कहा न कहा - 2 - अंतिम भाग Arun Sabharwal द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कहा न कहा - 2 - अंतिम भाग

कहा न कहा

(2)

“ये देखो । मेरे चहीते का तोहफा।”

पीटर ने खिल्ली उड़ाते कहा। “तुम इसे गुलदस्ता कहती हो ?”

“पीटर प्लीज़, मत करो उपहास उसका”, सोचो जॉर्ज ने कितनी मेहनत की होगी सुबह-सुबह फूल चुनने में।

“डेजी” तुम भी कभी-कभी भावुक हो जाती हो।

“और तुम निर्दयी।”

“डेजी प्लीज़, जरा जल्दी करो।” बहुत से काम खत्म करने हैं। चलकर पहले अतिथियों की सूची का काम कर लेते हैं। वह तो रात को घर पर ही कर लेंगे। चलो फ्लैट का काम खत्म कर लेते हैं। वहीं से फोन करके पीज़ा मंगा लेंगे। डेज़ी ने सुझाव दिया। दोनों ने बडे़ मनोयोग से फ्लैट को पेंट करके पर्दे टांग उसे तैयार कर लिया था। बस फर्नीचर की डिलीवरी बाकी थी।

मिस डेज़ी को भी जॉर्ज का इंतजार। जॉर्ज बाकी मरीज़ो से बहुत हटकर था। उसकी सोशल वर्कर उसको क्लीनिक के बाहर ही छोड़ जाती। बारह बजे आ कर ले जाती

“अंदर आ जाओ जार्ज।”

“गुड मोर्निंग मिस” वह बी.पी. के लिए अपनी कमीज की बाजू ऊपर करने लगा।

“जॉर्ज, आज बी.पी. या ब्लड टेस्ट नहीं करना है।” आज कम्प्यूटर पर तुम्हारी रिपोर्ट देखनी है। वह कम्प्यूटर से जूझ रही थी और जॉर्ज उचक-उचक कर देख रहा । उसे जूझते देखकर जॉर्ज से रहा न गया। वह बोल उठा।

“मिस, क्या मैं उसे ठीक कर सकता हूं ?”

वह थोड़ा झिझकती बोली -

“मुझे थोड़ी और कोशिश करने दो। अब तक वह हताश हो चुकी थी। वैसे भी कम्प्यूटर्स उसका कमजोर विषय था। उसके पास दूसरा रास्ता था नहीं। जॉर्ज .... वह उसके साथ वाली कुर्सी पर बैठ गई। जॉर्ज ने न जाने कौन-सा बटन दबाया, कम्प्यूटर चल पड़ा।

जॉर्ज अपनी सफलता से खुश होकर, खुद ही तालियां बजए जा रहा था। दोहराए जा रहा था। “मैंने ठीक कर दिया... मैंने ठीक कर दिया।” जॉर्ज सदैव उसे प्रभावित करने का प्रयत्‍न करता रहता था। उसकी खुशी सारे शरीर से झलक रही थी। जैसे वह कहीं ऐवरेस्ट के शिखर पर चढ़कर आ रहा हो।

मिस डेज़ी बहुत व्यस्त थी। उसकी शादी को अब केवल कुछ सप्ताह रह गए थे। अभी तक तो शादी का जोड़ा भी तैयार नहीं था। केक के ऑर्डर में भी कन्फ्यूज़न हो गया था। चर्च और पादरी को भी निश्चित करना था। फूलों का ऑर्डर देना था और क्लीनिक में भी आना था। मिस डेज़ी ने आज जॉर्ज को शादी की छुट्टियों से पहले आखिरी बार मिलना था। आज जब जॉर्ज समय पर क्लीनिक नहीं पहुंचा तो मिस डेज़ी रिसेप्शन में उसे लेने चली गई।

“लिज़ आज जॉर्ज नहीं आया क्या ?”

“नहीं मिस डेज़ी” वह तो हमेशा समय से एक डेढ़ घंटा पहले ही आ जाता है। शायद बाथरूम गया हो। “मिस डेजी आज तो जॉर्ज खुशी से गुनगुना रहा था। कह रहा था कि मिस डेजी के लिए एक खुशखबरी है। बहुत उत्साहित था।”

“क्या”, खुशखबरी है जॉर्ज ?”

“तुम्हें नहीं, मिस डेज़ी को ही बताऊंगा”, वह बोला।

ठीक है, जॉर्ज, जब बाथरूम से आए, उसे मेरे कमरे में भेज देना। उसके दरवाजे पर दस्तक हुई।

“अंदर आओ जॉर्ज, आज तुम्हारी मुस्कुराहट कुछ कहना चाहती है लाटरी निकली है क्या ?”

“नहीं, नहीं, मैं जुआ नहीं खेलता, मिस।”

“मैं भी तो सुनू ?” ऐसी क्या बात है।”

वह बड़े उत्साह से बोला “मिस डेज़ी अथोरिटी वाले कहते हैं। उसने उत्साहित होते हुए कहा। अब तुम आत्मनिर्भर हो गए हो। अकेले रह सकते हो। अगर मैं ऐसे ही अच्छा काम करता रहा, तो वह लोग मुझे मेरा अपना फ्लैट दे देंगे। वह लोग मुझे शापिंग करना,खाना बनाना, घर की देखभाल करना सब सिखाएंगे। अपने घर में अपनी मर्जी से खाऊंगा-पीऊंगा, और जब चाहे सोऊंगा-उठूंगा तथा टी.वी. देखूंगा। वह मेरा अपना घर होगा।

कुछ रूक कर बोला। “मिस अगर मैं तुम्हारे लिए खाना बनाऊंगा तो क्या तुम मेरे घर आओगी।”

“हां हां जरूर, अगर तुम खाना पकाओगे।”

“ओ.के. ... मिस...(सिर झुकाए अपनी अंगुलियों से खेलते तनिक शरमाते हुए कहा एक बात कहूं, मिस ?)

“हां बोलो”

“मिस आप बहुत अच्छी हैं।”

“क्यों जॉर्ज ऐसा क्या कर दिया मैंने?”

मिस डेज़ी “यू ट्रीट मी लाईक ए मैन”

इतना कहते ही वह शरमाते हुए, अंगूठा दिखाकर, कमरे से बाहर चला गया। उसके दिल में ज़ज्बात आहट देने लगे थे। उसकी इन बातों ने मिस डेज़ी को सोचने पर बाध्य कर दिया।

वह खुश होने के स्थान पर चिन्तित थी। क्या उसके मस्तिष्क में प्रश्‍नों का बबंडर मंडरा रहा था। “अपने स्नेहिल बर्ताव के कारण वह उसकी आशाओं को बढ़ा तो नहीं रही थी ? क्‍या कहीं वह उसके मन में अपने प्रति प्रेम की भावनाएं तो नहीं जगा रही थी ?”

क्या वह उस मासूम को धोखे में रख रही थी ? वह अंतरद्वंद्व अब डेज़ी के लिए चिन्ता का विषय बनता जा रहा था।

वह सोचती रहती कि जॉर्ज की निर्मल मुस्कुराहट उसके दिल में खुशियां बिखेर कर बिना कुछ कहे सब कुछ कह जाती है। जॉर्ज में पनपते आत्मविश्वास को वह तोड़ना नहीं चाहती थी। यही तो वह निरंतर चाह रही थी। अपनी सफलता पर वह प्रफुल्लित होते हुए भी तनिक उदास थी। वह सही निर्णय लेने में घबरा रही थी। विचारों की चपला एवं अपने विवेक ने सुझाया कि शादी के बाद वह जॉर्ज को किसी अन्य नर्स की लिस्ट में डाल दे। उस दिन जॉर्ज खुशी-खुशी सेन्टर वापस गया। उसे सेन्टर में काम करने के थोड़े पैसे भी मिलते और एक दायरे में बाहर आने-जाने की स्वतंत्रता भी थी। जॉर्ज के दिल में भावनाओं का तूफान मचला रहा था। मिस डेज़ी उसके लिए वह चांदनी थी जिसके उसका अंतर मन तो आलौकिक हो सकता था,किन्तु शांत नहीं। युवा अवस्था की सब तमन्नाएं इठलाने लगीं। वह अपने में ही खोया रहता। बहुत शांत हो गया था। तो उसे गुस्से के दौरे पड़ने भी बंद हो गए थे।

वह नहीं जानता था कि विधाता ने उसे ऐसा बना कर इस दुनिया में उसके लिए ऊंची-ऊंची दीवारें खड़ी कर दी हैं। उसके लिए सीमाओं के दायरे निश्चित कर दिए हैं।

इधर मिस डेज़ी की व्हाइट वेडिंग वहां के एक स्थानीय कैथोलिक चर्च में बड़ी धूमधाम से हुई। चर्च में शादी के पश्चात सीधे उन्हें रजिस्ट्री दफ्तर में शादी दर्ज करानी थी। उसके पश्चात हल्का सा नाश्ता। शाम को होटल में रिसेप्शन। वहीं से दोनों हनीमून पर जाने वाले थे। हनीमून के पश्चात् सीधे फ्लैट में।

पीटर और डेज़ी दोंनो की छुट्टियां समाप्त हो गईं। सोमवार को डेज़ी को वापस क्लीनिक जाना था। वह समय से थोड़ा पहले ही चली गई। तीन हफ्ते के पश्चात उसे अपना कमरा भी तैयार करना था। मरीजों की लिस्ट भी देखनी थी। डेज़ी ने ठान लिया था कि वह जॉर्ज को समझाएगी।

जॉर्ज रोज़ कैलेन्डर देख कर जो दिन बीत जाता उसे काट देता। जैसे-जैसे मिस डेज़ी की छुट्टी समाप्त होने के दिन करीब आते-जाते उसका उत्साह बढ़ता जाता। कई वर्षों पश्चात उसने संदूक में पड़ा पुराना सूट निकाल कर ड्राईक्लीन करवाया। उसके साथ एक नई टाई और शर्ट खरीदी। शनिवार को बाजार जाकर कुछ और खरीददारी करें उसे अपने संदूक में रख लिया। सेन्टर के सब कर्मचारी हैरान थे कि मिस डेज़ी ने जॉर्ज पर कौन सा जादू ही कर दिया है। जॉर्ज हर समय गुनगुनाता रहता है। शादी-शुदा जोड़ों को देखकर बहुत खुश होता। जने-खने पर अपनी फ्लाईंग किस्सिज़ लुटाता रहता है। दूसरों की शादी का वीडियो बार-बार देखकर खुश होता है। गुनगुनाता “हीयर कम्ज़ द ब्राइट ऑल इन व्हाइट।” जॉर्ज खुली आंखों से सपने देखने का आदि होता जा रहा था।

सुबह-सुबह वह नहा-धोकर तैयार हो गया। गहरे नीले रंग का सूट नई नीली धारियों वाली कमीज और नीले फूलों वाली टाई पहनी। जॉर्ज ने अपनी लिस्ट देखी कि उसे क्या-क्या साथ ले जाना था। फूलों का गुलदस्ता एक छोटी सी डब्बी और एक वैलकम बैक का कार्ड।

“मिस विजियमज़ चलो चलें, देर हो जाएगी।” जॉर्ज ने बेचैनी से कहा।

“धीरज रखो जॉर्ज, अभी बहुत समय है।”

“कम ऑन जल्दी करो।” जॉर्ज ने पांव जमीन पर पटकते कहा।

हार कर मिस विलियमस उसे साढ़े नौ बजे ही क्लीनिक में छोड़ आई। जॉर्ज क्लीनिक में कुर्सी पर बैठा कभी अपने पैर हिलाता । कभी आगे-पीछे झूमने लगता। कभी खड़े होकर इधर-उधर चक्कर लगाने लगता। कभी अपने हाथ में पकड़े आधे मुरझाए फूल तोड़कर ऊहा पोंह डालने लगता। हो न हो उसकी नज़र घड़ी की सुई पर टिकी थी।

जॉर्ज ने हृदय की गति घड़ी की सुई की गति से सौ गुना तेज भाग रही थी। आज वह एक साधारण नौजवान था। वह एक ऐसे खिलौने की चाह कर बैठा था। जिसे वह केवल दूर से ही देख सकता था, न पा सकता था, न छू सकता था वह ।

पूरे साढे़ ग्यारह बजे जॉर्ज ने मिस डेज़ी के दरवाजे पर दस्तक दी।

“अंदर आ जाओ जॉर्ज कैसे हो? लवली टू सी यू।”

“मी टू” जॉर्ज ने कहा।

“वाह ... वाह... जॉर्ज वैरी स्मार्ट..... भई क्‍या बात है आज बहुत डैशिंग लग रहे हो। डार्क सूट मैचिंग कमीज़ और टाई। वैरी नाईस किसी डेट पर जा रहे हो क्या ?”

“क्या नाम है उस लकी गर्ल का ?”

जॉर्ज चुप रहा। उसकी घबराहट उसके चेहरे पर झलक रही थी। फूलों का गुलदस्ता उसने बाएं हाथ से पीछे छिपा रखा था।

“बैठो”, तुम्हारा बी.पी. तथा ब्लड टेस्ट लेना है। तीन हफ्ते हो गए हैं ये टेस्ट हुए। ब्लड टेस्ट के लिए जैसे ही मिस डेज़ी अपने बाएं हाथ से नाड़ी ढूंढ़ने लगी। जॉर्ज की नज़र उसकी शादी की अंगूठी पर पड़ी। जॉर्ज थोड़ा कन्फ्यूस सा हो गया।

जॉर्ज उलझन में था। यह अंगूठी तो उसने पहले कभी नहीं देखी ? उसने फिर सोचा उस अंगूठी ने उसके मन की वीणा के तारों को इतनी जोर से छेड़ा कि वह टूट कर बिखर गए। उसका दिल दिमाग कुछ और सोच रहा था आंखें कुछ और ही दिखा रही थीं। जॉर्ज नि:शब्द जड़ सा कुर्सी पर बैठा रहा।

जैसे ही मिस डेज़ी कुर्सी से हाथ धोने के लिए उठीं, जॉर्ज की नज़र मेज पर रखी मिस डेज़ी और पीटर की शादी की तस्वीर पर पड़ी। उसे एक से एक बडे़ शूल चुभ रहे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि कहां अधिक दर्द हो रहा है। वह बेवस था। जॉर्ज कल्पना के संसार से यथार्थ में आ चुका था। मिस डेज़ी उसके जीवन में एक किरण ले कर आई थी। जो चमकने से पहले ही बुझ गई। वह नहीं जानता था कैसे वह अपने ज़ज्बातों को संभाले। उसे मालूम नहीं थीं, अपनी सीमाएं। इच्छाओं को भी दबाया जा सकता है, इससे वह अन्जान था। उसके कंठ की रूलाई में अटका स्वर उसकी ज़ख्मी भावनाओं के संग वह निकला। उसके हाथ में पकड़ा गुलदस्ता गिर कर जार-जार हो गया।

जॉर्ज आज तुम बडे़ चुप हो ? जैसे ही मिस डेज़ी ने मुड़ कर देखा तो जॉर्ज वहां नहीं था।

मिस डेज़ी की मेज़ पर पडे़ उसकी शादी के कार्ड कमरे के चारों तरफ बिखरे पडे़ थे। तस्वीर उल्टी पड़ी थी।

जमीन पर मसले लाल फूलों का गुलदस्ता। एक टूटी हुई लाल डब्बी जिसमें रोल्ड गोल्ड की अंगूठी आधी बाहर निकली पड़ी थी। ऐसी पीड़ा से अनजान जॉर्ज अपना घायल मन लिए सर्जरी से बाहर जा चुका था। बिना कुछ कहे।

By: Arun Sabharwal

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