Chindi Chindi sukh thaan barabar dukh book and story is written by Divya Shukla in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Chindi Chindi sukh thaan barabar dukh is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख - उपन्यास
Divya Shukla
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख (1) इवनिंग वाक से लौट कर अभी गेट खोल ही रही थी कि फोन की घंटी बजने लगी | स्क्रीन पर अनजान नंबर चमक रहा था सोचा अभी चेंज कर के ही फोन रिसीव करुँगी |नंबर सेव नहीं था तो लगा होगा कोई बैंक लोनिंग या क्रेडिट कार्ड वाला फोन | परेशान करके रख दिया है इन लोगों ने .. फोन टेबल पर रख मै वाश रूम में चेंज करने चली गई |आज कुछ ज्यादा लंबी वाक् हो गई | थकान और पसीने से तरबतर हो गये थे |सोचा नहा कर चेंज कर ले
चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख (1) इवनिंग वाक से लौट कर अभी गेट खोल ही रही थी कि फोन की घंटी बजने लगी | स्क्रीन पर अनजान नंबर चमक रहा था सोचा अभी चेंज कर के ही फोन ...और पढ़ेकरुँगी |नंबर सेव नहीं था तो लगा होगा कोई बैंक लोनिंग या क्रेडिट कार्ड वाला फोन | परेशान करके रख दिया है इन लोगों ने .. फोन टेबल पर रख मै वाश रूम में चेंज करने चली गई |आज कुछ ज्यादा लंबी वाक् हो गई | थकान और पसीने से तरबतर हो गये थे |सोचा नहा कर चेंज कर ले
चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख (2) उसने थोड़ा सा खाना भी खा लिया | मै अपने साथ घर से उसका भी खाना लाती थी, काफी देर तक मौन पसरा रहा | कोई कुछ नहीं बोला | मेड बाहर ...और पढ़ेकर बैठ गई | आज सन्नाटा था सिर्फ रूपा और मै ही थी मैने उससे कहा - '' अब अगर बताना चाहो तो बताओ क्या हुआ क्यों परेशान हो तुम ? रो कर आई थी न किसी ने कुछ कहा क्या ? '' '' क्या बताऊँ कहाँ से शुरू करूँ दीदी | यह सब मेरी फूटी किस्मत ही तो है
चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख (3) उस रात कुंवर चुपचाप चले गये | न कुछ बोले न ही उनके चेहरे पर ही दुःख या पछतावा था बल्कि, उकताहट ही दिखी, उस दिन के बाद हम ने भी किसी ...और पढ़ेकुछ नहीं कहा | बस मन ही मन सोचते रहे इस नन्ही सी बेटी को लेकर कहाँ जायें | किस पर भरोसा करें | यही सोचते-बिचारते दस पंद्रह दिन और बीत गये | हम बिना कुछ बोले अपना काम धाम पहले की तरह ही निपटाते रहे | माँ बेटे दोनों को यही लगा, अब इसने समझौता कर लिया है |
चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख (4) जब चार पैसे आने लगे तो सास को बहू भी याद आई | वह भी साल में एक दो चक्कर लगा ही लेती | उनको गलती का अहसास होने लगा था | ...और पढ़ेकभी सीधे तो कहा नहीं लेकिन उनकी बातों से झलक ही जाता की बड़ी साध से लाई बहू की सेवा से वह संतुष्ट नहीं हैं, रूपा ने कभी न उन्हें आने को कहा न ही आने से रोका ही बल्कि उनकी बीमारी में अपने पास रख कर उनकी दवा भी करवाई | माँ की बीमारी के बहाने कुंवर भी आये