Kaha n Kaha book and story is written by Arun Sabharwal in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Kaha n Kaha is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
कहा न कहा (1) अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था। दोपहर के बारह बजने वाले थे। घड़ी की सुई अपनी रफ्तार से बढ़ती जा रही थी। उसका तो नामोनिशान नहीं है। ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ। ...और पढ़ेतो सदा यहां एक घंटा पहले ही आ बैठता है। आज ऐसा क्या हो गया है ? उस दिन उसकी सोशल व
कहा न कहा (2) “ये देखो । मेरे चहीते का तोहफा।” पीटर ने खिल्ली उड़ाते कहा। “तुम इसे गुलदस्ता कहती हो ?” “पीटर प्लीज़, मत करो उपहास उसका”, सोचो जॉर्ज ने कितनी मेहनत की होगी सुबह-सुबह फूल चुनने में। ...और पढ़ेतुम भी कभी-कभी भावुक हो जाती हो। “और तुम निर्दयी।” “डेजी प्लीज़, जरा जल्दी करो।” बहुत से काम खत्म करने हैं। चलकर पहले अतिथियों की सूची का काम कर लेते हैं। वह तो रात को घर पर ही कर लेंगे। चलो फ्लैट का काम खत्म कर लेते हैं। वहीं से फोन करके पीज़ा मंगा लेंगे। डेज़ी ने सुझाव दिया। दोनों