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चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख - 1

चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख

(1)

इवनिंग वाक से लौट कर अभी गेट खोल ही रही थी कि फोन की घंटी बजने लगी | स्क्रीन पर अनजान नंबर चमक रहा था सोचा अभी चेंज कर के ही फोन रिसीव करुँगी |नंबर सेव नहीं था तो लगा होगा कोई बैंक लोनिंग या क्रेडिट कार्ड वाला फोन | परेशान करके रख दिया है इन लोगों ने .. फोन टेबल पर रख मै वाश रूम में चेंज करने चली गई |आज कुछ ज्यादा लंबी वाक् हो गई | थकान और पसीने से तरबतर हो गये थे |सोचा नहा कर चेंज कर ले पहले |और बस दो मिनट शावर ले कर हाउसकोट डाला और भीगे नम चेहरे पर रोजवाटर स्प्रे कर ही रही थी कि पुष्पा की आवाज़ आई |

'' दीदी आपका फोन लगातार बज रहा है यहीं ला दूँ ? ''

''उफ़ बड़ी मुश्किल है रुको तुम चाय लगाओ हम निकल रहे है खुद देख लेंगे ''

शावर के बाद तरोताजा तन मन और वाक् से हल्का बदन अब चाय की तलब जोरों से लग आई थी पुष्पा को आवाज़ देने ही जा रही थी चाय आ गई एक सिप लेते ही उसकी तरफ देखा तो वो हंस पड़ी !

'' बिना चीनी की है दीदी आजकल आपका वजन बढ़ गया है न आपही तो कही थी बस एक सुबह की चाय छोड़ कर बाकी में हमे चीनी न देना |''

कह कर वह मुस्करा दी और मोबाइल फोन आगे कर दिया |

'' अब आप इसे भी देख लीजिये तब तो बजे जा रहा है | ''

'' अरे हाँ लाओ देखते है |''

मैने उसके हाथ से फोन ले कर देखा हर दो से पांच मिनट के अंतर पर करीब सात आठ मिस काल थी वो भी एक ही नम्बर से जरुर कोई जानने वाला ही होगा वरना आजकल कौन करता है इतने फोन या कोई काम होगा वो भी जरूरी अनजान फोन उठाने को तो कभी कभार उठा भी लेते है पर कॉल बैक नहीं करते पर इस कॉल को इग्नोर करने का न जाने क्यों दिल नहीं किया . अभी आधे घंटे बाद करती हूँ फोन यह सोच कर कुछ बहुत जरूरी काम थे उसे निपटाने में लग गई अभी पन्द्रह मिनट भी नहीं हुआ फिर बज उठा फोन और पुष्पा को जैसे बिजली का करेंट लगा हो वो चीख उठी -

'' अरे दीदी फिर वही फोन अब ये दसवां फोन है | ''

फोन उठाते ही उधर से किसी ने पूछा |

'' अनुप्रिया दीदी का नंबर है ? प्लीज़ उनसे बात करवा दीजिये |''

'' मै अनुप्रिया बोल रही हूँ आप कौन ? |''

'' अरे अनु दीदी आप ने मुझे नहीं पहचाना ? भूल गई न अब आप बताइये पहले मै कौन हूँ| ''

बड़ी जानी पहचानी आवाज़ पर कौन है ये इतने अपनेपन और अधिकार से बोल रही है. अनु तो मुझे बस पूर्वा बुलाती है कभी लाड़ से तो कभी खीझ कर पर उससे तो पिछले हफ्ते ही बात हुई थी अब्ब्ब ये कौन है... ओह कैसे भूल गई इसे -

'' अरे रूपा तुम कहाँ खो गई थी इतने दिन बाद अब याद आई अनु दी की हमें तुमसे बात नहीं करनी जाओ |''

'' अरे ना दीदी आप तो सब जानती है |हम भला आपको कैसे भूल जायेंगे | फोन खो गया तो नंबर सारे ही चले गये फिर नेहा के पास गुडगाँव रहे करीब साल भर |

उसकी शादी का कार्ड देने हम आये थे |उसके बाद आप से एक बार ही मिलना हुआ | हम ही उलझे रहे बेटी की नई नई शादी की उलझने सुलझाने में | वह दोनों भी खूब झगड़ते और हमारा दिल बैठ जाता .....क्या करें कि दोनों की गृहस्थी राह पर आ जाये इसी लिये बीच-बीच में वहां जाते रहते,

अब जा कर करीब साल भर से यहाँ है आपका पता भी भूल गये, लिखा तो था नहीं एक दिन गये भी तो पहचान ही नहीं पाये |तीन चार में सब साल में कितना बदल गया है | यह नंबर भी बड़ी मुश्किल से मिला हमें | पूर्वा दी के आफिस से लिया | उनसे भी अभी मुलाकात नहीं हुई | आप को बहुत कुछ बताना था बहुत ढेर सारी बातें करनी है |लिपट कर रोना है |''

इतना कह कर वह खामोश हो गई मानो कुछ कहने के पहले अचकचा रही हो |

'' बोलो न क्या कहना है |''

'' सब से पहले ये बात हम आपको ही बताना चाहते हैं | पर फोन पर नहीं आ कर बताएँगे |

आप अपना पता ठीक से लिखवा दीजिये |

हम कल ही आयेंगे आपके पास | आपसे बहुत ढेर सारी बातें करनी हैं |''उसकी आवाज़ में खनक थी कभी | चहकती तो कभी तनिक देर को खामोश हो जाती और लगता कुछ कहते-कहते रुक गई | पन्द्रह मिनट तक नॉन स्टॉप बकबक करती रही बेटी के बारे, में फिर उन दिनों की याद कर जब मुझसे मिली थी,बोलते-बोलते गला भर जा रहा था और मुझे फोन से बात करते हुये उसकी दोनों आँखों से बहते आसुओं का अहसास हो रहा था |मैने उससे पूछा -

''रूपा कल कितने बजे आओगी ? ''

'' दीदी हमारा बस चले तो अभी आ जायें पर आज नहीं आ सकते अब कल कब आयेगा |यही बाट ताकते रात कैसे बीतेगी |आप नहीं जानती हम आज कितने खुश हैं |हमें लगा दुनिया की इस भीड़ में आप का हाथ हमसे छूट गया |अब, कल शाम चार बजे आ जायेंगे |फिर सात बजे तक आप के साथ रहेंगे, आपको कहीं जाना तो नहीं है न ?'' |

'' तुम आ जाओ |मै इंतजार करुँगी |जाना भी होगा तो चार बजे के बाद कही नहीं जाउंगी | ''

कह कर फोन रख दिया और उसका नंबर मोबाइल में सेव कर लिया |

तीन चार वर्ष के लंबे अंतराल के बाद आये इस फोन ने मन में हलचल मचा दी | क्या बताना चाह रही है सच कहूँ तो मेरा भी मन कर रहा था वो आज अभी आ जाये | न जाने क्यों एक मोह सा है उससे | ऐसा नहीं कि बीते दिनों में उसका ख्याल नहीं आया | बहुत बार आया फिर गुस्सा भी आया और ये भी सोचा होता है ऐसा, जब किसी को ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाओ और सही राह पकड़ा दो तो कई बार आगे भी निकल जाते है लोग और पीछे पलट कर नहीं देखते | आज की दुनिया की यही रीत है और दिमाग से झटक देती उसका ख्याल,फिर कभी लगता होगी कहीं दुनिया की भीड़ में अब वह खुद को संभाल लेगी, वो विस्मृति तो नहीं पर धूमिल स्मृतियों में जाने लगी ही थी कि अचानक फिर प्रगट हो गई |

रात का खाना निपटा कर कुछ पढने बैठी पर मन आज किसी किताब में नहीं लग रहा, मन तो बीस बाईस साल पहले के गलियारों में भटक रहा है |

उन दिनों शहनाज़ हुसेन का बड़ा नाम था, सभी अभिजात्य वर्ग की लड़कियों और महिलाओं में उनके हर्बल प्रोडक्ट और पार्लर दोनों ही चल रहे थे साथ ही उनके ग्रूमिंग और प्रोफेशनल क्लासेस भी बहुत लोकप्रिय थे | हर्बल प्रोडक्ट के नाम पर बहुत बड़ा नाम था शहनाज़ हुसेन का | मैने भी उन्ही शुरू के दिनों में उनके सारे कोर्सेस कर डाले | यहाँ तक इंटरनेशनल प्रोफेशनल कोर्स भी,जो काफी मंहगा भी था पर कुछ जिद और खाली वक्त फिर सहेलियों का साथ भी था | फिर क्या पापा को बहुत समझा कर अपनी जिद मनवा ही ली और दिल्ली जा कर पूरा कोर्स कर सौन्दर्य विशेषज्ञा की डिग्री ले ही आये |

कुछ दिन बाद मैने अपना पार्लर और ट्रेनिग स्कूल खोला | खूब अच्छा चल रहा था पार्लर और ट्रेनिग सेंटर | यह आईटी कालेज के पास था जबकि मै हजरतगंज में रहती थी | आते-आते दस तो बज ही जाते, मुझे अच्छी तरह से याद है वो जाड़े के दिन थे मै घर से आकर बैठी ही थी तभी दो औरते आ कर खड़ी हो गईं जिनमे एक पास के रामकृष्ण मठ के अस्पताल की सीनियर नर्स थी और दूसरी करीब चौबीस पच्चीस वर्ष की लड़की थी | उसके चेहरे पर नजर पड़ी तो उसे देखती ही रह गई | मानो वही टिक कर रह गई नज़रें |

वो बेहद खूबसूरत थी | बदन की रंगत संगेमरमर सी सफ़ेद पर कुछ ललाई लिये हुये | उसकी सुरमई आँखे हरी सी या कभी तो मुझे लगता स्मोकी आईज शायेद इसे ही कहते है हरी और स्लेटी रंग की आँखे | नैन नक्श तीखे,बदन बहुत सुगढ़ और रच-रच कर तराशा हुआ .. हाँ वो इतनी ही खूबसूरत थी जिसे शब्दों नहीं ढाला जा सकता |

मै बस अपलक देखती रह गई उसे,

तभी साथ आई उस सिस्टर (नर्स ) ने मुझसे कोर्स के बारे में पूछा, कितना समय लगेगा, कितनी फीस होगी कितने महीने का कोर्स है | वह सब जानकारी विस्तार से लेती रही और वह सुंदर लड़की चुपचाप बैठी सुनती रही, उसकी झील सी आँखों में गहन उदासी थी एक खालीपन था, वह खोई खोई सी लड़की न जाने क्या सोच रही थी |

कोर्स के बारे में बड़ी रूचि से सुन रही थी पर फीस सुन कर उसका चेहरा उतर गया था और उदासी तैर गई उसके चेहरे पर ! तभी सिस्टर ने मुझसे हाथ जोड़ कर कहा -

'' मैम आप इसे सिखा दीजिये ईश्वर आपको बहुत देगा | आप इसकी फीस कम कर दीजिये यह बहुत जरूरत मंद है बड़ी परेशान है |''

मुझे लगा शायेद यह लड़की इनकी रिश्तेदार है पर सिस्टर ने बताया यह इनके अस्पताल में दवा लेने आती है इसका नाम रूपा है | रायबरेली जिले के कसबे की रहने वाली है | यहाँ लखनऊ के डालीगंज में अपनी जेठानी के पास ही अभी छह महीने से रह रही है | कहती है वापस नहीं जायेगी गाँव, मैने फीस कम कर के उसे बता दिया और उसने सर हिला कर ठीक का इशारा किया और वापस जाने लगी |

जाते-जाते सिस्टर ने पूछा 'क्या ये परसों से क्लास के लिये आ जाये, मेरे हां कहने पर दोनों कमरे से बाहर निकल गई | मै शीशे के दरवाज़े से उन्हें जाते हुये देख रही थी और कुछ सोच रही थी | अचानक मैने उनको आवाज़ दी, वो दोनों ही पलट कर देखने लगी मैने उन्हें इशारे से वापस बुलाया और कुछ देर बैठने को कहा |

पर सिस्टर को अस्पताल के लिये देर हो रही थी वो रूपा को छोड़ कर चली गई |
मैने रूपा से पूछा -

'' रूपा तुम पैसे कहाँ से लाओगी ?''

'' दीदी किसी रिश्तेदार से उधार लेंगे | ''

'' किससे लोगी | कौन देगा तुम्हे इतने पैसे और वापस कैसे करोगी ?''

''धीरे-धीरे कर के लौटा देंगे जब काम चलने लगेगा या कही नौकरी लग जायेगी | ''

मै उसको देखती रही फिर उसे सहज कर के बिठाया और मेड से दो चाय मंगवाई |

उसे कप पकड़ा कर मै चाय सिप करने लगी और धीरे-धीरे उससे कुछ कुछ पूछती भी जा रही थी | पैसे के बारे में उसने बताया उसके कोई बहनोई हैं जिससे उधार लेने की सोच रही है | उसकी बातें सुन कर थोड़ी देर में सोचती रही आज के इस वक्त में कोई भी इसे पैसे ऐसे तो नहीं दे देगा जवान खूबसूरत बेसहारा औरत से वह कैसे वसूली करेगा |

यह सोच कर मैने पल भर में एक निर्णय लिया और उससे कहा -

''रूपा तुम कल से आ जाओ किसी से कोई पैसे वैसे उधार न लेना बस यहाँ मन लगा कर सीखो |

''अगले दिन जब मै पहुंची तो वो आ चुकी थी | तीन महीने का कोर्स होता है और बैच शुरू हुये महीना भर हो गया था | इस बैच में दस लड़कियां थी, ये क्लास एक घंटे की ही होती पर बाद में भी एक घंटे और रुक कर लड़कियां वहीँ एक दूसरे पर अभ्यास भी करती थी | रूपा से बातचीत करके मुझे पता चल गया था | उसे अंग्रेजी बिलकुल भी नहीं आती है अब उसे सिखाना मेरे लिये भी एक चुनौती ही थी क्योंकि मै उसे बस सिखाना ही नहीं चाहती थी बल्कि मै उसे पारंगत कर देना चाहती थी |

मैने उसकी क्लासेस अलग से अकेले लेने का निर्णय लिया, वह पढ़ और लिख कर नहीं सिर्फ अभ्यास कर के ही सीख सकती थी | इसी लिये जब सब सीखते तब वह चुपचाप सुनती और देखती रहती | पंद्रह दिनों बाद धीरे-धीरे उससे अभ्यास करवाना शुरू किया | दो माह बीतते-बीतते उसका आत्मविश्वास लौटने लगा अब वह खुलने लगी |

वह मुस्कराती तो थी पर उसके मुख पर छाई गहन उदासी की परतें अभी भी गहरी थी बहुत गहरी |
कई बार सोचा उससे उसके बारे में पूछें पर दर्द की परतें कैसे खुरचें यह सोच कर टाल दिया | न जाने कैसा पीड़ादायक अतीत हो जरा सा ठेस लगे तो अभी तनिक सी संभली ये औरत कहीं टूट ही न जाये | यही सोचा |जब ये सहज होगी और इतना भरोसा करेगी तो खुदबखुद खोल देगी अपनी दर्द की पोटली, जिसे न जाने कब से ढो रही है ये |

आखिर वो दिन आ ही गया उस दिन वह बहुत देर से आई उसकी आँखे सूज कर बीरबहूटी हो रही थी चेहरा लाल मैने उससे पूछा -

''अरे क्या हो गया रूपा तबियत ठीक नहीं क्या ? आज देर भी हो गई अगर तबियत ठीक नहीं तो आराम करती आज | ''

मेरा इतना कहना था वो फफक-फफक के रो पड़ी | उसकी पीड़ा के तटबंध मानो टूट गये हों किसी भयानक आघात से, मैने भी नहीं रोका कुछ देर बह जाने दिया दर्द के उस सैलाब को |

कुछ देर बाद उसे उठा कर मुंह धुलवाया,तब तक चाय आ गई -

'' उठो रूपा पहले चाय पीओ और कुछ खा लो | तुम्हारा खाना रखा है सुबह से तुमने कुछ खाया नहीं न | जाओ पहले कुछ खाओ फिर बात करते हैं | ''

वह बिना कुछ बोले चुपचाप चाय पीने लगी, खाना मैने ही उठ कर उसके सामने रख दिया -

'' खाओ अब पहले खाना खराब करोगी क्या ? ''

***

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