Rajarshi book and story is written by Rabindranath Tagore in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Rajarshi is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
राजर्षि - उपन्यास
Rabindranath Tagore
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
राजर्षि के सम्बन्ध में कुछ कहने का अनुरोध किया गया है। कहने को विशेष कुछ नहीं है। इस बारे में मुख्य वक्तव्य यही है कि यह मेरा स्वप्न में उपलब्ध उपन्यास है।
बालक पत्रिका की संपादिका ने मुझे इस मासिक की थाली में नियमित रूप से परोसने के काम में लगा दिया था। उसका फल हुआ यह कि प्राय: एकमात्र मैं ही उसके भोज का प्रबंधकर्ता बन गया। तनिक समय पाते ही मन 'क्या लिखूँ' 'क्या लिखूँ' करता रहता था।
राजर्षि के सम्बन्ध में कुछ कहने का अनुरोध किया गया है। कहने को विशेष कुछ नहीं है। इस बारे में मुख्य वक्तव्य यही है कि यह मेरा स्वप्न में उपलब्ध उपन्यास है।
बालक पत्रिका की संपादिका ने मुझे इस मासिक ...और पढ़ेथाली में नियमित रूप से परोसने के काम में लगा दिया था। उसका फल हुआ यह कि प्राय: एकमात्र मैं ही उसके भोज का प्रबंधकर्ता बन गया। तनिक समय पाते ही मन 'क्या लिखूँ' 'क्या लिखूँ' करता रहता था।
बारहवाँ परिच्छेद
जयसिंह उसके अगले दिन मंदिर में लौट कर आया। अब तक पूजा का समय निकल चुका है। रघुपति दुखी चेहरा लिए अकेला बैठा है। इसके पहले कभी ऐसा नियम भंग नहीं हुआ था।
जयसिंह गुरु के निकट न जाकर ...और पढ़ेबगीचे में चला गया। अपने पेड़-पौधों के बीच जाकर बैठ गया। वे उसके चारों ओर काँपने लगे, दोलायमान होने लगे, छाया नचाने लगे। उसके चारों ओर है, पुष्प खचित पल्लवों की सतह, श्यामल सतह के ऊपर सतह, छाया भरे सुकोमल स्नेह का आच्छादन, सुमधुर आह्वान, प्रकृति का प्रीतिपूर्ण आलिंगन। यहाँ सभी प्रतीक्षा करते हैं, कोई बात पूछता नहीं, भावना में व्याघात उत्पन्न नहीं करता, माँगने पर ही माँगता है, बात करने पर ही बात करता है। इस नीरव श्रवणेच्छा के वातावरण में, प्रकृति के इस अंत:पुर में बैठ कर जयसिंह सोचने लगा। राजा ने उसे जो सीख दी है, मन-ही-मन उस पर विचार करने लगा।
तेईसवाँ परिच्छेद
चाचा साहब के लिए क्या आनंद का दिन है। आज दिल्ल्लीश्वर के राजपूत सैनिक विजयगढ़ के अतिथि हुए हैं। प्रबल प्रतापी शाहशुजा आज विजयगढ़ का बंदी है। कार्तवीर्यार्जुन के बाद से विजयगढ़ को ऐसा बंदी और नहीं मिला। ...और पढ़ेकी बंदी हालत को याद करके निश्वास छोड़ते हुए चाचा साहब राजपूत सुचेत सिंह से बोले, सोच कर देखो, हजार हाथों में हथकड़ियाँ पहनाने के लिए कितनी तैयारी करनी पड़ी थी! कलियुग आने के बाद से धूमधाम एकदम कम हो गई है। अब तो राजा का पुत्र हो चाहे बादशाह का बेटा, बाजार में दो से ज्यादा हाथ खोजे नहीं मिलते। बंदी बना कर आनंद नहीं मिलता।
नक्षत्रराय सैनिकों के साथ आगे बढ़ने लगा, कहीं तिलभर भी बाधा नहीं आई। त्रिपुरा के जिस भी गाँव में उसने कदम रखा, वही गाँव उसकी राजा के रूप में अगवानी करने लगा। पग-पग पर राजत्व का आस्वाद पाने लगा ...और पढ़ेक्षुधा और भी बढ़ने लगी, चतुर्दिक फैले खेत, ग्राम, पर्वत-श्रेणियाँ, नदी, सभी कुछ 'मेरा है' के रूप में अनुभव होने लगा तथा उसी अधिकार-विस्तार के साथ-साथ स्वयं भी जैसे बहुत दूर तक फैल कर अत्यधिक मजबूत होने लगा। मुगल सैनिकों ने जैसा चाहा, उसने बेरोकटोक उन्हें वैसा ही हुकुम दे दिया। सोचा, यह सभी मेरा है और ये लोग मेरे ही राज्य में आ पहुँचे हैं। इन्हें किसी प्रकार के सुख से वंचित नहीं करना है - मुगल अपने देश में लौट कर उसके आतिथ्य और राजावत उदारता और दानशीलता की बहुत प्रशंसा करेंगे कहेंगे, 'त्रिपुरा का राजा कोई छोटामोटा राजा नहीं है।' मुगल सैनिकों में अपने को प्रसिद्ध करने के लिए वह हमेशा उत्सुक रहता है। उन लोगों के द्वारा किसी प्रकार की श्रुति-मधुर बातचीत करने से वह एकदम पिघल जाता है। हमेशा डर बना रहता है कि कहीं किसी प्रकार की बदनामी का कारण न घट जाए!