Kaha n Kaha - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

कहा न कहा - 1

कहा न कहा

(1)

अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था। दोपहर के बारह बजने वाले थे। घड़ी की सुई अपनी रफ्तार से बढ़ती जा रही थी। उसका तो नामोनिशान नहीं है। ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ। वह तो सदा यहां एक घंटा पहले ही आ बैठता है। आज ऐसा क्‍या हो गया है ? उस दिन उसकी सोशल वर्कर कह रही थी, जब से आपकी सर्जरी में आना शुरू किया है, वह तो यहां आने की बड़ी प्रतीक्षा करता रहता है। अब तो उसके व्यवहार में भी गज़ब का परिवर्तन आ गया है। अब वह झूमता है, गाता है, नाचता है, हंसता है। सब बातों को ध्यान से सुनता है। यूं कहिए उसका पूरा ट्रांसफोरमेशन हो गया है।

बेशक उसकी अपाइंटमेंट उसके साथ हो या न हो। जब भी वह मिस डेजी के कमरे के सामने से गुजरता है। धीरे से उसके दरवाजे पर दस्तख दे, उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही, थोड़ा सा दरवाजा खोल अपना गोल-गोल चेहरा, उस पर भिच्चि-भिच्चि आंखें और चेहरे पर चन्द्रमा जैसी हंसी फैला, अंगूठा दिखा, ओ के मिस कह कर चला जाता है। मिस डेजी को देख कर पल भर के लिए उसकी जिन्दगी मुस्कुरा उठती थी। कितनी मासूमियत है उसके चेहरे पर। कितनी निर्मल और स्वच्छ है उसकी हंसी। छलकपट की तो जैसे उसके पास से गंध तक न गुजरी हो कभी, उसे अब उसकी चिन्ता होने लगी थी। मरीजों की लिस्ट समाप्त होते ही वह जानते हुए भी कि अब वह नहीं आएगा डेजी ने रिसेप्शन डेस्क पर जाकर पूछा

मिस “तुमने जॉर्ज को देखा है क्या ?”

मिस डेजी “आज तो जॉर्ज अपॉइंटमेंट रजिस्टर पर नहीं है।“

“आज मंगलवार है। उसे लिस्ट पर होना चाहिए था ?”

“मिस डेजी, जॉर्ज तो पिछले हफ्ते भी क्लीनिक के अंदर तक नहीं आया। बाहर से ही लौट गया था। पिछले सप्ताह अचानक गेट पर बहुत शोर सुना। जब मैं बाहर पहुंची जॉर्ज अडियल बच्चे की तरह जिद्द पकड़े बैठा था कि मैं अंदर नहीं जाऊंगा। मिस विलियमज़ ने बहुत समझाया। किन्तु उसने एक पांव तक नहीं हिलाया। जोर-जोर से बड़बड़ाता और पैर पटकता जा रहा था। उसे कह रहा था “मुझे यहां अच्छा नहीं लगता मैं अंदर नहीं जाऊंगा।”

“मिस डेजी तो तुम्हारी दोस्त है” उसकी सोशल वर्कर ने कहा।

“नहीं”, “नहीं अब वह मेरी दोस्त नहीं है।”

“लेकिन तुम्हें तो वह बहुत अच्छी लगती है।”

“नहीं”, “अब नहीं” अब मुझे वह अच्छी नहीं लगती।

“प्लीज जॉर्ज, तुम एक अच्छे लड़के हो, चलो मिस डेज़ी तुम्हारा इंतजार कर रही होगी।

“मुझे इसकी परवाह नहीं। अब मैं उससे नफरत करता हूं। अब मुझे यह जगह भी अच्छी नहीं लगती।”

सभी को धक्के मारता रहा था, पता नहीं उसमें इतना जोर कहां से आ गया। उस वक्त उस पच्चीस वर्ष के नौजवान के शरीर में एक तेरह-चौदह वर्ष का जकड़ा बालक विद्रोह पर उतर आया था। आंखों की निश्चलता और चेहरे पर स्‍थायी मुस्कुराहट, उसके विनम्र स्वभाव को और लुभावना बना देती। चाहे कितने भी दर्द में क्यों न हो। जहां से निकलता अपनी सहज मुस्कुराहट की खुशी बिखेरता जाता। भगवा ने उसे सब कुछ देकर भी उसके साथ थो़ड़ा छल कर दिया था। यूं कहिए थो़ड़ा अन्याय किया था। भगवान ने उसे सब बच्चों से थोड़ा हटकर बनाया था। वह पैदाईशी मंगोल (डाऊन सीन्डरैम) था। जन्म से ही ऐसे बच्चों की मानसिक कमजोरियों तथा अल्पबुद्धि के कारण बौद्धि‍क विकास सामान्य बच्चों से भिन्न होता है। समय के साथ-साथ यह उनके चेहरे पर भी झलकने लगता है। इसी कारण उनका मानसिक संतुलन अच्छे बुरे का अंतर करने में असमर्थ रहता है। ऐसे बच्चे किसी भी बात से प्रभावित होकर उसे बार-बार दोहराते रहते हैं। अतएव जॉर्ज स्पेशन ऐजुकेशनल नीडस सेन्टर में रहता था। उनकी क्लीनिक और जॉर्ज के एडल्ट ट्रेनिंग सेन्टर मिलकर उन बच्चों की देखभाल करते थे। उन दानों की जिम्मेदारी थी कि वह जॉर्ज और उसके साथियों को सोशल मॉडल ऑफ डिस्‍एबिलिटिज बनाए। ताकि वह मुख्य धारा से जुड़ सकें। जॉर्ज उस क्लीनिक में हर मंगलवार को लगातार मेडिकल जांच के लिए आता था।एक सप्ताह डॉ. वटर साहब के पास और दूसरे, नर्स मिस डेज़ी के पास बी.पी., खून टेस्ट तथा वजन और शेष छोटी-मोटी समस्याओं के लिए।

आज मिस डेज़ी के क्लीनिक में जॉर्ज पहली बार सोशल वर्कर मिस विलियम्स के साथ आया था। दोनों कमरे में बैठे अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। मिस विलियम्स तो अखबार पढ़ रही थीं और जॉर्ज दोनों हाथ घुटनों में दबाए कुर्सी पर बैठा आगे-पीछे झूम रहा था।

“जॉर्ज थॉमस” मिस डेज़ी ने पुकारा।

“यस मिस” जॉर्ज बच्चों की भांति अपना हाथ ऊपर करते बोला और जल्दी से फिर उसने अपना हाथ टांगों में छिपा लिया।

“गुड मोर्निंग जॉर्ज”

सिकुड़ कर बैठे-बैठे ही उसने सिर हिला कर धीरे से कहा “गुड मोर्निंग”

“अंदर आओ जॉर्ज बैठो” मिस डेज़ी ने कुर्सी की ओर इशारा करते हुए कहा। वह सिकुड़ कर कुर्सी के कोने पर बैठ गया।

“जॉर्ज सुनो अगर तुम शरमाते रहोगे तो हम दोस्त कैसे बन पाएंगे” मिस डेज़ी ने कहा।

“डॉ. तुम मेरी दोस्त बनोगी ?” वह धीरे से फुसफुसाया।

हां हां, “क्यों नहीं”। उसके नोट्स वह जॉर्ज के आने से पहले पढ़ चुकी थी।

“जॉर्ज” प्लीज़ अपनी कमीज की दाईं बाजू ऊपर करो। तुम्हारे टेस्ट के लिए खून तथा ब्लड प्रेशर देखना है। उसके बाद तुम्हारा वजन।

उसने सिर हिला कर कहा ओ.के. मिस। अपना काम समाप्त करने के पश्चात् मिस डेज़ी ने कहा । “जॉर्ज अब तुम जा सकते हो।”

रिसेप्शन से दो हफ्ते बाद की अपॉइंटमेंट ले लेना। वह अभी तक सिर नीचे किए बाय-बाय करता चला गया।

हर दूसरे मंगलवार को बिना नागा किए जॉर्ज निरंतर क्लीनिक में आता रहा। धीरे-धीरे वह कपड़े की तह की भांति खुलने लगा था। उसका संकोच भी कम होने लगा। अब तो वह उस मंगलवार की दिनचर्या से अभ्यस्त हो चुका था।

जॉर्ज तुम बड़े स्मार्ट हो रहे हो। मिस डेज़ी ने प्यार से कहा।

“थैंक यू मिस” उसने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया।

अब तुम्हारा वजन देखते हैं।

वज़न तोलने की मशीन पर चढ़ते ही उसने अपना वज़न पढ़ना शुरू कर दिया । “मिस यह दो-दो नम्बर क्यों हैं ?”

“एक किलोग्राम है और दूसरा पांउड्स।”

“यह पैसों वाला पांउडस है क्या ?”

“नहीं, यह वजन के संदर्भ में आता है।”

उसने अपने भोलेपन तथा लुभावने आचार-व्यवहार से सबका मन जीत लिया था। “आज से आप बेशक मेरे कमरे में जॉर्ज के साथ मत आना। अब वह बहुत आमनिर्भर हो गया है।” उसने सोशल वर्कर से कहा।

“मिस डेज़ी अगर आप ठीक समझती हैं तो ठीक है।” मैं यहीं उसका इंतजार करूंगी।

उस दिन से जॉर्ज अकेला ही मिस डेज़ी के कमरे में आने लगा।

दरवाजे पर दस्तक हुई।

“अंदर आओ जॉर्ज।” मिस डेज़ी ने मुस्कुराते हुए कहा।

“गुड मोर्निंग मिस”

“गुड मोर्निंग जॉर्ज बैठो।”

बी.पी. लेते समय वह मिस डेज़ी की बी.पी. मशीन को बड़ी गौर से टकटकी लगाए देख रहा था।

मिस डेज़ी, “क्या मैं इसे हाथ में ले सकता हूं।”

“क्यों नहीं”, पर इसका कोई बटन मत दबा देना क्‍योंकि जब भी मिस डेज़ी उसका बी.पी. देखती तब वह बड़ी उत्सुकता से बी.पी. को ऊपर नीचे चढ़ता उतरता देखता रहता। पढ़ने की कोशिश करता।

जॉर्ज हर बार अपनी बनाई कोई न कोई चीज़ दिखाने को लाता। एक दिन वह अपनी एक किताब दिखाकर बोला। “मिस मैं यह किताब पढ़ सकता हूं।”

“तुम तो बहुत होशियार हो गए हो” जॉर्ज । इतना सुनते ही वह चारों तरफ नज़रें घुमा, दीवारों पर लगे पोस्टर पढ़ने की कोशिश करने लगा। अपनी प्रशंसा सुनकर भला कौन उत्साहित नहीं होता? इसीलिए तो तुलसी दास ने लिखा है – निज कवित्त कहीं लागी न नीका। सरस होये अथवा अति फीका।

“मिस डेज़ी एक दिन मैं भी तुम्हारी तरह डॉक्टर बनूंगा।”

“गुड वैरी गुड जॉर्ज तब तो तुम मेरा चेकअप करना” उसने मुस्कुराते हुए कहा। अब तो पटरी पर गति पकड़ती रेल की भांति जॉर्ज के जीवन में भी गतिशीलता आने लगी।

“हां, मिस जरूर करूंगा क्यों नहीं ?”

जॉर्ज अब तुम ज सकते हो। बाहर मिस विलियमज़ तुम्हारा इंतजार कर रही है। वह अंगूठा दिखा ओ.के. कहकर चला गया। उसके बढ़ते आत्मविश्वास को देखकर मिस डेज़ी खुश थी कि जॉर्ज अब भविष्य के बारे में सोचने लगा है। वह जल्दी से बैग उठाकर घर को चल दी। उसे अने मंगेतर पीटर से मिलना था। घर पर पीटर उसका इंतजार कर रहा था। “माफ़ करना पीटर, थोड़ी देर हो गई है।”

“क्या बात है डेज़ी “बड़ी खुश लग रही हो?”

तुम्हें पता है पीटर आज जॉर्ज नर्स बनने की बात कर रहा था। उसमें भी इच्छाएं उभरने लगी हैं।

“डेजी प्लीज़” इस वक्त तुम काम पर नहीं हो। मेरे साथ हो। जल्दी ही हमारी शादी होने वाली है। कोई रोमांचिक बात करो। याद है अब हमें बहुत से काम करने हैं। शादी के खाने का मेन्यू भी तो तैयार करना है।”

“ठीक है पीटर, कल शुक्रवार है। वीक एंड में करेंगे।”

पूरा वीक एंड दोनों शादी की तैयारियों और फ्लैट को तैयार करने में व्यस्त रहे। डेज़ी रात बहुत हो चुकी है। अब चलता हूं। सुबह काम पर भी जाना है। पीटर ने कहा। सर्दियां शुरू हो गई थीं। जुकाम, बुखार फ्लू का टीका लगवाने की लंबी कतार लगी थी। आज सर्जरी में ओपन डे था। फ्लू टीके के लिए अपाइंटमेंट की कोई आवश्यकता नहीं थी। क्लीनिक बहुत व्यस्त थी। न जाने समय कहां उड़ गया। इतने में मिस डेज़ी के दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने घड़ी देखी “अंदर आ जाओ जॉर्ज।”

“गुड मोर्निंग मिस” जॉर्ज ने बड़े आत्मविश्वास से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया। उसका दूसरा हाथ अभी तक उसकी जेब में ही था। उसकी बाजू सटकर उसके शरीर से चिपकी पड़ी थी।

दो बार कोशिश करने पर भी जब उसे जॉर्ज की नाड़ी नहीं मिली तो उसने कहा ...”जॉर्ज प्लीज़ अपना दूसरा हाथ देना।” इतना सुनते ही उसने अपने बाजू को अपने शरीर के साथ और चिपका लिया।

“प्लीज़ जॉर्ज मुझे टेस्ट के लिए खून चाहिए।”

उसने झिझकते-झिझकते जैसे ही अपना दूसरा हाथ जेब से निकाला। उसकी मुट्ठी बंद थी। रिलैक्स जॉर्ज हाथ खोलो “मिस डेज़ी ने कहा।” जैसे ही उसने मुट्ठी खोली दो इंच का पीला पीला जंगली डेज़ीज का गुच्छा था।

शरमाते हुए गुलदस्ता मिस डेज़ी की ओर बढ़ाकर, फुसफुसाया।

“मिस डेज़ी आपके लिए है।”

“थैंक यू जॉर्ज ये फूल तो बहेद सुंदर हैं। सुबह-सुबह कहां से लाए इतने सुंदर फूल?”

“मिस ए.टी.एस. (एडल्ट ट्रेनिंग सेन्‍टर) के गार्डन से”

खुशी-खुशी वह डेज़ी फूलों की भांति मुस्कान बिखेरता चला गया। आज उसने मिस डेज़ी के दिल को थोड़ा थोड़ा और छू कर उसमें अपने लिए थोड़ा और स्थान बना लिया था

अचानक मिस डेज़ी की नज़र दीवार पर टंगी घड़ी पर पड़ी। पांच बज चुके थे। डेज़ी जल्दी से कम्प्यूटर बंद कर, कोट उठा चल दी। पीटर दरवाजे पर ही खड़ा था।

“हाय डेज़ी”, तुम्हारी मुस्कुराहट कुछ कहना चाहती है ?

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