्राइवर, क्लीनर, सर्वेंट..कोई भी चलेगा.’ तरु रौ में बोलती जा रही थी. मुझे आश्चर्य हुआ- कितने भोले