Chirai Churmun aur Chinu Didi book and story is written by PANKAJ SUBEER in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Chirai Churmun aur Chinu Didi is also popular in बाल कथाएँ in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी - उपन्यास
PANKAJ SUBEER
द्वारा
हिंदी बाल कथाएँ
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (1) इस कहानी में जो चिरइ चुरमुन हैं वो ही ‘हम’ हैं । ‘हम’ का मतलब वो जो कहानी सुना रहा है । यहाँ पर ‘मैं’ की जगह पर ‘हम’ इसलिये सुना रहा है कि यहाँ कहानी किसी एक की नहीं है बल्कि हम काफी सारों की है । हम ही यहाँ पर प्रथम पुरुष हैं । हम काफी सारे जो उस समय वैसे तो चिरइ चुरमुन में गिने जाते थे, लेकिन हक़ीक़त ये थी कि हम उस समय चिरइ चुरमुन थे नहीं । ‘हम’ का मतलब इस छोटे से क़स्बे के
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (1) इस कहानी में जो चिरइ चुरमुन हैं वो ही ‘हम’ हैं । ‘हम’ का मतलब वो जो कहानी सुना रहा है । यहाँ पर ‘मैं’ की जगह पर ‘हम’ इसलिये ...और पढ़ेरहा है कि यहाँ कहानी किसी एक की नहीं है बल्कि हम काफी सारों की है । हम ही यहाँ पर प्रथम पुरुष हैं । हम काफी सारे जो उस समय वैसे तो चिरइ चुरमुन में गिने जाते थे, लेकिन हक़ीक़त ये थी कि हम उस समय चिरइ चुरमुन थे नहीं । ‘हम’ का मतलब इस छोटे से क़स्बे के
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (2) हम बच्चे फिर हैरान परेशान हो गये कि रानी और सेनापति को साथ देख लिया तो उसमें मार डालने की क्या बात थी । हमने हिम्मत करके प्रश्न किया मगर ...और पढ़ेका उत्तर वही रहा ‘सो जाओ रात हो रइ है ।’ कन्टेन्ट के हिसाब से देखा जाये तो कहानी हॉरर कहानी थी, जिसमें आख़िर में रानी का भूत आता था, मगर हम बच्चे कहानी को सुनने के बाद डरने के बजाय हैरत में थे । हममें से एक ने फिर से हिम्मत की और पूछा कि नानी, रानी में अगर
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (3) अपने बहुत सारे अनसुलझे सवालों के साथ ही हम बड़े हो रहे थे । इन सबमें ही उलझते उलझाते हम सबने मिडिल पास कर लिया था । अब हमारा स्कूल ...और पढ़ेबदल गया था । इस बीच हम भी बहुत बदल गये थे । हम सबकी देह में कल्ले फूट रहे थे । मगर मन से हम अभी भी वही थे चिरइ चुरमुन। नये स्कूल में नये नये साथी मिले । बहुत से बच्चे गाँव के भी हमारी कक्षा में थे, जो गाँव के मिडिल स्कूल से मिडिल पास करके आगे
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (4) अम्मा जी हमें नानी की कहानियों की वो दुष्ट राक्षसी लगती थीं जो राजकुमार को क़ैद करने के लिये हमेशा नये नये जाल बिछाती थी । अम्मा जी से हमें ...और पढ़ेऔर कष्ट था, वो ये कि जब उनको कोई काम नहीं होता तो वो हमें देखते ही चिल्लातीं ‘ऐ लड़के इतनी गर्मी (सर्दी, बरसात) में बाहर क्यों घूम रहे हो, चलो घर ।’ ये वो समय था जब किसी भी बच्चे को पूरे मोहल्ले का कोई भी बड़ा, डाँट सकता था, मार सकता था, जलील कर सकता था । ये
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (5) हमारे प्रश्न अब ख़त्म हो चुके थे । जो कुछ जानना था वो पता चल चुका था । अब कुछ और जानने की आवश्यकता भी नहीं थी । हमने पूछा ...और पढ़ेआप जाना चाहते हैं ?’ कटोरी खसकी और नो को छूकर वापस आ गई । नो....? आज तक तो किसी आत्मा ने नहीं कहा था । जब भी पूछो तो चुपचाप यस करके चली जाती है । हम सबके पसीने छूट गये । जिन दोनों सुरेश और सुशील ने उँगली कटोरी पर रखी थी उनकी हालत और ख़राब थी ।