नीला आकाश - 3 - अंतिम भाग Niraj Sharma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

नीला आकाश - 3 - अंतिम भाग

नीला आकाश

(3)

"तुझे नहीं लगता, तू एक ऐसी लड़की से प्यार करने लगा है जिसे न समाज न तेरे घरवाले कभी अपनायेंगे, ऐसा कर कुछ दिन उधर की तरफ मत जा, सारा प्यार का भूत उतर जायेगा?" विवेक को आने वाले कल की

सुगबुगाहट महसूस हो रही थी।

"यार, मज़ाक मत कर, हैल्प कर सकता हो तो बता।"

"सोचना पड़ेगा, काम तो बहुत टेढ़ा है। मेरा कौन-सा पाला पड़ा है ऐसी परिस्थिति से। मैं तो खुद कभी-कभी मौज मनाने के इरादे से ही गया हूँ वहाँ। पर तूने तो हद ही पार कर दी। मेरे सामने तो उस दिन बड़ा महात्मा बन रहा था। चुपके-चुपके ये गुल खिला दिया, मुझे ज़रा भी भनक होती न तो तुझे कभी वहाँ नहीं जाने देता, मैं बहुत नाराज़ हूँ तुझसे।"

"यार, प्यार सोचकर थोड़े ही किया जाता है, अब मुँह मत फुला, ये बता, क्या पुलिस की मदद ले सकते हैं?"

"बावला हो गया है के, पुलिस तो खुद मिली हुई होती है, इनकी कमाई में से हिस्सा खाती है वो भी। वो क्यूँ मदद करेंगे भला? इनके एरिया में ही पुलिस चौकी है, क्या वो जानते नहीं कि वहाँ क्या हो रहा है। ये अजमेरी गेट से लेकर लाहौरी गेट तक का जी बी रोड का एरिया रेड लाईट एरिया कहलाता है। इस गाईड द्वारा तुझे ये ज्ञान देना रह गया था। इस शान-औ-शौकत से भरपूर दिल्ली की चकाचौंध के पीछे ये अँधेरी गलियाँ भी हैं। बदनुमा दाग की तरह। अंग्रेजों के ज़माने में यहाँ मुजरे हुआ करते थे। बाकायदा लाइसेंस दिये जाते थे उन तवायफों को। दिल्ली के कई इलाकों में बसे देहव्यापार के कारोबार को एक जगह इकट्ठा करके यहाँ बसा दिया गया और यह जी बी रोड बन गया इस व्यापार का अड्डा। तब यह शहर से बाहर का इलाका था।"

"कितना गंदा है वहाँ का माहौल। कबूतरखाने जैसे कमरे, उन छोटे-छोटे से कमरों में कई-कई सारी लड़कियाँ, कैसे रहती हैं, तिस पर अजीब-सी गंध, कितना वीभत्स वातावरण है वहाँ का।" आकाश के चेहरे से घृणा झलक रही थी।

"फिर...फिर भी तू जाता था वहाँ?" विवेक ने छेड़ने के इरादे से कहा।

"क्या करें आकाश को तो नीला ही नीला दिखता है न! मुझे नीला ने बताया कि कैसी मजबूरियों

की शिकार हैं वो औरतें। कोई खुशी से नहीं करतीं ये काम। किसी को अपहरण करके लाया गया है तो किसी को घरवालों ने बेच दिया है। कई बेसहारा औरतें बच्चों को पालने के लिए इस दल-दल में धँसने को मजबूर हैं। और जो एक बार उस धंधे में पड़ जाये वो वहीं की होकर रह जाती है। उनकी कहानियाँ सुनकर मुझे बहुत दया आती है उन पर।"

"तो अब आप परोपकार भी करेंगे!" विवेक ने टॉन्ट कसा।

"यही समझ ले, मेरा मकसद नीला के साथ-साथ उन बाकियों को भी वहाँ से निकालना है।"

"तू किसी दिन उसे बाहर घुमाने के बहाने नहीं ले जा सकता?" अचानक विवेक ने राय दी।

"की थी कोशिश पर बहुत सख्ती से नज़र रखी जाती है उन पर जिनको खरीदकर लाया जाता है वहाँ। मैं भगाने में कामयाब नहीं हुआ, वह भी नहीं चाहती ऐसा कदम उठाना। फिर ऐसे दुश्मनी मोल लेने से भी क्या फायदा।"

थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छा गया। विवेक उसकी बातें सुनकर हतप्रभ था।

"मेरा एक जिगरी दोस्त है पुलिस में, उसी से मालूम करता हूँ। शायद कोई रास्ता वही सुझा दे!" विवेक ने चुप्पी तोड़ी।

विवेक ने अपने दोस्त सुमित को फोन लगाया। देर तक घंटी जाने के बाद उधर से फोन उठाया गया।

"हैलो..."

"हैलो..., मैं विवेक"

"अरे वाह, आज तो सूरज पश्चिम से निकल आया लगता है, सब खैरियत तो है?"

"हां, सब ठीक है, तुझसे मिलना था।"

"कोई खास काम हो तो अभी बता दे।"

"नहीं, फोन पर नहीं।"

"तो आजा कल शाम को, मैं फ्री रहूँगा।"

विवेक और आकाश अगली शाम उससे मिलने पहुँचे व अपनी समस्या बतायी।

सुनकर उसने बताया कि पुलिस वाले रेड ज़रूर डालते हैं पर दलालों को पहले ही भनक लग जाती है और कुछ हाथ नहीं लगता। कहते हुए शर्म भी आ रही है पर हमारे ही कई साथी इनके मददगार होते हैं। इनका खुद का नेटवर्क भी ज़बरदस्त होता है।

"फिर क्या करें...?" दोनों एक साथ बोल पड़े।

"किसी एनजीओ की मदद से ये काम करोगे तो ज़्यादा सही रहेगा। वे लोग पुलिस की मदद से टीम बनाकर खुफिया तरीके से इस काम को अंजाम देते हैं।" उसने एक-दो नाम भी सुझाये।

दोनों को उसकी बात ठीक लगी। अब विवेक और विशाल के लिए यह वन पॉइंट प्रोग्राम हो गया था।

अगले वीकएंड पर दोनों विवेक के दोस्त के बताये मुक्ति नामक एनजीओ पहुँचे।

एक बड़े से हॉल में एक तरफ बड़ी-सी मेज़ व रिवॉलि्ंवग चेयर रखी थी। मेज़ के दूसरी ओर चार कुर्सियाँ थीं। इंटीरियर को कई आर्टिफिशियल गमलों से सजाया गया था। वहाँ एक पुरुष व एक महिला बैठे हुए थे। उसके सामने छोटी तख्ती लगी थी जिस पर मिसिज़ रचना लांबा निदेशक-‘मुक्ति’ लिखा था। दोनों ने उनका अभिवादन स्वीकार किया व आने का कारण पूछा। संकोच के साथ आकाश ने सारी बात उनको बतायी व अपना उद्देश्य भी।

"आप जानते हैं यह बहुत रिस्की काम होता है, आपसे दुश्मनी भी हो सकती है यदि बात खुल जाये तो।" मिसिज़ लांबा ने बताया।

"हम दृढ़निश्चय के साथ आये हैं। क्या आप अपने एनजीओ व उसकी कार्यप्रणाली के बारे में विस्तार से बतायेंगी।" अबकी बार विवेक ने पूछा।

"जी, हमारा एनजीओ बेसहारा महिलाओं की सहायता करता है, उन्हें रोज़गार दिलाने व लाईफ सैटलमेंट में मदद करता है, साथ ही देहव्यापार में फंसी महिलाओं को योजनाबद्ध तरीके से छुड़ाने का काम भी करता है। हमारे साथ स्वेच्छा से लगभग दो सौ लोग जुड़े हुए हैं।" मिसिज़ लांबा ने एनजीओ की कार्यप्रणाली के बारे में विस्तार से बताया।

"मैं आपको स्पष्ट बताऊँ तो मैं अपनी प्रेमिका नीला को वहाँ से निकालना चाहता था ताकि किसी को पता भी नहीं चले और नीला मुझे मिल जाये। पर नीला के मुख से वहाँ की अन्य औरतों के हालातों के बारे में सुनकर मुझे लगा कि मुझे उनकी भी मदद करनी चाहिए। क्या आप हमारी मदद करेंगे?" आकाश ने बेबाकी से अपनी बात रखी।

"ठीक है, हम मदद करेंगे आपकी। बहुत अच्छा सोचा है आपने। पहले हमें किसी को भेजकर वहाँ की रेकी करवानी होगी।"

अगले दिन एनजीओ का एक बंदा वहाँ शोध छात्र बनकर पहुँचा। चूँकि वह ग्राहक नहीं था इसलिए उसे एंट्री नहीं मिल रही थी वहाँ।

"पुलिस के आदमी तो नहीं हैं।" दलाल ने सशंकित नज़रों से देखते हुए पूछा।

"नहीं हमारा पुलिस से कोई मतलब नहीं है। हम तो केवल एरिया के बारे में शोध कर रहे हैं इसलिए यहाँ

आये हैं कुछ जानकारी हासिल करने।"

अपने सवालों के संतोषजनक उत्तर मिलने पर ही दलाल ने उसे अंदर आने दिया व एक आदमी को उसके साथ कोठा दिखाने भेज दिया।

उसने देखा, सीढ़ियों के रास्ते में बने बरामदेनुमा हॉल में कई औरतें सो रही थीं। उसके बाद बने दड़बे जैसे छोटे-छोटे कमरों में चार-चार की संख्या में औरतों का रहना सोचने को मजबूर कर रहा था। उसकी शर्ट के बटन में लगा खुफिया कैमरा दृश्य कैप्चर करने लगा।

उन कमरों के बीच एक थोड़ा बड़ा कमरा दिखा। देखते ही अहसास हो गया कि यह कोठे की मालकिन का कमरा है। कई धर्मों के आराध्य देवी- देवताओं की फोटुएँ लगी थीं, साथ ही वहाँ टीवी पर न्यूज़ चैनल चल रहा था। पूछने पर बताया गया कि न्यूज़ सुननी भी ज़रूरी है यह जानने के लिए कि कहीं रेड तो नहीं पड़ी। मालूम हुआ कि वैसे तो इन्हें टीवी की न्यूज़ से भी पहले ही रेड की जानकारी मिल जाती है। कमरों में कबूतरखानों जैसी खिड़कियों में से औरतें ग्राहकों को लुभाने के लिए इशारे करती हुई दिखीं। उसने सुना था, किसी-किसी कोठे में चोर कमरा या तहखाना भी होता है जहाँ रेड की भनक लगने पर औरतों को छिपा दिया जाता है। पर वहाँ किसी ऐसे कमरे की जानकारी उसे नहीं दी गयी।

पूछने पर ज्ञात हुआ कि दो समय खाना दिया जाता है बाकी समय में कोई-न-कोई इनके देह से खेल रहा होता है। वहाँ दिन भर इतनी चहल-पहल नहीं होती जितनी दिन ढलने के बाद होती है। रात भर जागने के बाद औरतें देर तक सोती हैं। कुछ औरतें जो अपनी मर्ज़ी से उन कोठों का इस्तेमाल करने आती हैं, वे पैसे कम मिलने पर कोठा भी बदल लेती हैं। लेकिन जिन्हें ज़बरदस्ती उठाकर या खरीदकर लाया जाता है उनके लिए तो यह जेल होता है। इन्हें पूरे पैसे भी नहीं दिये जाते। मिली रकम का ज़्यादा हिस्सा दलाल हड़प लेते हैं।

अपनी पूरी रिपोर्ट बनाकर एनजीओ के कर्मचारी ने मिसिज़ लांबा को सौंप दी। इसके बाद पुलिस के विशेष दल के साथ बैठकर पूरी लोकेशन स्टडी करके प्लान बनाया गया।

तय समय पर रात को दस बजे पुलिस की मदद से उस कोठे पर रेड डाली गयी। कई पुलिस की गाड़ियाँ और एनजीओ की दो गाड़ियों में भर कर वे वहाँ पहुँचे। कोठा नंबर 103 पर धावा बोला गया। पता लगते ही वहाँ भगदड़ मच गयी। पुलिस ने सबसे पहले दलाल को अपने कब्ज़े में लिया। जितना अनुमान था उतनी संख्या में लड़कियाँ बरामद न होने पर दलाल से सख्ती से पूछताछ की गयी। अपने को बुरी तरह फंसता देखकर वह पुलिस को एक कमरे में ले गया। वहाँ एक स्थान पर दीवार के कुछ हिस्से में प्लाईवुड लगा था। ठोक- पीटकर उसे हटाने के बाद उसके पीछे सीढ़ियाँ और एक कमरा निकला जहाँ लड़कियों को छिपाया गया था। एक के बाद एक उस संकरे से रास्ते में से घुटनों के बल झुककर लड़कियाँ बाहर निकल पायीं। वे दुपट्टा लपेटकर अपने चेहरे को छिपाने की कोशिश कर रही थीं।

उस कोठे की सभी लड़कियों को छुड़ा कर थाने लाया गया। ऐसे में छुड़ाने के बाद उनको उनके घर पहुँचवाना सबसे बड़ी समस्या होती है। बहुत कम लोग होते हैं जो अपनी बेटियों को अपनाने को तैयार होते हैं। ऐसे में पुलिस पुनर्वास के लिए उन्हें एनजीओज़ को ही सौंप देती है। यहाँ भी वही हुआ। सभी को एनजीओ ‘मुक्ति’ के हवाले कर दिया गया।

आकाश की खुशी का पारावार नहीं था। कुछ दिन नीला को एनजीओ में रहना पड़ा। आकाश को एक जंग और लड़नी थी, नीला से शादी के लिए अपने घरवालों से। नीला का तो वैसे भी कोई नहीं था और जो था वहाँ वह जीवन में दोबारा कभी नहीं जाना चाहती थी।

आकाश के जीवन का मकसद अब अन्य नीलाओं को मुक्त कराना बन गया था। वह भी स्वेच्छा से मुक्ति एनजीओ के साथ जुड़ गया।

नयी सुबह नीला के लिए नयी ज़िन्दगी का आग़ाज़ थी। आज पहली बार आकाश ने नीला के माथे को प्यार से चूमा और उसकी माँग को चुंबनों से भर दिया।

डॉ. नीरज सुधांशु

संपर्कसूत्र- 9837244343

ईमेल- drniraj.s.sharma@gmail.com