Jaishree Roy लिखित उपन्यास निर्वाण | हिंदी बेस्ट उपन्यास पढ़ें और पीडीएफ डाऊनलोड करें होम उपन्यास हिंदी उपन्यास निर्वाण - उपन्यास उपन्यास निर्वाण - उपन्यास Jaishree Roy द्वारा हिंदी सामाजिक कहानियां 1k 3.2k 4 निर्वाण (1) 15 अगस्त, 2016 आमफावा फ्लोटिंग मार्केट की सीढ़ियों पर उस दिन हम देर तक बैठे रहे थे। हम यानी मैं और माया- माया मोंत्री! बिना अधिक बात किए। दिसंबर की यह एक धूप नहायी सुबह थी, बेहद ...और पढ़ेऔर ठंड, दिन चढ़ने के साथ धीरे-धीरे मीठी ऊष्मा से भरती हुई... हवा में अजीब-सी गंध थी- घाट की अनगिनत सीढ़ियों पर तितली के रंग-बिरंगे जत्थे-से मँडराते पूरी दुनिया से आए सैलानियों की देह गंध, नावों में पकते-बिकते थाई पकवानों की गंध और गंध नदी की, नावों में लदे मौसमी फूलों और फलों की... गंध के इस मसृण संजाल में पढ़ें पूरी कहानी सुनो मोबाईल पर डाऊनलोड करें पूर्ण उपन्यास निर्वाण - 1 349 1.1k निर्वाण (1) 15 अगस्त, 2016 आमफावा फ्लोटिंग मार्केट की सीढ़ियों पर उस दिन हम देर तक बैठे रहे थे। हम यानी मैं और माया- माया मोंत्री! बिना अधिक बात किए। दिसंबर की यह एक धूप नहायी सुबह थी, बेहद ...और पढ़ेऔर ठंड, दिन चढ़ने के साथ धीरे-धीरे मीठी ऊष्मा से भरती हुई... हवा में अजीब-सी गंध थी- घाट की अनगिनत सीढ़ियों पर तितली के रंग-बिरंगे जत्थे-से मँडराते पूरी दुनिया से आए सैलानियों की देह गंध, नावों में पकते-बिकते थाई पकवानों की गंध और गंध नदी की, नावों में लदे मौसमी फूलों और फलों की... गंध के इस मसृण संजाल में सुनो अभी पढ़ो निर्वाण - 2 361 1.2k निर्वाण (2) गौरांग-सा दिव्य रूप था नकूल बोधिसत्व का! उनके चेहरे पर हमेशा बनी रहने वाली स्मित मुस्कान से लगा था, वह जीवन के अनंत दुखों के पार कहीं स्थायी ठिकाना पा गये हैं। कितनी अद्भुत, कितनी विरल होगी ...और पढ़ेअवस्था... अपने अबुझ दुखों, अनचीन्ही कामनाओं की गठरी उठाए मैं उनके पीछे-पीछे अनायास चल पड़ा था, जाने किस प्रत्याशा में! उन्होंने भी मना नहीं किया था, आने दिया था मुझे अपने साथ, एक रूहानी सफर पर! मगर उस वक्त मुझे पता नहीं था, शरीर का दाय अभी पूरी तरह चुका नहीं है! देह की मिट्टी उर्बर भी है और प्यासी सुनो अभी पढ़ो निर्वाण - 3 - अंतिम भाग 329 887 निर्वाण (3) भगवान अफरोदित के प्राचीन मंदिर के गलियारे में यूलिया अपने सर पर तारों का मुकुट पहने सालों से बैठी है मगर अब तक उसे किसी पुरुष ने पैसे दे कर नहीं खरीदा है क्योंकि वह अन्य अभिजात ...और पढ़ेकी तरह गौर वर्ण और सुंदर नहीं है। संभ्रांत महिलाए अपने दास-दासियों के साथ रथ में सवार हो सुंदर परिधानों में आती हैं, आते ही उनके आसपास देह लोलुप पुरुषों की भीड़ लग जाती है। कोई बढ़ कर “मैं तुम्हें देवी मयलिटा के नाम से सहवास का निमंत्रण देता हूँ” कह कर उसकी गोद में कुछ सिक्के रख देता है सुनो अभी पढ़ो अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी उपन्यास प्रकरण हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी કંઈપણ Jaishree Roy फॉलो