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नीला आकाश - उपन्यास
Niraj Sharma
द्वारा
हिंदी महिला विशेष
नीला आकाश (1) सारी धुंध छँट गयी थी। खुशी का ओर छोर नहीं था। दोनों हाथ पैफलाये चक्राकार घूमते हुए वह पूरे आसमान को समेट लेना चाहती थी अपने अंक में। गहरी साँस लेकर पी लेना चाहती थी उन्मुक्त हवाओं को। आज़ादी का उजाला भर लेना चाहती थी अपनी आँखों में। आने वाली खुशी को कैद कर बंद कर लेना चाहती थी मन के द्वार। आस-पास से बेखबर, उन पलों बाँध लेना चाहती थी हमेशा के लिए। आकाश के रंग में रंगा था उसका नाम भी, नीला। और आकाश! वह तो निर्निमेश निहार रहा था उसे। नन्ही गुड़िया-सी किलकारी भरती
नीला आकाश (1) सारी धुंध छँट गयी थी। खुशी का ओर छोर नहीं था। दोनों हाथ पैफलाये चक्राकार घूमते हुए वह पूरे आसमान को समेट लेना चाहती थी अपने अंक में। गहरी साँस लेकर पी लेना चाहती थी उन्मुक्त ...और पढ़ेको। आज़ादी का उजाला भर लेना चाहती थी अपनी आँखों में। आने वाली खुशी को कैद कर बंद कर लेना चाहती थी मन के द्वार। आस-पास से बेखबर, उन पलों बाँध लेना चाहती थी हमेशा के लिए। आकाश के रंग में रंगा था उसका नाम भी, नीला। और आकाश! वह तो निर्निमेश निहार रहा था उसे। नन्ही गुड़िया-सी किलकारी भरती
नीला आकाश (2) "क्या नाम है तुम्हारा?" "जी, नी...ला" झिझकते हुए धीरे से कहा उसने। "आओ बैठो।" वह सिकुड़ी-सी पास रखी कुर्सी पर बैठ गयी। "तुम्हें इस तरह शर्माते हुए देखकर मुझे आश्चर्य हो रहा है।" "..." वह चुप ...और पढ़ेइस पेशे के लोग और शर्म! किताबों, अखबारों में कई बार किस्से पढ़े- सुने थे, फिल्मों में कई बार देखा भी था, उसके दिमाग में सैक्स वर्कर की जो छवि बनी हुई थी वो एक बिन्दास औरत की ही थी। यहाँ तो सब उल्टा-पुल्टा हो रहा था। पहली बार तो वह आया था यहाँ, शर्माना तो उसे चाहिए था। "तुम
नीला आकाश (3) "तुझे नहीं लगता, तू एक ऐसी लड़की से प्यार करने लगा है जिसे न समाज न तेरे घरवाले कभी अपनायेंगे, ऐसा कर कुछ दिन उधर की तरफ मत जा, सारा प्यार का भूत उतर जायेगा?" विवेक ...और पढ़ेआने वाले कल की सुगबुगाहट महसूस हो रही थी। "यार, मज़ाक मत कर, हैल्प कर सकता हो तो बता।" "सोचना पड़ेगा, काम तो बहुत टेढ़ा है। मेरा कौन-सा पाला पड़ा है ऐसी परिस्थिति से। मैं तो खुद कभी-कभी मौज मनाने के इरादे से ही गया हूँ वहाँ। पर तूने तो हद ही पार कर दी। मेरे सामने तो उस दिन